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Updated: 16 जुलाई, 2020 10:02 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
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Virgin BhanuPriya review in hindi : Zee5 पर आई उर्वशी रौतेला (Urvashi Rautela) की फ़िल्म वर्जिन भानुप्रिया (Virgin Bhanupriya) पर बात करने से पहले जिक्र साल 2011 का. साल 2011 महीना था दिसंबर एक फ़िल्म आई थी नाम था The Dirty Pictures फ़िल्म में विद्या बालन (Vidya Balan) और नसीर साहब लीड में थे. फ़िल्म का एक डायलॉग बहुत पॉपुलर हुआ जिसमें विद्या के कहे का सार इतना था कि सिर्फ तीन ही चीजें बिकती हैं एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट दौर बदला पब्लिक की पसंद बदली आज OTT प्लेटफॉर्म्स की बदौलत सेक्स (Sex) बिक रहा है और पूरे धड़ल्ले से बिक रहा है. आज जैसा पब्लिक का टेस्ट है फ़िल्म में डालने भर की देर है. निर्माता निर्देशक को लगता है कि फ़िल्म हिट है. मगर हर बार सेक्स डूबती नैया का बचा ले ज़रूरी नहीं. सवाल होगा कैसे तो जवाब है OTT प्लेटफॉर्म Zee5 पर उर्वशी रौतेला स्टारर हालिया रिलीज फ़िल्म वर्जिन भानुप्रिया. कहने को तो निर्देशक अजय लोहान (Ajay Lohan) द्वारा निर्देशित फ़िल्म वर्जिन भानुप्रिया एक कॉमेडी फिल्म बताई जा रही है लेकिन इसके प्लाट में 'सेक्स' रखा गया और खिचड़ी कुछ ऐसी बनी न तो दर्शक कॉमेडी के बलबूते हंस पाए. न ही उन्हें सेक्स के कारण सही से आनंद ही मिल पाया. नतीजा ये निकला कि फ़िल्म कुछ बेडौल नजर आई और लगा कि इसे देखना केवल और केवल समय की बर्बादी है.

Virgin Bhanupriya Review In Hindi, Virgin Bhanupriya, Film, Review, Urvashi Rautelaएक्टर उर्वशी रौतेला की बहुचर्चित फिल्म वर्जिन भानुप्रिया जी5 पर रिलीज हो गयी

बता दें कि फ़िल्म में उर्वशी के अलावा बिग बॉस फेम गौतम गुलाटी, अर्चना पूरन सिंह, डेलनाज ईरानी, राजीव गुप्ता, बिजेंद्र काला, निकी अनेजा और रूमाना मोला भी अहम भूमिका में हैं मगर चूंकि फ़िल्म की स्क्रिप्ट हद से ज्यादा ढीली थी इसलिए उर्वशी तो जैसे तैसे अपना रोल निभा ले गईं मगर ये तमाम लोग कोई विशेष छाप नहीं छोड़ पाए.

क्या है कहानी

फ़िल्म की कहानी भानुप्रिया नाम की एक 20 साल की लड़की के इर्द गिर्द घूमती है जो अपने सपनों का राजकुमार को पाने के लिए बेताब है और उसी के साथ अपनी वर्जिनिटी को खोना चाहती है.जब भी वो अपनी लव लाइफ को संवारने या फिर उसे आगे बढ़ाने के लिए कदम उठाती है उसके हाथ निराशा लगती है.

उसके परिवार का हाल भी आम भारतीय परिवारों जैसा है जहां उसके माता पिता विजय और मधु बात बेबात एक दूसरे से बहस करते रहते हैं और अपनी ही दुनिया में खोए रहते हैं. भानु का एक दोस्त है रुकुल जिससे वो तमाम चीजों जिसमें उसकी रिलेशनशिप भी शामिल है के लिए सलाह लेती है मगर कम ही मौके आते हैं जब उसे सफलता मिली हो.

फ़िल्म के अंत तक भानु की मुलाकात अभिमन्यु से होती है और भानु को लगता है कि अभिमन्यु ही वो इंसान है जिसके साथ वर्जिनिटी खोना सुखद रहेगा. तो क्या भानु को अपने सपनों का राजकुमार मिलता है? क्या भानु अभिमन्यु के साथ अपनी वर्जिनिटी खो पाती है? सवाल तमाम हैं जिनके जवाब हमें फ़िल्म देखकर ही पता चल पाएंगे.

क्या रही परफॉरमेंस

जैसा कि हमने शुरू में बता दिया है इस फ़िल्म में कुछ खास नहीं है और इसे देखना केवल और केवल समय की बर्बादी है इसलिए इन बातों का सीधा असर फ़िल्म में कलाकारों की परफॉरमेंस पर दिखाई देता है. फ़िल्म में उर्वशी रौतेला के होने से बहुत उम्मीदें थीं मगर जिस लिहाज से उन्होंने एक्टिंग की उसमें वास्तविकता उतनी ही थी जितना दाल में नमक.

कह सकते हैं कि इस फ़िल्म के जरिये उर्वशी को एक बड़ा मौका मिला था जो उन्होंने गंवा दिया. वहीं बात फ़िल्म के अन्य कलाकारों की हो तो चूंकि फ़िल्म की स्क्रिप्ट काफी कमजोर और इधर उधर फैली हुई थी इसलिए चंद चुनिंदा कलाकार होने के बावजूद फ़िल्म उनके साथ इंसाफ नहीं कर पाई और वो तमाम लोग वैसी एक्टिंग नहीं कर पाए जैसी एक्टिंग की उम्मीद उनसे की जा रही थी.

इस पूरी फिल्म में रोल के हिसाब से सबसे बुरा ट्रीटमेंट राजीव गुप्ता के साथ हुआ है. वहीं बात अगर बिग बॉस फेम गौतम गुलाटी की हो तो न तो वो एक्टिंग की कर पाए न ही जनता को हंसा पाए हां अलबत्ता फ़िल्म में जहां जहां शर्ट उतार कर बॉडी दिखाने के मौके आए उन्होंने इसका भरपूर फायदा उठाया और दर्शकों को जमकर अपनी बॉडी दिखाई.

कैसी रही फिल्म - एक एनालेसिस

चूंकि फ़िल्म एक लड़की भानुप्रिया के प्यार पाने और उस प्यार के जरिये अपनी वर्जिनिटी खोने की कहानी है इसलिए इसे सेक्स कॉमेडी के नाम पर एक मजाक कहना अतिश्योक्ति न होगा. कॉमेडी का तड़का लगाकर फ़िल्म को सेक्स के इर्द गिर्द रखना इसलिए भी अजीब है क्यों कि जब निर्देशक इस तरह की फ़िल्म बना रहा हो तो उसे इस बात का पूरा ख्याल रखना होता है कि बारीक से बारीक बातों पर गौर किया जाए.

ऐसे में जब हम फ़िल्म, उसकी स्टारकास्ट और उस स्टारकास्ट द्वारा की गयी एक्टिंग को देखते हैं तो तमाम मौके ऐसे आते हैं जब फ़िल्म में हमें भारी चूक दिखाई देती है और महसूस होता है कि आखिर क्या सोच कर ऐसा किया गया.

चाहे निर्माता निर्देशक हों या फिर फ़िल्म के एक्टर बार बार सबकी तरफ से यही कहा जा रहा है कि फ़िल्म प्योर कॉमेडी है जिसमें सेक्स बस एक प्रमुख एलिमेंट है. इन बातों के बीच जब हम फ़िल्म को देखते हैं तो हमें सब दिखा बस अगर कुछ नहीं दिखा तो वो कॉमेडी थी. फ़िल्म में कॉमेडी के नाम पर जो कुछ भी है वो इस हद तक बकवास है कि उसे देखकर हंसी नहीं बल्कि गुस्सा आता है.

हालांकि बात फ़िल्म की चल रही है तो फ़िल्म अगर बुरी तरह पिटी है तो इसके लिए अगर कोई सबसे ज्यादा जिम्मेदार है तो वो स्क्रिप्ट राइटर के सिवा कोई और नहीं है. ध्यान रहे कि किसी भी फ़िल्म के निर्माण के वक़्त वो स्क्रिप्ट राइटर ही होता है जो किसी फिल्म को या तो हिट बनाता है या फिर फ्लॉप.

कैसा है फ़िल्म का संगीत क्या बताते हैं फ़िल्म के और डिपार्टमेंट

फ़िल्म देखने के बाद ये कहना हमारे लिए कहीं से भी गलत नहीं है कि अगर फ़िल्म बुरी है तो इसका गीत संगीत इससे कहीं ज्यादा बुरा है. फ़िल्म का कोई भी ट्रैक ऐसा नहीं है जो फ़िल्म खत्म होने के बाद दर्शकों के जहन में रहे. संगीत के बाद अगर हम बात इस फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी की करें तो यहां भी निराशा ही हमारे हाथ लगती है. की सिनेमेटोग्राफी के नाम पर कुछ घरों और पब दिखाना कई मायनों में विचलित करता है.

तो फिर देखें या नहीं

कहावत है कि फैशन के इस दौर में गारंटी वारंटी की इच्छा न करें वही हाल इस फ़िल्म का है. यदि आपके पास टाइम बहुत हो और अच्छा, बुरा, घटिया कुछ भी देखने के नाम पर आप उसे पास करना चाहते हों तो इस फ़िल्म को लगाकर आलू छीले जा सकते हैं. सब्जी काटी जा सकती है. झाड़ू लगाया जा सकता है घर की धुलाई करते हुए वाइपर किया जा सकता है. जिस वक्त फ़िल्म की घोषणा हुई उम्मीद थी कि इस कोरोना काल में हमें कुछ बेहतर देखने को मिलेगा मगर अब जबकि ये फ़िल्म आई तो केवल और केवल मायूसी हमारे हाथ लगी जो विचलित कम गुस्सा ज्यादा दिला रही है.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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