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Updated: 02 मई, 2022 07:41 PM
संजय शेफर्ड
संजय शेफर्ड
  @shepherdsanjaya
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कुछ दिन पहले एक शॉर्ट फ़िल्म देखी 'कॉल हिम एडी'. इस बीस मिनट की फ़िल्म में सिर्फ दो ही पात्र हैं. एक संजय सूरी और दूसरी ऐशा चोपड़ा. यह एक बेहतरीन और नए विषय पर बनी फ़िल्म है इसलिए लगा कि एक बार हर किसी को देखना चाहिए. संजय सूरी जो कि एक प्रोफ़ेसनल कडलर है उसके बारे में ऐशा को अपने कुछ ट्रैवलर दोस्तों से पता चलता है. ऐशा एक वृतचित्र निर्माता है और कडलिंग जैसी चीज़ों को लेकर उसे लगता है कि वह एक तरह का घोटाला है जो जल्दी पैसा बनाने के लिए किया जा रहा है. वह इसी बात को समझने के लिए संजय सूरी यानी कि एडी के घर जाती है जो कि एक सीक्रेट जगह है. वह उसे लव हार्मोन और माइंड वेलनेस के बारे में बताता है. वह कहता है कि यह कोई रॉकेट साइन्स नहीं है, हम सबकी बॉडी की एक केमिस्ट्री है जो कि हमारी फ़ीलिंग पर आधारित है, जिसे हम सभी को समझने की ज़रूरत है.

हम जब अपनी भागदौड़ भरी ज़िंदगी की वजह से छूने और महसूस करने के अहसास तक को भूल चुके हैं, मानवता तो बहुत दूर की बात है. वह उसकी बात सुनकर हंसती है. सवाल करती है कि जब तुम किसी को छूते, हग करते, अथवा बाहों में भरते हो तो क्या सेक्शूअल मोमेंट नहीं आता? वह कहता है की इसमें ग़लत कुछ भी नहीं, आख़िरकार अंतत हम सब इंसान ही तो हैं.

Call Him Eddy, Sanjay Suri, Film, Bollywood, Film review, Relationship, Love, Societyफिल्म कॉल हिम एडी के एक सीन में एक्टर संजय सूरी

यह एक ऐसी चीज है जिसे हम सब स्वीकार करते हैं, पर प्रोत्साहित नहीं करते. साथ ही वह यह भी कहता है कि हालाँकि यह मानना मुश्किल है की कोई इंसान आपको छू रहा हो बिना किसी इरादे के. वह कहती है कि हां यह सचमुच अजीब है. वह कहती है कि हमारे देश में कडलिंग थरेपी और जो कुछ भी तुम करते हो वह अवैध है, वह कहता है कि इसके लिए मैं जेल जाने को भी तैयार हूं.

स्वीटज़रलैंड में नंगे हाइकिंग करना भी वैध नहीं है, सिंगापुर में चिविंगम खाना और कई देशों में तो अपने पार्ट्नर को पब्लिकली हग या किस करना भी. चीज़ों को वैध-अवैध हम जैसे लोग ही बनाते हैं, ये सॉसाययटी की सोच है बस.

वह कहती है कि यह टच क्यों? वह कहता है कि किसी पैरालाइज्ड से पूछकर देखो. फिर वह पूछता है कि अच्छा बताओ सेक्स क्यों? वह कहती है कि ये निसेसिटी है वह कहता है इसीलिए. तुमने देखा होगा कि दस बारह साल के बच्चे कैसे अपने मां पिता की गोद में दुबककर बैठे होते हैं. उन्हें अच्छा लगता है, वह सुरक्षित महसूस करते हैं. फिर बड़े हो जाते हैं और उनसे दूर भी.

वह उसकी बात सुनकर हंसती है और कहती है कि आप क्या चाहते हैं, वह तीस साल तक मां-बाप की गोदी में बैठे रहे? वह कहता है कि इसमें शर्म और बुरा क्या है? मैं यह नहीं समझ पाता कि लोग अपने परिवार से मिलने में इतनी झिझक क्यों रखते हैं?

उसकी बात सुनकर वह खो जाती है, शायद उसकी बातों से उसका अतीत जुड़ जाता है और यहीं से सबकुछ बदल जाता है. वह पूछता है कि तुम ठीक हो? वह कहती है हां, मैं ठीक हूं.

वह पूछता है कि पिछली बार कब तुमने किसी को पकड़ा था. मैरिड ? बॉयफ्रेंड ?

वह कहती है कि तुम सवाल कितना करते हो, वह कहता है कि दोस्त ऐसे ही बनते हैं.

वह कहती है कि इन सबके लिए मेरे पास वक़्त नहीं, वह कहता है कि सभी के साथ ऐसा ही है. हम सब अपनी दिन प्रतिदिन की भागदौड़ भरी जिंदगी में इतने बिजी हो जाते हैं कि अपने लिए भी वक़्त नहीं निकाल पाते, हम सब खुदको भूलते जाते हैं. यही सही वक़्त है, अभी का, क्या तुम एक बार ट्राई करना चाहोगी? और वह एक हिचक के साथ कडलिंग के लिये तैयार हो जाती है.

वह अपने बहुत सारे सवालों के साथ उस रात उसके साथ सोती है और उसे उस एक रात में जो मेंटल और इमोशनल पीस मिलता है उससे उसकी पूरी की पूरी सोच बदल जाती है. बीस मिनट की इस शॉर्ट फ़िल्म में काफ़ी कुछ है. एक बहुत ही ख़ूबसूरत मोड़ पर जाकर समाप्त हो जाती है.

थरेपिसट की भाषा में कहें तो कडलिंग एक इमोशन है. एक ऐसा इमोशन जो सेक्सुअल नहीं है पर इमोशनल है, इसमें बात करना और छूना शामिल है. ऐसा माना जाता है कि एक पेशेवर कडलर जीवन में बहुत सारे भावनात्मक शून्य से गुजरता है जो उसे दूसरे व्यक्ति की जरूरतों को समझने में मदद करता है.

यह फ़िल्म इस मायने में महत्वपूर्ण कही जा सकती है क्योंकि दुनिया के तमाम हिस्सों में कडलिंग थरेपी काफ़ी पॉप्युलर हुई है हालाँकि भारत में, यह अभी भी एक पेशा नहीं है और न ही यह कानूनी रूप से मान्य है लेकिन दुनिया में ऐसे स्थान हैं जहां बहुत से लोगों को गले लगाने यानि कडलिंग से मदद मिलती है और इसे तनाव बस्टर/थेरेपी माना जाता है.

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लेखक

संजय शेफर्ड संजय शेफर्ड @shepherdsanjaya

स्वतंत्र लेखन

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