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Updated: 29 जून, 2020 10:38 PM
मशाहिद अब्बास
मशाहिद अब्बास
 
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"बायकाट नेटफ्लिक्स" (Boycott Netflix) का नारा ट्वीटर (Twitter) पर ट्रेंड कर रहा है. अब तक हजारों ट्वीट इस हैशटैग के साथ किए जा चुके हैं. वजह भी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की है. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है 'बॉयकॉट' (Boycott) शब्द भी अब फिल्म या वेब सिरीज़ के प्रचार-प्रसार का हिस्सा बन चुका है. फिल्मों में तो फिलहाल सेंसर बोर्ड कुछ हद तक इन तमाम चीजों पर निगरानी रखता है जिससे ज्यादातर फिल्में इस खेल का हिस्सा नहीं बन पाती हैं लेकिन नेटफ्लिक्स (Netflix), अमेजन (Amazon Prime) और बालाजी जैसे प्लेटफार्मों के लिए कोई भी सेंसरबोर्ड नही होता है. इसी का फायदा फिल्म या वेब सीरीज के निर्माता जमकर उठाया करते हैं. वेब सीरीज में अधिकतर विवादास्पद चीजों को जमकर परोसा जाता है. सेक्स, भद्दी गालियां और गैरसामाजिक पहलुओं पर विशेष ध्यान रखा जाता है. इन प्लेटफार्म के दर्शक अधिकतर युवा वर्ग के ही होते हैं, जिनके लिए ऐसे सीन खासतौर पर परोस कर उन्हें आकर्षिक करने का कार्य खुलेआम किया जा रहा है.

Netflix, Boycottnetflix, Krishna And His Leela, Controversy हालिया दिनों में किसी भी प्लेट फॉर्म पर कोई भी वेब सीरीज आई हो उसे देखें तो मिलता है कि गाली से लेकर अश्लीलता तक हर चीज को कुछ ज्यादा ही परोसा गया है

पिछले कुछ सालों से यह चलन तेज़ी से बढ़ता जा रहा है. जिन सीन पर फिल्मों में सेसंर की कैचिंया चल जाती है उन सीन को वेब सीरीज में डालने में किसी भी तरह कि कोई बाधा सामने नहीं आती है. सोशल मीडिया पर वेब सीरीज को सेंसर करने के लिए कई बार आवाज उठाई जा चुकी है लेकिन कई वेब सीरीज निर्माता वेब सिरीज में सेंसर के खिलाफ हैं वह इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला मानते हैं.

ताजा विवाद राणा दग्गूबाती की नई फिल्म "कृष्णा एंड हिज लीला" का है. इस फिल्म के मेन किरदार के नाम "कृष्णा" और "राधा" के जरिए विवाद उत्पन्न हो गया है. अब यह विवाद इतना तूल पकड़ चुका है कि ट्वीटर पर नेटफ्लिक्स का बहिष्कार हैशटैग ट्रेंड कर रहा है. फिल्म के विरोध करने वालों का मानना है कि सुनियोजित तरीके से भगवान के नामों का इस्तेमाल किया जा रहा है जिससे उनकी भावनाओं को ठेस पहुंच रही है.

फिल्म का विरोध तो अपनी जगह है लेकिन नेटफ्लिक्स का विरोध किसलिए हो रहा है यह समझ लेना भी जरूरी है. नेटफ्लिक्स का बहिष्कार इसलिए किया जा रहा है क्योंकि उसपर आरोप है कि वह जानबूझकर ऐसे कंटेंट को बढ़ावा दे रहा है जिससे धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ हो रहा हो. इससे पहले भी नेटफ्लिक्स के कुछ वेबसीरीज पर धार्मिक भावनाओं को आहत किया जा चुका है जिससे अब लोगों में इस प्लेटफार्म के खिलाफ ही गुस्सा पैदा हो गया है.

हालांकि नेटफ्लिक्स ही एकमात्र ऐसा प्लेटफार्म नहीं है जो विवादों में आया हो. कई बड़ी फिल्म इसी विवाद में घिर चुकी हैं और कई वेबसीरीज को भी इसी तरह का विरोध झेलना पड़ा था. इससे पहले लैला, सेक्रेड गेम्स, फैमिली मैन, कोड एम और पाताल लोक जैसे वेबसीरीज भी विरोध के स्वर को झेल चुकी हैं. इसके अलावा अनगिनत वेबसीरीजों में नग्नता, सेक्स और भद्दी गालियों का भरमार है जिस पर किसी भी तरह का कोई लगाम लगता नहीं दिख रहा है.

हालांकि जानकारों का ये भी कहना है कि ये सब फिल्म या वेबसीरीज की मार्केटिंग का हिस्सा होता है. किसी मुद्दे पर फिल्म को लेकर विवाद खड़ा करना भी फिल्म की मार्केटिंग प्लान में शामिल होता है और इसके लिए ट्विटर पर कोई हैशटैग ट्रेंड कराने का बजट भी पहले से ही निर्धारित होता है.

सवाल ये खड़ा होता है कि क्या अभिव्यक्ति का आजादी के नाम पर कुछ भी परोस देना किसी भी सूरत में जाएज है. भारत में पोर्नोग्राफी लीगल नहीं है लेकिन वेबसीरीज के निर्माता कुछ हद तक वही सबकुछ दर्शकों के सामने रखना चाहते हैं. क्या वह वक्त अब आ गया है कि भारत सरकार को इसके लिए भी कोई सेंसर का गठन करना चाहिए.

क्या एक बड़े युवा वर्ग के लोगों को इस तरह का कंटेंट परोसना कुछ गलत नहीं है. बढ़ते अपराध के दौर में इस तरह की नग्नता को क्या बर्दाश्त किया जाना चाहिए. और सबसे खास सवाल यह कि क्या किसी भी धर्म की भावनाओं के साथ खिलवाड़ यूं ही होते रहना चाहिए.

क्या भारत सरकार कोई ठोस कदम उठा कर किसी भी फिल्म या वेबसीरीज में किसी भी धर्म के पवित्र नामों के इस्तेमाल पर कोई नियम नहीं बना सकती है. क्या इसके लिए भी कोई बड़ा आंदोलन होना चाहिए. मन में कई तरह के सवाल नाचा करते हैं लेकिन इसके पहल के लिए अब किसी को जिम्मेदारी उठा लेने की ही आवश्यकता है.

किसी भी धर्म के पवित्र नामों का इस्तेमाल अपनी या अपने फिल्मों की मार्केटिंग के लिए हरगिज़ नहीं होनी चाहिए. फिल्म निर्माताओं को भी अपनी एक हद बनानी चाहिए इस तरह का भद्दा खेल खेलकर दर्शकों का जमावड़ा करना सही नहीं है. भारत के लोग धार्मिक और सामाजिक किस्म के होते हैं उनकी भावनाओं की कद्र हर हाल में होनी चाहिए. इस पर किसी भी प्रकार का कोई भी फायदा उठाने से बचना चाहिए.

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मशाहिद अब्बास मशाहिद अब्बास

लेखक पत्रकार हैं, और सामयिक विषयों पर टिप्पणी करते हैं.

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