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Updated: 28 अक्टूबर, 2016 03:05 PM
सिद्धार्थ हुसैन
सिद्धार्थ हुसैन
  @siddharth.hussain
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‘ये सवाल मत पूछना’ हर पत्रकार इस बात से कभी न कभी रूबरू हुआ होगा. ‘ये सवाल मत पूछना’ महज़ एक वाक्य नहीं है, बल्कि एक तानाशाह अंदाज है, खुदगर्ज सोच है, अपने रसूख के जरिये दूसरे को दबाने का तरीका है और आजकल ये वाक्य हर उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुनाई पड़ता है जहां करण जौहर ‘ऐ दिल है मुश्किल’ की अपनी टीम के साथ पहुंचते हैं.

हाल ही में मुंबई के मामी फिल्म फेस्टिवल में जब भी किसी पत्रकार ने आज के माहौल से जुड़े सवाल पूछना चाहा करण जौहर के चाहनेवालों और पीआर टीम ने बीड़ा उठा रखा था कि सवाल ना पूछने दिया जाये. अगर पत्रकार किसी ऐसे अखबार या चैनल से हो जिसे करण जौहर की टीम कम आंकती है तो उस पत्रकार को धमकी भरे स्वर सुनने पड़ सकते हैं कि अगली बार या तो उसे इंटरव्यू नहीं दिया जायेगा या उसे बड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बुलाया नहीं जाएगा. पब्लिकेशन का रसूख देखकर व्यवहार करना कोई नई बात नहीं है. जब इन्हें खुद जरूरत होती है तो फोन करके भी बुलाते हैं, मेसेज के जरिये याद भी दिलाते हैं और कॉफी के साथ प्यार भरे अंदाज में अपनी फिल्म को प्रमोट करने की गुहार भी लगाते हैं.

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मीडिया पर 'ये सवाल मत पूछना' कहकर सवाल न पूछने देने का दबाव बनाया जाता है

अपने दफ्तर में बुला बुला कर करण जौहर ने रिलीज के पहले हर गाना दिखाया, ट्रेलर दिखाये, लेकिन जब मौका आया सवाल पूछने का तो जनाब गायब. दिखेंगे भी तो पहले से तैयारी के साथ, क्या पूछने दिया जाये और क्या नहीं. ये भी एक क़िस्म की कायरता ही है. सहूलियत भरे सवाल पुछवाना इनकी और इन जैसों की आदत हो चुकी है. सवाल का जवाब न देना आपका हक हो सकता है, ठीक वैसे ही जैसे पत्रकार का हक सवाल पूछना है. लेकिन सवाल पूछने पर रोक लगाने का हक किसी को भी नहीं है.

‘पाकिस्तानी आर्टिस्ट को बैन करने से आतंकवाद खत्म नहीं होगा’ टीवी की एक पत्रकार से करण जौहर ने जब ये बात कही तो उन्हें उम्मीद नहीं थी कि उनके विचार से विवाद खड़ा हो जाएगा, लेकिन जब किसी पॉलिटिकल पार्टी ने धमकी दी तो इस हद तक खामोश हुए कि विवाद के सुलझने के बाद भी वो खामोश ही हैं. सैनिक फंड में 5 करोड़ देने की शर्त के बारे में बात करना तो दूर इस ख़याल को वो सुनना भी नहीं चाहते. उपाय एक ही है आप सबसे मिलना ही छोड़ दीजिये लेकिन वो मुनासिब नहीं है.

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 अपनी पीआर टीम के जरिए पत्रकारों को दबाया जाता है

अपनी टीम के जरिये पत्रकारों को दबाना इन्हें सही लगता है, ठीक वैसे ही जैसे कुछ पॉलिटिकल पार्टीज ने इन्हें अपने रसूख के हिसाब से दबाया, जैसे को तैसा ही मिलता है. खुद को सॉफ्ट टार्गेट कहना फिल्म इंडस्ट्री की आदत बन चुका है. जब तक खुद को सॉफ्ट समझेंगे ऐसा ही होगा. बेबाकी से अपनी बात रखनेवालों की संख्या बहुत कम है और कुछ तो ऐसे भी हैं जैसे अनुराग कश्यप या कपिल शर्मा जो ट्विटर पर प्रधानमंत्री को टैग कर तंज और फूहड़ता के साथ अपनी बात कहते हैं. और जब लगता है कि मामला गड़बड़ हो गया तो मीडिया के सिर मढ़ना इन्हें खूब आता है.

‘मैं कहना कुछ चाहता था मीडिया ने मेरी बात को तोड़मोड़ के पेश किया’ जबकि यही अनुराग कश्यप मीडिया के गुणगान करते थक नहीं रहे थे जब इनके बैनर की फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ रिलीज़ के नजदीक थी और सेंसर में अटकी पड़ी थी. तब पहलाज निहलानी पर हर मौके पर प्रहार करते दिख रहे थे. तब इसी मीडिया की वो तारीफ कर रहे थे और शुक्रिया भी, और जब आग खुद की वजह से खुद के दामन पर लगी तो यही अनुराग कश्यप इस हद तक गिर गए कि जब एक महिला पत्रकार ने इन्हें मेसेज किया इंटरव्यू के लिए, जिसमें वो ये पूछना चाहती थी कि आपने प्रधानमंत्री को टैग करते हुए अपनी बात कही इस पर वो अब क्या कहना चाहेंगे, तो अनुराग ने ‘ना’ में जवाब दिया. फिर उस महिला पत्रिकार का नंबर और उसके मेसेज की फोटो खींचकर सोशल मीडिया पर डाल दी.

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 अनुराग कश्यप जब विवादों में घिर गए तो सारा मामला मीडिया के सर मढ़ दिया

दरअसल कश्यप जी ये दिखाना चाह रहे थे कि मीडिया उनके पीछे रहती और उन्हें कोई फर्क नहीं पडता, सहूलियत भरे दबंग कश्यप, जब आपके बैनर की कोई भी फिल्म रिलीज हो तो प्रेस कॉन्फ्रेंस या फिल्म का प्रचार करने के लिये इंटरव्यू भी मत दीजियेगा क्योकिं आपको तो कोई जरूरत है नहीं. लेकिन आपको क्या कहें आप तो वही हैं जिन्होंने अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘ब्लैक’ के लिये उनकी जी भर कर बुराई की थी, अनिल कपूर को नॉन एक्टर कहा था, करण जौहर को बुरा कहा था. आज वो सबसे अच्छे दोस्त हैं और जब जरूरत पड़ी तो इन सबके साथ काम भी किया (अनिल कपूर के साथ नहीं लेकिन बेटे हर्शवर्धन इनके बैनर की अगली फिल्म कर रहे हैं). वैसे इस अंदाज को मौकापरस्ती भी कहते हैं. देखना दिलचस्प होगा जब अनुराग अपनी अगली फिल्म के प्रचार के वक्त मिलेंगे. उम्मीद है तब तक वो फिर किसी विवाद में ना फंसे वरना फिर सुनना पड़ सकता है ’ये सवाल मत पूछना’.

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 अपनी फिल्मों के प्रमोशन के लिए मीडिया की ही जरूरत पड़ती है

यहां कोई निजी रंजिश नहीं है जो सिर्फ करण जौहर या अनुराग कश्यप की बात हो रही है. चूंकि इन लोगों ने ताजा-ताजा इस वाक्य का इस्तेमाल किया इसलिये शुरूआत इनसे हुई, वरना जब शाहरुख खान ने कहा था कि लोग टॉलेरेंट कम हैं, इस बात पर बवाल हुआ. आमिर खान ने जब कहा कि उनकी पत्नी के मन में देश छोड़ने का विचार आता है, तब इनकी बातों से विवाद खड़ा हुआ, तो इन्होंने इन बातों पर और खुलकर बात करने के बजाय ये शर्त लगाना शुरू कर दी कि ‘ये सवाल मत पूछना’ वरना बात और मुलाकात दोनों न हो पाएगी. बाकी खुद वो हक रखते हैं ये कहने का कि मीडिया की वजह से सब गड़बड़ी होती है.

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 सलमान खान भी कई बार मीडिया से बदतमीजी कर चुके हैं

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वैसे मीडिया से नफरत करनेवाले सलमान खान भी प्रमोशन के दौर में भले ही अब टीवी इंटरव्यू ना करें लेकिन अखबारों से अब भी बात कर लेते हैं और ‘बींग ह्यूमन’ का कोई फंक्शन हो तो मीडिया को बुलवाने में चूकते भी नहीं हैं. लेकिन अपनी मर्जी के सवाल पूछने वाले पत्रकार ही उन्हें पत्रकार लगते हैं बाकी सब तो उनके दुश्मन हैं. वैसे इस लिस्ट में फिल्म इंडस्ट्री के और भी नाम जुड़ सकते हैं, मैं लिखते लिखते थक सकता हूं लेकिन नामों की फेहरिस्त थमेगी नहीं. वैसे गौर ये भी करना चाहिये कि वो कौन से सवाल हैं जो इन लोगों को अच्छे लगते हैं.

1) फिल्म बनाने में कोई तकलीफ हुई?

2) आप कौन सा किरदार निभा रहे हैं?

3) कहां शूटिंग की?

4) फलाने एक्टर को ही क्यों कास्ट किया?

5) थोड़ा सा कहानी के बारे में बताएं?

6) फिल्म कब रिलीज़ हो रही है? ....वग़ैरह वग़ैरह वग़ैरह

लेकिन अगर खुद की मूर्खता की वजह से कोई विवाद हो तो बात फिर वही ‘ये सवाल मत पूछना’. लेकिन हम तो सवाल पूछेंगे और जवाब ना मिलने पर सवाल उठाएंगे भी, आप अपनी अगली प्रेस कॉन्फ्रेंस में बुलाएं या ना बुलाएं.

लेखक

सिद्धार्थ हुसैन सिद्धार्थ हुसैन @siddharth.hussain

लेखक आजतक में इंटरटेनमेंट एडिटर हैं

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