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Updated: 21 अक्टूबर, 2016 09:57 PM
नरेंद्र सैनी
नरेंद्र सैनी
  @narender.saini
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रात को सोने जा रहा था कि टीवी पर 'ऐ दिल है मुश्किल' को लेकर हंगामा नजर आया. कुछ राष्ट्रवादी फिल्म की रिलीज को रोकने के लिए जी-जान एक किए हुए थे और एक पाकिस्तानी कलाकार फवाद खान के होने की वजह से फिल्म रिलीज को रोकने के लिए किसी भी हद से गुजर जाने को बेताब थे जबकि फिल्म के प्रोड्यूसर करन जौहर को एक वीडियो जारी करके अपने ही देश में अपनी देशभक्ति सिद्ध करनी पड़ी और फिल्म की रिलीज के लिए गुहार लगानी पड़ी. तमाशा अपने उफान पर था, और इन सभी बातों के बीच कब मेरी आंख लग गई, पता ही नहीं चला.

कहते हैं जो सारे दिन हमारे दिमाग में रहता है, वही सपनों में किसी न किसी रूप में नजर आ जाता है. मेरे साथ भी ऐसा हुआ. मैं सीधे उत्तरी दिल्ली के एक सिनेमाघर के आगे था. तारीख थी 28 अक्टूबर. मौका "ऐ दिल है मुश्किल" का पहला दिन, पहला शो. एक तरफ कुछ राष्ट्रवादी फवाद खान की वजह से फिल्म के शो की ऐसी-तैसी करने के लिए तैयार थे तो दूसरी ओर फिल्म के शो सुचारू ढंग से चलाने के लिए पुलिस और प्रशासन दुरुस्त.

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राष्ट्रवादी अपना काम कर रहे थे और पुलिस अपना

सिनेमाघर के बाहर इक्का-दुक्का पुलिसवाले खड़े नजर आए, और निश्चित दिखे. इस निश्चितता की वजह संभवतः सरकार की ओर से मिला आश्वासन हो सकता है. सिनेमाघर पर भीड़ कुछ ज्यादा नहीं थी क्योंकि फिल्म के निर्माता यह समझ ही नहीं पाए कि फिल्म किसके नाम पर बेची जाए? शुरू में जहां यह रणबीर, अनुष्का और ऐश्वर्या का प्रेम त्रिकोण लग रही थी, वहीं रिलीज की तारीख आने तक अनुष्का को साइडलाइन करके रणबीर कपूर और ऐश्वर्या राय के बीच गर्मागर्म रिश्ते को लेकर सुर्खियों में रह गई. युवाओं के चहेते और लड़कियों के फेवरिट फवाद खान को पाकिस्तान के साथ खराब रिश्तों की वजह से डाउनप्ले किया गया.

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मैं टिकट खरीदकर अंदर पहुंचा तो लास्ट रो में थोड़ी हलचल थी, और यहां कॉलेज के लड़के लड़कियां बैठे थें, जबकि कुछ ही दूरी पर अधेड़ उम्र के दो जोड़े और उनसे कुछ ही दूरी पर कुछ बिंदास लौंडे भी फिल्म देखने आए हुए थे. हॉल में लगभग 40 फीसदी ऑक्युपेंसी थी. कुल मिलाकर फिल्म शुरू हुई. लोग शांति के साथ फिल्म देखने लगे. गाने ठीक-ठाक लग रहे थे, और ऐसा कुछ भी नहीं था कि सीटियां बजतीं.

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 रणबीर को लेकर जनता में ज्यादा क्रेज नहीं.

रणबीर को लेकर कुछ क्रेज जनता में नहीं दिखा रहा था, हालांकि जैसे फवाद स्क्रीन पर आया तो कुछ राष्ट्रवादी लोग खड़े होकर चिल्लाने लगे तो तभी पीछे सो कॉलेज की लड़कियों ने बिंदास अंदाज में कहा, “अरे, भैया शोर क्यों मचा रहे हो!!!” वो बंदे माने नहीं और जब फवाद स्क्रीन से हटा तो उनकी देशभक्ति का भूत हवा हुआ. लेकिन राष्ट्रवादी लहर में जकड़े ये बांके जब भी फवाद स्क्रीन पर आता तो भारत माता की जय के नारे लगाते...उधर, कॉलेज के बच्चों के समूह की ओर से उन्हें शांत रहने के लिए शोर मचता और कई बार उनकी हूटिंग भी हुई.

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फवाद का स्क्रीन पर आना कोई हटकर नहीं था. बिल्कुल एक सामान्य-सा लगा. यह बात भी मानने वाली है कि फिल्म में ऐश्वर्या के हॉट अंदाज पर फवाद का अंदाज हावी पड़ता दिखा और कुछ देर शोर मचाने के बाद भी हॉल में उन हंगामाबाजों को कोई समर्थन नहीं मिला. टॉर्चमैन के शांत कराने पर शांत हो गए और ऐश्वर्या और रणबीर की अनयुजूअल जोड़ी में कुछ नयनसुख लेने में जुट गए.

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 ऐश्वर्या के हॉट अंदाज पर फवाद का अंदाज हावी पड़ता दिखा

खिंचते-खिंचाते फिल्म खत्म हो गई. फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं दिखा जिसकी वजह से परदे फाड़े जाते या हॉल को आग लगाई जाती. परदे पर जो फवाद नजर आया वह एक कलाकार था, और वह सिर्फ फिल्म में अपना किरदार निभा रहा था. वह किरदार जो उसे उस समय मिला था जब भारत और पाकिस्तान के बीच माहौल इतना तनाव भरा नहीं था. उन्हें जो काम मिला उसको उन्होंने बखूबी निभाया, और जब भी वे स्क्रीन पर आते तो कॉलेज की लड़कियों की सीटियां बजना बंद नहीं होतीं. हालांकि वे अधेड़ उम्र वाले जोड़े में से एक की पत्नी ने भी खड़े होकर फवाद के आने पर तालियां बजाईं और उनके मियां सिर्फ मुस्काराकर रह गए.

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 फवाद खान की एंट्री पर कॉलेज की लड़कियों ने जमकर सीटियां बजाईं

हॉल से बाहर निकलती भीड़ की जुबान पर कुल मिलाकर फवाद का ही नाम था, और उनकी अदाओं का और उनके दिल के करीब लगने वाले चेहरे का. फिल्म जो थी वो थी ही लेकिन यह बात दिख गई कि भारत में सिनेमा एक जश्न की तरह है, और इस जश्न के दौरान हम यह भूल ही गए कि ये कलाकार किस देश के हैं और कौन क्या है. यह पहला दिन पहला शो था, शायद राष्ट्रवादी लोगों के निकलने का समय दूसरे शो से शुरू होगा, तब कुछ गतिविधियां देशभक्ति के नाम पर अंजाम दी जाएंगी. चलिए मैंने तो फिल्म देख ली और सूफी शायर बुल्ले शाह की ये लाइनें गुनगुनाते हुए हॉल से बाहर निकला, बुल्ला शाह है दोहीं जहानीं/ कोई ना दिसदा गैर…

इतने में ही मेरी नींद खुल गई. फवाद की मीठी-सी मुस्कान एकदम से आंखों के घूम गई, वह मुस्कान फवाद की थी, एक ऐक्टर की न कि किसी पाकिस्तानी आतंकी की...

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लेखक

नरेंद्र सैनी नरेंद्र सैनी @narender.saini

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सहायक संपादक हैं.

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