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Updated: 29 मई, 2022 04:35 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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भले ही KGF chapter 2 और यश की शान में दुनिया कसीदे पढ़ रही हो. लेकिन हैदराबाद के बंजारा हिल्स में कहानी अलग है. एरिया विपरीत धारा में चल रहा है. यहां फिल्म समेत यश को जमकर कोसा जा रहा है. ऐसा हो भी क्यों न. वजह खुद फिल्म ने दी है. असल में बंजारा हिल्स में रहने वाला एक 15 साल का लड़का फिल्म KGF chapter 2 के रॉकी भाई से कुछ इस हद तक प्रभावित हुआ कि उसने रॉकी भाई की देखा देखी सिगरेट की पूरी डिब्बी ख़त्म कर दी. बाद में लड़के की तबियत कुछ ऐसी बिगड़ी कि उसे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. प्राप्त जानकारी के अनुसार फिल्म में अपने पसंदीदा रॉकी भाई को देखकर लड़के ने एक के बाद एक कई सिगरेट पी. पहले किशोर को कफ की समस्या हुई बाद में उसे गले में जानलेवा दर्द हुआ. हालत बिगड़ने पर परिजन फ़ौरन ही किशोर को प्राइवेट हॉस्पिटल ले गए. अस्पताल में ये बात निकल कर सामने आई कि किशोर की ये हालत बहुत ज्यादा सिगरेट पीने के कारण हुई है.

युवक ने जो बातें डॉक्टर्स को बताई हैं, यदि उनपर यकीन किया जाए तो मिलता है कि केजीएफ चैप्टर 2’ के रिलीज होने के दूसरे हफ्ते बाद छात्र ने फिल्म देखी थी. उसने दो दिन में तीन बार यह फिल्म देखी. उस दौरान वह लगातार स्मोकिंग करता रहा. 15 साल का एक लड़का KGF chapter 2 के लीड यानी यश के रोल से कितना और किस हद तक प्रभावित हुआ?

KGF2, Yash, Film, Kid, Hyderabad, Cigarette, Intoxication, Sick, Treatmentहैदराबाद के बंजारा हिल्स में यश उनकी फिल्म केजीएफ और फिल्म में उनकी सिगरेट तीनों ही चर्चा का विषय है

इसका अंदाजा इसी से लगता जा सकता है कि वो अपनी असल जिंदगी में बिलकुल रॉकी भाई जैसा बनना चाहता था. किशोर को लगता था कि सिगरेट ही वो चीज है जो उसकी इमेज को पावरफुल बना सकती है. वो अस्पताल जहां किशोर को भर्ती कराया गया वहां के एक डॉक्टर ने मामले पर अपना पक्ष रखा है.

सेंचुरी हॉस्पिटल ( हैदराबाद का वो अस्पताल जहां लड़के का इलाज हुआ) के डॉक्टर रोहित रेड्डी के मुताबिक 'रॉकी भाई' जैसे किरदारों से किशोर आसानी से प्रभावित हो जाते हैं. ऐसे में यह युवक सिगरेट पीने लगा और सिगरेट से भरा पैकेट पीकर गंभीर रूप से बीमार हुआ.

डॉक्टर ने इस बात पर भी बल दिया कि फिल्में हमारे समाज में एक अत्यधिक प्रभावशाली तत्व हैं. फिल्म निर्माताओं और अभिनेताओं की नैतिक जिम्मेदारी है कि वे सिगरेट पीने या तंबाकू चबाने या शराब का सेवन करने जैसे कृत्यों को ग्लैमराइज न करें.डॉक्टर रोहित रेड्डी ने ये भी कहा कि 'रॉकी भाई' जैसे चरित्रों की कल्ट फॉलोइंग होती है और युवा जब इन्हें स्क्रीन पर देखते हैं तो इन्हें अपना खुदा मान बैठते हैं.

इसके अलावा भी डॉक्टर रोहिर रेड्डी ने तमाम बातें की हैं और कहा है कि जब बच्चे बड़े हो रहे हों तो मां बाप को उनका विशेष ध्यान रखना चाहिए. मां बाप जब भी बच्चे की गतिविधि को परिवर्तित होते देखें फ़ौरन ही उससे बात करें. इससे होगा ये कि बच्चा सुधर जाए. मामले के मद्देनजर जो कुछ भी दर्शन सेंचुरी हॉस्पिटल के डॉक्टर रोहित रेड्डी ने दिया है वो बिल्कुल सही है और हम उसका समर्थन करते हैं.

अब जो सवाल हमारे सामने है वो ये कि क्या वाक़ई ये संभव है? क्या आज के इस व्यस्तम समय में मां बाप के पास इतना समय है कि वो अपने बच्चे पर नजर रख पाएं?  भले ही फिल्मों को समाज का आईना कहा जाए. लेकिन जिस तरह का ये मामला है, कहीं न कहीं लड़के के अकलेपन या ये कहें कि कुंठाओं की भी तस्दीख कर देता है.

लड़के ने ऐसा क्यों किया इसपर हजार बातें हो सकती हैं लेकिन इस पूरे मामले का जो मनोवैज्ञानिक पक्ष है वो बस इतना है कि कहीं न कहीं लड़का आइडेंटिटी क्राइसिस का शिकार था. आप खुद बताइये. क्या 15 साल वो उम्र नहीं है जब बच्चा अपने जीवन में कई तरह के उतार चढ़ाव का सामना करता है. ध्यान रहे इस उम्र में दिमाग की अपेक्षा शरीर तेजी से बढ़ता है. और कई बार ऐसा होता है कि, इस मामले की तरह बच्चे किसी चीज के प्रभाव में आ जाते हैं और वो कर डालते हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए.

बहरहाल केजीएफ और यश दोनों की आलोचना को दरकिनार कर अगर हम ठंडे दिमाग से सोचें तो फिल्म से कहीं ज्यादा ख़राब किसी बच्चे का किसी के प्रभाव में आना है. बेहतर है मां बाप अपने बच्चे को स्पेस दें. बच्चा जितना ज्यादा दबेगा, उसमें रॉकी भाई बनने की भावना उतनी ही प्रभावी होगी. अंत में इतना ही कि ये तमाम बातें मजाक नहीं हैं. मां बाप को इन्हें गंभीरता से लेना चाहिए.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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