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Updated: 28 मई, 2022 02:52 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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गांव की मिट्टी की सोंधी खुशबू का एहसास दिलाने वाली, हमें हमारे जड़ों से जोड़ने वाली, गांवों की याद दिलाने वाली और परिवार की अहमियत समझाने वाली वेब सीरीज ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर बहुत ही कम संख्या में मौजूद हैं. तभी तो 'पंचायत' जैसी वेब सीरीज का दर्शक दिल से इंतजार करते हैं. रिलीज होते ही हाथों हाथ लेते हैं. उसकी लोकप्रियता में चार चांद लगा देते हैं. ऐसी वेब सीरीज का हर किरदार हमारे परिवार के सदस्यों जैसा लगता है. उनको देखना और सुनना फिल्म देखना नहीं बल्कि खुद उसे जीने जैसा लगता है. अमेजन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही वेब सीरीज 'पंचायत 2' के खुमार के बीच सोनी लिव पर एक नई वेब सीरीज 'निर्मल पाठक की घर वापसी' रिलीज हुई है. ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित इस वेब सीरीज में जाति-पात, ऊंच-नीच, छुआछूत, पुरुष प्रधानता, अशिक्षा, गरीबी और हॉरर किलिंग के साथ ग्रामीण राजनीति और गुंडई को भी दिखाया गया है.

राहुल पांडे और सतीश नायर के निर्देशन में बनी वेब सीरीज 'निर्मल पाठक की घर वापसी' में वैभव तत्ववादी, आकाश मखीजा, अलका अमीन, विनीत कुमार, पंकज झा, कुमार सौरभ, गरिमा सिंह और इशिता गांगुली जैसे कलाकार अहम भूमिका में हैं. हंसाते-हंसाते किसी भी गंभीर और संवेदनशील विषय को दर्शकों के सामने रख देने और समझाने की कला हर फिल्म मेकर में नहीं होती. लेकिन ये काम 'पंचायत' ने बखूबी किया है. इस वेब सीरीज में कॉमेडी और ड्रामे के बीच जिस तरह से महिला सशक्तिकरण, जनसंख्या नियंत्रण, अंधविश्वास, दहेज प्रथा और गांव की सियासत को पेश किया गया है, वो काबिले-तारीफ है. कुछ इसी तरह 'निर्मल पाठक की घर वापसी' में भी सामाजिक बदलाव की पुरजोर वकालत की गई है. इसमें कई बार 'मिर्जापुर' और 'पंचायत' जैसी वेब सीरीज की झलक भी दिखती है. हालांकि, किसी भी वेब सीरीज की तुलना 'पंचायत' से करना बेमानी है.

1_650_052722094015.jpgफिल्म 'बाजीराव मस्तानी' फेम एक्टर वैभव तत्ववादी 'निर्मल पाठक की घर वापसी' में लीड रोल में हैं.

वेब सीरीज 'निर्मल पाठक की घर वापसी' की कहानी के केंद्र में अभिनेता वैभव तत्ववादी का किरदार निर्मल पाठक है, जो कि 24 साल से अपने गांव नहीं गया है. लंबे अरसे बाद जब वो अपने गांव जाता है, तो उसका भव्य स्वागत किया जाता है. पूरे गांव के लोग उसके लिए सड़क के किनारे खड़े रहते हैं. बचपन के दोस्त यार उसके साथ होते हैं. लंबे समय के बाद उसे देखकर उसकी मां संतोषी हैरान रह जाती है. परिवार और गांव के बीच रहते हुए निर्मल नोटिस करता है कि समय के साथ यहां के लोग बदल नहीं पाए हैं. गांव में अभी भी जाति-पात, ऊंच-नीच और छुआछूत चरम पर है. नाली साफ करने वाले बुजुर्ग यदि किसी को छू भी दे तो वो अपना घर छोड़ देता है. घर पर काम करने वाले नौकरों को चीनी मिट्टी के बर्तन में बने कप में चाय दी जाती है, जबकि बाकी लोग स्टील की कप में चाय पीते हैं. शादी में आज भी दलितों के बच्चों को समारोह स्थल से दूर खाना खिलाया जाता है.

निर्मल पाठक इन सभी सामाजिक व्यवस्थाओं और परंपराओं के खिलाफ खड़ा होता है, तो घर के लोग उसका विरोध शुरू कर देते हैं. उसके चाचा माखनलाल (पंकज झा) कहता है कि ये सब उसके खून का असर है. यहीं निर्मल को ये भी पता चलता है कि उसके पिता घर छोड़कर चले गए थे. उसकी मां बताती है कि उसकी तरह उसके पिता ने भी बदलाव की बात की थी. इसलिए उनको घर छोड़कर जाना पड़ा. संतोषी कहती हैं, ''गांव का यही रिवाज है, जो बदलाव की बात करता है उसे ही बदल देते हैं''. चाचा के विरोध के बाद नाराज निर्मल भी घर और गांव छोड़कर जाने लगता है, तो उसकी मां कहती हैं, ''छोड़कर जाना बहुत आसान होता है, रुककर बदलना बहुत मुश्किल काम''. मां की बात उसके दिल में उतर जाती है. वो शहर जाने की बजाए गांव में ही रुककर इन रूढियों-कुरीतियों के खिलाफ काम करने और बदलाव की योजना बनाता है. इसमें उसका चचेरा भाई भी उसका साथ देता है.

वेब सीरीज 'निर्मल पाठक की घर वापसी' में ग्रामीण भारत के उस सार को बखूबी पकड़ा गया है, जिसे निर्देशक सतीश नायर और राहुल पांडे ने इस पांच एपिसोड की सीरीज में चित्रित करने की कोशिश की है. इस कॉमडी ड्रामा में कई सबप्लॉट्स हैं. जैसे कि निर्मल अपनी मां संतोषी के साथ फिर से जुड़ता है, उसका चचेरा भाई आतिश अपनी इच्छा के खिलाफ राजनीतिक वजहों से रीना से शादी करता है, चचेरी बहन निभा को पुरुषों को भोजन देने के बाद पानी देने के लिए मजबूर किया जाता है, ऊंची जाति की मानसिकता में जी रहे पाठक परिवार के लोग नीची जाति के लोगों के साथ दोयम दर्जे का सलूक करते हैं, उनकी नीचता का एहसास दिलाने के लिए अलग बर्तन में खाना-पानी देते हैं. शुरुआती एपिसोड थोड़े कमजोर हैं, लेकिन तीसरे एपिसोड के बाद जबरदस्त इमोशनल ड्रामा देखने को मिलता है. यहां सीरीज के लेखक राहुल पांडे की लेखनी का कमाल देखने को मिलता है, जिन्होंने पात्रों की विचित्रता यथार्थवादी रहते हुए एक दूसरे के लिए एक अच्छे प्रतिरूप के रूप में काम कराया है. राहुल ने सीरीज का निर्देशन भी किया है. उनकी पकड़ भी दिखाई देती है.

वेब सीरीज के लीड एक्टर वैभव तत्ववादी को कई हिंदी और मराठी फिल्मों में देखा जा चुका है. साल 2015 में रिलीज हुई रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण की फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' में उन्होंने मराठा 'चिमाजी अप्पा' का किरदार और साल 2019 में रिलीज हुई फिल्म 'मणिकर्णिका: झांसी की रानी' में 'पूरन सिंह' का किरदार निभाया था. इस सीरीज में भी उन्होंने निर्मल पाठक का किरदार बहुत सहजता से निभाया है. यही वजह है कि वो दर्शकों के साथ तुरंत जुड़ जाते हैं. निर्मल एक बुद्धिमान और साहसी व्यक्ति है, जो यह बताता है कि उसके आसपास के लोगों के लिए क्या सही है और क्या गलत है? भले ही यह करना मुश्किल है, लेकिन वो करता है और अंत में सफल भी होता है. निर्मल के बाद दूसरा सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला किरदार संतोषी का है, जिसे अभिनेत्री अलका अमीन ने निभाया है. एक धैर्यवान पत्नी है, जिसने बिना किसी शिकायत के चुपचाप घर के काम करते हुए अपने पति के वापस लौटने का दशकों इंतजार किया, लेकिन जब उसे पता चलता है कि उसका पति कभी वापस नहीं आएगा, उस वक्त अलका ने जिस तरह से अपने भाव व्यक्त किए हैं, वो उनकी बेहतरीन अदाकारी का शानदार नमूना पेश करते हैं. विनीत कुमार, पंकज झा, कुमार सौरभ ने भी अपने-अपने किरदार को अच्छे से निभाया है.

कुल मिलाकर, सोनी लिव पर स्ट्रीम हो रही वेब सीरीज 'निर्मल पाठक की घर वापसी' ग्रामीण भारत का दर्शन कराती है. इसके जरिए हमारे गांव-समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों और रुढियों पर करारा चोट किया गया है. यदि गांव, वहां के लोग, वहां की राजनीति और वहां की व्यवस्था समझना चाहते हैं, तो आपके लिए अच्छी सीरीज हो सकती है.

iChowk.in रेटिंग: 5 में से 3 स्टार

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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