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Updated: 25 नवम्बर, 2018 08:52 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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जल्द ही 'किलो' की परिभाषा बदलने वाली है. अभी तक किलो का भार उस वस्तु के बराबर माना जाता था, जिसे फ्रांस के पेरिस में रखा गया है. इसे यहां पर 'इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ वेट्स एंड मेजर्स' में शीशे के घंटीनुमा जार में रखा गया है. यह वस्तु प्लेटिनम और इरीडियम की बनी है, जो सिलेंडरनुमा है. इसे एक ऐसे वॉल्ट में रखा गया है, जिसका तापमान कंट्रोल रहता है. अभी तक तो इसी सिलेंडरनुमा वस्तु को किलो के बराबर माना जाता था, जिसे Le Grande K या Big K के नाम से भी जाना जाता है. लेकिन अब 60 देशों के वैज्ञानिकों ने इसे बदलने की मंजूरी दे दी है. यानी अब किलो को का वजह Big K के वजन से निर्धारित नहीं होगा.

विज्ञान, वैज्ञानिक, तकनीकइसी सिलेंडरनुमा वस्तु को किलो के बराबर माना जाता था, जिसे Le Grande K या Big K के नाम से भी जाना जाता है.

फ्रांस के वर्सेलेस में General Conference on Weights and Measures की 26वीं बैठक हुई, जिसमें 60 देशों से प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. इसमें किलो की परिभाषा को बदले जाने पर बात की गई. इसमें फैसला किया गया कि किसी वस्तु का भार मापने के लिए किसी भौतिक अवस्था पर निर्भर रहने के बजाय भैतिक विज्ञान के एक फंडामेंटल फैक्टर का इस्तेमाल किया जाएगा, जिसे प्लैंक्स (Planck's) कॉन्स्टैंट कहते हैं. यह नंबर प्रकाश के इलिमेंट्री पैकेट्स 'फोटोन्स' के व्यवहार को दिखाता है. प्लैंक्स कॉन्स्टैंट की वैल्यू 0.000000000000000000000000000000000662607015 मीटर स्क्वायर्ड किलोग्राम प्रति सेकेंड होती है.

एक किलोग्राम उन 7 इकाइयों में से एक है, जिनके जरिए सभी चीजों को मापा जाता है. इसके अलावा अन्य 6 इकाइयां मीटर, सेकेंड, मोल, एंपियर, केल्विन और कैंडिला हैं. इन्हीं की वजह से मैन्युफैक्चरिंग, कॉमर्स, इनोवोशन, विज्ञान और अन्य कई चीजों में स्थिरता सुनिश्चित की जाती है.

International Bureau of Weights and Measures के रिसर्च फिजिसिस्ट रिचर्ड डेविस के अनुसार इनमें से अधिकतर इकाइयां प्रकृति पर आधारित हैं. लेकिन आखिरकार ये सब प्रैक्टिकल साबित नहीं होतीं. जैसे- एक मीटर का मतलब उत्तरी ध्रुव से लेकर भूमध्य रेखा तक की दूरी का 1/1,00,00,000 वां हिस्सा है. इसी तरह एक किलो का भार एक लीटर डिस्टिल्ड पानी यानी आसुत जल के जमे हुए स्वरूप के द्रव्यमान के बराबर होता है. रिचर्ड कहते हैं कि उस समय तकनीक या विज्ञान इतना आगे नहीं था, इसलिए 1799 में दो प्लेटिनम स्टैंडर्ड बनाए गए- एक मीटर की रॉड और 1 किलोग्राम का सिलेंडर. प्रोटोटाइप को 1889 में दोबारा बदला गया और प्लेटिनम-इरीडियम से सिलेंडर बनाकर शीशे के जार में बंद कर दिया गया.

विज्ञान, वैज्ञानिक, तकनीकएक तय तापमान और दबाव के साथ इस मेटैलिक सिलिंडर को सालों तक सुरक्षित रखा गया ताकि इसके वजन में फर्क न आए. अब इसी झंझट से मुक्ति मिल जाएगी.

National Institute of Standards and Technology टीम के प्रमुख Stephan Schlamminger कहते हैं कि हर भौतिक वस्तु के साथ कुछ दिक्कतें होती हैं. कोई भी वस्तु हमेशा नहीं रह सकती. कॉफी के कप टूट जाता है, कपड़े फट जाते हैं, पाइप में जंग लग जाती है. इसी तरह वॉल्ट में रखी चीज भी हमेशा एक जैसी नहीं रहेगी.

घट रहा है Big K का वजन

Big K को बचाए रखने के लिए वैज्ञानिकों ने इसकी बहुत सारी डुप्लिकेट कॉपी बना लीं, ताकि दुनियाभर के रिसर्चर उसका इस्तेमाल अपनी रिसर्च करने में कर सकें. 130 सालों में सिर्फ 3 बार ऐसा हुआ है, जब Big K वॉल्ट से बाहर निकाला गया है, ताकि कॉपी बनाए गए सिलेंडरों से उसकी तुलना हो सके. लेकिन जब भी तुलना के लिए Big K को वॉल्ट से बाहर निकाला जाता है, वैज्ञानिकों को भार में कमी देखने को मिलती है. Big K का वजन लगातार कम होता जा रहा है और पूरी दुनिया को उसी के हिसाब से वजन को एडजस्ट करना होगा क्योंकि Big K का वजन बिल्कुल एक किलो है, वही आधार है. यह पाया गया कि Big K का वजन उसकी डुप्लिकेट कॉपी के मुकाबले 50 माइक्रोग्राम तक कम हो गया है- करीब नमक के एक छोटे दाने जितना कम. भले ही इससे आम जन जीवन पर कोई असर ना पड़े, लेकिन रिसर्च करने, मेडिकल दुनिया में और वैज्ञानिकों के लिए उनकी लैब में 50 माइक्रोग्राम से काफी कुछ बदल सकता है.

भार में आ रही लगातार इस कमी को रोकने के लिए General Conference on Weights and Measures ने 2011 में एक रिजॉल्यूशन पास किया, जिसके तहत किलोग्राम और तीन अन्य इकाइयों को बदलने का प्रस्ताव रखा गया. अन्य तीन इकाइयां एंपियर, केल्विन और मोल हैं. Schlamminger कहते हैं कि अब एक किलो के 10,00,00,000 वें हिस्से को भी मापा जा सकता है. उन्होंने कहा कि विज्ञान में परफेक्ट जैसी कोई चीज नहीं होती है. हमेशा थोड़ा बहुत कम-ज्यादा होता है और आपको तय करना होता कि क्या इतना सही है? बैठक में वैज्ञानिकों ने इसी पर फैसला किया. अब नया बदलाव 20 मई 2019 से लागू हो जाएगा. इसकी वजह से आम जन-जीवन पर तो कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन कार के कंपोनेंट बनाने, नई दवाइयां बनाने और साइंस के उपकरण बनाने में इसकी वजह से बड़ा असर पड़ेगा.

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