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Updated: 30 नवम्बर, 2018 04:05 PM
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दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनियों में से एक है गूगल. वो कंपनी जिसने हमें सिखाया कि सब कुछ हमसे सिर्फ एक इंटरनेट सर्च दूर है. खैर, इस कंपनी के टेक्निकल इनेवोशन की तारीफ लंबे समय से होती आ रही है, लेकिन इस बार जो गूगल करने जा रही है वो इसे यकीनन अन्य सभी टेक कंपनियों से अलग बनाती है. यहां बात हो रही है गूगल के एक ऐसे प्रोजेक्ट की जिसमें कंपनी दुनिया को मच्छरों से मुक्त बनाना चाहती है. गूगल दुनिया को मच्छरों से फैलने वाली सभी बीमारियों से भी मुक्त करवाना चाहती है.

गूगल असल में एक ऐसा प्रोजेक्ट शुरू कर चुकी है जिसमें मच्छरों को जड़ से खत्म करने की बाद की जा रही है. इस प्रोजेक्ट का नाम है 'Debug Fresno'. इसे गूगल की पेरेंट कंपनी अल्फाबेट ने लॉन्च किया है. इसे करने का तरीका भी बहुत अजीब है. गूगल असल में लाखों Aedes Aegypti मच्छरों को खुला छोड़ेगा.

मच्छर, गूगल, बीमारी, साइंसगूगल की प्रोजेक्ट वैन

इन्हें आम मच्छर मत समझिए-

गूगल की तरफ से कुछ भी आम नहीं हो सकता. जिन मच्छरों को खुले में छोड़ने की बात हो रही है वो असल में लैब में ब्रीड किए गए मच्छर हैं. यानी हाईटेक मच्छर. ये आकार में काफी छोटे हैं और उन्हें एक वैन के जरिए अलग-अलग इलाकों में रिलीज किया जा रहा है. ये इसलिए किया जा रहा है ताकि बीमारी फैलाने वाले मच्छरों की पूरी प्रजाती को नष्ट किया जा सके.

अल्फाबेट कंपनी की साइंस टेक लैब Verily में इन्हें बनाया गया है. ये सभी नर मच्छर हैं जिन्हें एक ऐसे बैक्टीरिया से इन्फेक्ट किया गया है कि उन मच्छरों की प्रजनन क्षमता खराब हो जाए. इस बैक्टीरिया को Wolbachia back कहा जाता है.

मच्छर, गूगल, बीमारी, साइंसवेरिली लैब में पनप रहे मच्छर (फोटो सोर्स- ब्लूमबर्ग)

ये मच्छर जब मादा मच्छरों के साथ प्रजनन करेंगे तो ये बैक्टीरिया उनके शरीर में चला जाएगा. ऐसे में मच्छरों की आबादी कुछ ही समय में काफी कम हो जाएगी. और मच्छर पैदा नहीं हो सकेंगे. इस तकनीक को sterile-insect technique कहा जाता है जिससे आबादी कम करने का तरीका होता है उसके बच्चे पैदा करने की क्षमता को ही खत्म कर देना.

जहां तक मौजूदा रिजल्ट की बात है तो इस प्रोजेक्ट को सक्सेसफुल माना जा रहा है. पिछले 6 महीने में गूगल की तरफ से 15 मिलियन मच्छर खुले में छोड़े जा चुके हैं. इससे मच्छरों की संख्या दो तिहाई घट गई है. Verily लैब ने ये घोषणा की है कि इस तकनीक के कारण मादा Aedes Aegypti मच्छरों की संख्या 95 प्रतिशत तक कम हो गई है. मच्छरों का पहला बैच अप्रैल 2018 में छोड़ा गया था.

क्यों यही मच्छर है जरूरी?

Aedes Aegypti एक बड़ी परेशानी है क्योंकि यही मच्छर है जो अपने अंदर जीका, डेंगू जैसी बीमारियों के वायरस लेकर चलते हैं और इन्हीं के कारण बीमारियां फैलती हैं. कंपनी अपने इस प्रोजेक्ट से बेहद खुश है और अगर वाकई गूगल की ये तरकीब काम करती है तो दुनिया भर में लाखों लोगों की मदद हो सकती है. हालांकि, अभी तक ये प्रोजेक्ट सिर्फ टेस्ट रन में है और आने वाले समय में ये किन देशों में जाएगा और कितना सफल हो पाएगा ये सब अभी भी साफ नहीं हो पाया है.

मच्छर, गूगल, बीमारी, साइंसएक खास तरह के मच्छरों से ही ये एक्सपेरिमेंट किया जा रहा है

कैसे हो रहा है काम?

रोबोट्स लारवा से भरे हुए कंटेनर जिनमें हवा और पानी मौजूद हैं उन्हें उपयुक्त कंडीशन में रख रहे हैं ताकि वैसे ही मच्छर पैदा हो सकें जिन्हें बाहर छोड़ने में दिक्कत न हो. इसके अलावा, उन्हें वातानुकूल माहौल में रखा जाता है.

इसके बाद दूसरे रोबोट मच्छरों को साइज, सेक्स और शेप के आधार पर अलग करते हैं और फिर शुरू होती है टेस्टिंग. उसके बाद ही मच्छरों को रिलीज किया जाता है खुले में. वैज्ञानिक इन्हें जीपीएस के जरिए ट्रैक भी करते हैं. जिस वैन से मच्छरों को बाहर निकाला जाता है वो उसमें लेजर भी मौजूद है जो मच्छरों की गिनती कर सके, उसके अलावा, एक सॉफ्टवेयर भी है जो ये तय कर सके कि किस एरिया में कितने मच्छर छोड़ने हैं. मच्छरों की हर पीढ़ी इस एक्सपेरिमेंट के बाद पहले से छोटी होती जाती है और कुछ ही महीनों में वो बिलकुल गायब हो जाती है.

इस पूरे प्रोसेस में-

  • - जिनेटिक मॉडिफिकेशन
  • - छोटे-छोटे स्मार्ट ट्रैप्स जिनसे मच्छरों को जाल में फंसाया जा सके
  • - ऑटोमैटिक सॉर्टिंग जो रोबोट्स की मदद से होती है
  • - और फिर तय तरीके से बैक्टीरिया के साथ खुले में छोड़ना शामिल है.

अब ये तो तय है कि गूगल ने मच्छर मारने की इस पूरी प्रक्रिया को बहुत हाईटेक बना दिया है.

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