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Updated: 04 अप्रिल, 2018 02:51 PM
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कुछ समय पहले ही इसरो ( ISRO ) की तरफ से एक कम्युनिकेशन सैटेलाइट GSAT-6A लॉन्च किया गया था. यह सैटेलाइट तीसरे और अंतिम चरण के तहत 1 अप्रैल 2018 तक तो सही काम कर रहा था, लेकिन तभी इससे इसरो का संपर्क टूट गया. इससे संपर्क टूटने के बाद आज तीसरा दिन है, लेकिन अभी तक दोबारा संपर्क स्थापित नहीं हो सका है. आशंका यह भी जताई जा रही है कि इसके पीछे चीन का हाथ हो सकता है. इस सैटेलाइट को बेहद जरूरी जानकारियां हासिल करने के लिए करीब 270 करोड़ रुपए की लागत से बनाया गया था, लेकिन अब इससे संपर्क टूट चुका है.

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चीन की हो सकती है साजिश

रिटायर्ड कर्नल विनायक भट्ट ने कम्युनिकेशन सैटेलाइट GSAT-6A के गायब होने के पीछे चीन का हाथ होने की आशंका जताई है. इस ओर इशारा उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट पर एक तस्वीर साझा करते हुए किया. अपने ट्विटर अकाउंट पर उन्होंने लिखा है कि क्या चीन का नगारी स्पेस ट्रैकिंग स्टेशन इसरो के कम्युनिकेशन में हस्तक्षेत कर रहा है? हैरान होने वाली बात नहीं होगी, अगर ऐसा हो तो. एंटेना की फायरिंग डायरेक्शन (दिशा) देखिए. यहीं उन्होंने कम्युनिकेशन सैटेलाइट GSAT-6A से संपर्क टूटने के पीछे चीन का हाथ होने का इशारा भी किया.

कहां है ये स्पेस ट्रैकिंग स्टेशन?

चीन का ये स्पेस ट्रैकिंग स्टेशन चीन के नगारी में है, जो लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी से महज 125 किलोमीटर की दूरी पर है. इस स्टेशन की मदद से चीन भारत के सैटेलाइन को ट्रैक कर सकता है, संपर्क तोड़ सकता है और यहां तक कि उसे तबाह भी कर सकता है. कर्नल विनायक भट्ट ने 'द प्रिंट' को इसके बारे में बताया और कुछ तस्वीरें भी दी हैं.

ईरान के डेलिजैन जैसा है ये स्टेशन

चीन के नगारी में स्थित सैटेलाइट ट्रैक करने वाला ये स्टेशन इरान के डेलिजैन स्टेशन से काफी हद तक मिलता जुलता है, जिसका पता 2013 में चला था. नगारी के इस स्टेशन की बदौलत चीन तिब्बत के ऊपर मंडरा रहे हर भारतीय जासूसी सैटेलाइट का पता लगा सकता है. इसके चलते वह भारत पर सैटेलाइट का रास्ता बदलने का दबाव भी बना सकता है. सैटेलाइट की तस्वीरें देखकर यह साफ होता है कि अभी भी नगारी में बने सैटेलाइट ट्रैकिंग स्टेशन में काम चल रहा है और चीन वहां पर आने वाले समय में Hongqi-19 or HQ-19/SC-19 और Dongneng-2 जैसी एंटी सैटेलाइट मिसाइल तैनात कर सकता है. यहां बताते चलें कि हो सकता है कि इस तकनीक को लेकर चीन ने ईरान की मदद की है, जिसकी ईरान को काफी जरूरत थी, ताकि वह अमेरिका के सैटेलाइट को ट्रैक कर सके.

2014 में बना होने की संभावना

उम्मीद है कि यह स्पेस ट्रैकिंग स्टेशन 2014 में बनाया गया हो, जिसका पता अब जाकर चला है. इस स्टेशन को नगारी के पास ही बने एक हाइड्रोइलेक्ट्रिक स्टेशन से पावर मिलती है, जो सतलुज नदी पर बना है. इतना ही नहीं, अगर कभी इस हाइड्रोइलेक्ट्रिक स्टेशन से पावर मिलने में कोई दिक्कत हो या कोई खराबी आ जाए तो आपात स्थिति के लिए सोलर पावर का भी इंतजाम है. इस स्टेशन में 8 Radomes (गुंबदनुमा संरचना) हैं और एक पैराबोलिक एंटेना है. इन Radomes में से चार में अलग-अलग आकार के पैराबोलिक एंटेना हो सकते हैं. ऑपरेशंस बिल्डिंग के ऊपर लगे दो Radomes में लेजर और रडार ट्रैकिंग इंस्ट्रुमेंट हो सकते हैं. चीन के इस स्टेशन की वजह से हो सकता है भारत को अभी नहीं तो बाद में तिब्बत के ऊपर से गुजरने वाले सैटेलाइट का रास्ता बदलना पड़े.

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