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Updated: 16 अगस्त, 2020 04:30 PM
सर्वेश त्रिपाठी
सर्वेश त्रिपाठी
  @advsarveshtripathi
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प्रिय माही उर्फ धोनी उर्फ MSD उर्फ Captain Cool

आज शाम सात बजकर उनतीस मिनट के बाद तुमने भारतीय क्रिकेट टीम (Indian Cricket Team) को अलविदा कह दिया. टेस्ट क्रिकेट टीम से तो पहले ही खुद को अलग कर चुके थे अब तुम एकदिवसीय और बीसम - बीस क्रिकेट में भी अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में नीली जर्सी में न दिखोगे. वाकई तुम्हारा जाना भारतीय क्रिकेट टीम के लिए एक बड़ी शून्यता पैदा कर गया. लेकिन कोई बात नहीं है. हम भारतीयों की यह रूदाली की आदत आज से नहीं है. नेहरू (Nehru) के जाने के बाद भी सब यही कहते थे आफ़्टर नेहरू हू? इंदिरा (Indira) के बाद भी ऑफ्टर इंदिरा हू? लेकिन तुम तो जानते ही हो की शो मस्ट गो ऑन! तुमने भी कभी जैसे शो को आगे बढ़ाया था अब कोहली (Virat Kohli) बढ़ा रहा है. लेकिन तुम्हें हम सब क्रिकेट प्रेमी दिल से सम्मान देते है और देते रहेंगे. मुझे पता है तुम अपनी सेकंड इनिंग में भी अच्छा खेलोगे.

Mahendra SIngh Dhoni, Dhoni Retirement, Cricketer, Team Indiaधोनी द्वारा क्रिकेट से सन्यास की घोषणा के बाद अब फैंस उनकी उपलब्धियों को याद कर रहे हैं

जैसी कि रवायत है कि हर जाने वाले का सम्मान करना चाहिए तो मैं कोई ऐसी बात नहीं लिख रहा कि जो तुम्हारी महानता को कोई भी क्षति पहुंचाए. वैसे भी मुझ जैसा अदना इंसान तुम्हे कहेगा भी क्या तुम तो भारतीय क्रिकेट के दमकते सूर्य के समान थे. आज सच कहूं तो जब से यह सुना कि तुम क्रिकेट के बाकी प्रारूपों से भी संन्यास ले रहे हो तो मेरा भी मन भर आया. हम भारतीयों में एक विशेष गुण है; वह यह कि किसी की उपस्थिति को भले हम लाख कोसे पर जाने के बाद भर भर के आंसू बहाते है.

सोशल मीडिया के विस्तार के बाद तो यह गुण राष्ट्रीय संस्कृति का अभिन्न अंग बन चुका है. लेकिन दुनियां में भावनाओं और संवेदनाओं के आभासी बनने के बीच अभी भी बहुत कुछ है जो वास्तविक है. सच्चा है. माही बहुत कम खिलाड़ी होते है जिन्हे लोकनायक की भांति लोकमानस अपनी चेतना में रखता है. प्रचार और मीडिया के टीआरपी युग में हालांकि एक बाबा भी जो वैराग्य की फर्जी आशा दिला दे या जमीन में गड़ा सोना निकाल दे तो लोकनायक का दर्जा पा जाता है.

वहां तुम्हें तो जनता जनार्दन ने असली वाला नायक मानकर सिर माथे पर बैठा रखा है. यह कोई साधारण बात नहीं है दोस्त. कपिल और गावस्कर के दौर में तो मैं बच्चा था. लेकिन सचिन,सौरव, द्रविड़ और लक्ष्मण को बख़ूबी जानता हूं. तुम्हारी तकनीक भले इनके समकक्ष न रही हो पर तुम्हारा बल्ला इनसे कम नहीं चलता था. दुनियां की यही रीति भी है जो चलता है वही बिकता है. इस लिहाज़ से तुमने सिर्फ रन ही नहीं बल्कि धन भी खूब बनाया.

तुम्हारे मोटरसाइकिल और गाड़ियों के शौक का मैं भी दीवाना हूं. एक सामान्य परिवार की संतान होकर बिना किसी 'नेपोटिज्म' के सहारे तुमने जो ऊंचाई हासिल की वह लाखों युवाओं के लिए प्रेरणास्पद है. एक सच बात कहूं! यार तुम्हारी उम्र का होकर मैं अब तक अपने जीवन में कुछ उखाड़ नहीं पाया तो इस कारण तुमसे थोड़ी बहुत ईर्ष्या भी कर लेता हूं. लेकिन निकम्मों और खलिहरों के लिए इतना तो चलता है.

भाई हम निम्न मध्यवर्गीय लोग इस ईर्ष्या के सिवा कर ही क्या सकते हैं. नौकरी भी नहीं है जो कर ले. बस एकाध किताब पढ़कर थोड़ा पूंजी वूंजी, कॉर्पोरेट लॉबी का खेल और उपभोक्तावाद - साद जान गया. मैं तो इतना निकृष्ट जीव हूं कि अब बताओ इतने अच्छे खेल में जहां सारे फैसले टीम के खिलाड़ियों के कौशल और मेहनत से होते है, उसमें भी सट्टेबाजी सूंघने लगा. मुझे मालूम है इस पाप के लिए मेरा भगवान मुझे कभी माफ नहीं करेगा.

हां इस पाप को कम करने के लिए अब क्रिकेट को धर्म मानकर तुम्हें देवता समझ कर आईपीएल में तुम्हारे दर्शन करने जरूर आएंगे. बस इस महामारी में कुछ दाएं बाएं से कुछ कमाई और इतनी बचत हो जाय कि टिकट भर खरीद सके तो एकाध बार स्टेडियम में भी तुम्हें देखने का चांस मार लेंगे. ख़ैर, मैं तुम्हारे बारे आज सोच रहा था कि तुम्हारे खेल के साथ ही मैं भी जवान हुआ अब तुम्हारी तरह अधेड़ भी हो गया. समय कैसे उड़ता है न?

इस बीते वर्षों में जब एक तरफ तुम अपनी शानदार कप्तानी और जानदार बल्लेबाजी व विकेट कीपिंग से आईसीसी की विश्वकप समेत तमाम ट्रॉफी जीत रहे थे तो दूसरी तरफ़ मैं गदहों की तरह एक अदद सरकारी नौकरी के लालच में इतिहास भूगोल के नीरस तथ्यों का रट्टा लगा रहा था. अफ़सोस मुझे न नौकरी ही मिली और न ही आज इतिहास भूगोल का ज्ञान बचा. इस सब के बीच कब तुम्हारी तरह मेरी भी दाढ़ी पक गई पता ही नहीं चला. जाने तो तुमसे मेरी कौन तुलना भला. लेकिन तुम्हारी विनम्रता और खेल चातुर्य का मैं सदा ही मुरीद रहा.

बस पिछले विश्वकप में भाई तुम न जाने क्यों थके थके से लग रहे थे. बुरा हो कमबखत न्यूजीलैंड वालों का कम से कम तुम्हारी चपलता को तो सम्मान देना था. बताओ उन्हें इतना तो लिहाज़ रखना था कि तुम वहीं धोनी हो जो सिंगल को डबल में बदलने के माहिर हो. यह भी न होता तो बांग्लादेश के उस मैच को याद कर लेते जिसमें तुम चीते की फुर्ती से अन्तिम बाल पर रनआउट मार कर लगभग हारा हुआ मैच बांग्लादेश के जबड़े से खींच लाए थे. बताओ इंचो की दूरी से तुम रनआउट हो गए और करोड़ों भारतीयों की सिसकी फूट पड़ी थी.

आज भी कुछ लोग उसे तुम्हारी लापरवाही मानकर कोसते है पर जाने दो. कुछ तो लोग कहेंगे और लोग तो इस समय खलिहर ही हैं. तो कहे अपनी बला से. तुम्हारा उससे क्या लेना देना भला ? वैसे भी तुम अब सेना की वर्दी पहन के देश सेवा में लगे हो. लगे रहो माही देश की भक्ति बहुत सी बातें ढंक देती है. और अंत में एक बात और कहूंगा की यार तुम वाकई बहुत महान थे. मेरे मरहूम पिताजी घर में टीवी न चलने देते थे. पुराने सोच के थे.

उनके रहने पर हमारे यहां टीवी बस समाचार के लिए ही खुलती थी. लेकिन यार उन्होंने 2011 के विश्वकप में न जाने कहां से तुम्हारा नाम सुन लिया. उसके बाद अम्मा बताती है कि पापा जिसे चौके और छक्के का फर्क भी नहीं मालूम था वे भी सेमीफाइनल और फाइनल का पूरा मैच देखे। मैच के दौरान किसी भी प्लेयर के बैटिंग पर आते ही अम्मा से पूछते 'सीमा की अम्मा यही धोनी है?'

यार मैं अब भी इमोशनल हो जाता हूं जब मुझे फाइनल का तुम्हारा वो अन्तिम शॉट याद आता है. मैं इलाहाबाद में था और उसके करीब पांच मिनट बाद पापा का फ़ोन आया और फोन रिसीव करते ही पापा बड़ी खुशी से लगभग चिल्लाकर हमसे कहे 'भैया बहुत बधाई तोहार धोनी तो जिताए दीहिस.' उनका फोन आना अप्रत्याशित था. उस दिन इलाहाबाद में अपट्रौन चौराहे पर हम सब दोस्त तिरंगा हाथ में लिए देर रात तक खूब नाचे और बार बार मैं पापा के उन शब्दों को याद कर भावुक हुआ जा रहा था कि 'तोहार धोनी तो जिताए दिहिस.'

बहुत भावनाप्रधान देश है भारत! यहां के लोग अधिकतर काम दिमाग से नहीं दिल से करते है. हम भारतीय यही अपने देवताओं और नायकों से भी अपेक्षा रखते है. हर महानता के साथ विवाद और विरोधाभास अनिवार्यता जुड़ी होती है. खैर तुम भी कोई अपवाद नहीं यार, एक हाड़ मांस के इंसान ही हो. शिकवे शिकायत तो रहेंगी ही लेकिन आज तुम्हारे संन्यास लेने पर यही कहूंगा कि फ़िलहाल हर क्रिकेट प्रेमी की भांति मैं भी तुम्हें मैदान में बहुत मिस करूंगा. थैंक्यू धोनी हम सब को खुशी के तमाम मौके देने के लिए. भारत को एक खेल में ही सही लेकिन विश्वविजेता का गर्व देने के लिए. हमेशा स्वस्थ रहो प्रसन्न रहो. तुम्हें सेकंड इनिंग की अग्रिम बधाई दोस्त.

तुम्हारा एक अदना सा प्रशंसक

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लेखक

सर्वेश त्रिपाठी सर्वेश त्रिपाठी @advsarveshtripathi

लेखक वकील हैं जिन्हें सामाजिक/ राजनीतिक मुद्दों पर लिखना पसंद है.

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