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महिलाओं को 'बच्चों वाली हरकत' बोलकर शर्मिंदा क्यों किया जाता है?
अरे इस उम्र में लिपिस्टि लगाना और मेकअप करना भला शोभा देता है. तुम बच्ची नहीं हो जो हर दिन लाड़ दिखाया जाए? मंदिर जाने की उम्र में मैडम को सिनेमा जाना है. इस उम्र में जींस पहनने से तुम बच्ची नहीं बन जाओगी...ब्ला-ब्ला-ब्ला...
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अरे यार बच्ची हो क्या? लड़की होकर बच्चों की तरह उछल-कूद करती हो शर्म नहीं आती? चार बच्चों की मां हो गई लेकिन सड़क पर खड़े होकर चाट खा रही थीं, पता नहीं इनका बचपना कब जाएगा? बाल सफेद हो गए लेकिन अपने आप को अभी भी मधुबाला समझती हैं.
बड़ी हो रही हो, अब कबड्डी-कबड्डी करना बंद कर दो. ये लड़कों की तरह आ रा हूं, जा रहा हूं बोलना बंद करो. तुम ठीक से बात नहीं कर सकती क्या, तुम तुतलाकर बच्चों की तरह क्यों बोलती हो?
शादी हो गई लेकिन अभी भी ये बच्ची ही बनी रहेंगी. इस उम्र में डांस कर रही हो, कहीं कमर न लचक जाए. अरे इस उम्र में लिपिस्टि लगाना और मेकअप करना भला शोभा देता है. तुम बच्ची नहीं हो जो हर दिन लाड़ दिखाया जाए? मंदिर जाने की उम्र में मैडम को सिनेमा जाना है. इस उम्र में जींस पहनने से तुम बच्ची नहीं बन जाओगी...ब्ला-ब्ला-ब्ला...
महिलाओं से यह उम्मीद की जाती है कि वे सिर्फ बच्चों का ख्याल रखें, ना कि खुद बच्ची जैसी हरकत करें
इस तरह की बातें लगभग हम महिला ने कभी ना कभी को सुनी होगी. कभी पति के मुंहे से तो कभी किसी रिश्तेदार या पड़ोसी से मुंह से...किसी महिला को किस उम्र में क्या करना शोभा देता है औऱ क्या करना नहीं...यह सारा कुछ समाज के लोगों ने पहले से ही तय कर लिया है. महिला को किस तरह उठना है, किस तरह बैठना है, किसी से किस तरह से पेश आना है ये सारी बातें बचपन से ही सिखा दी जाती हैं.
हर दूसरे कदम पर लोग उसे जज करने के लिए तैयार रहते हैं. पहले पिता की सुनो, फिर पति की और फिर बच्चों की. शादी के बाद घर बसाओ और फिर बुढ़ापे में धर्मयात्रा करो...अपने मन की करने पर तुम पापिन कहलाओगी. समाज की नजरों में कोई इज्जत नहीं बचेगी.
एक महिला अपना बचपना दिखाएगी तो लोग क्या कहेंगे
जब कोई बच्ची किशोराअवस्था में पहुंचती है तो उससे बोल दिया जाता है कि अब तुम्हारा लड़कों के साथ खेलना कूदना बंद. अब सबके सामने दांत दिखाकर खी-खी मत करना. इस तरह उधम मचाना और घूमना फिरना बंद....ये बातें उस बच्ची के मन में इस तरह बैठ जाती हैं कि वह बड़ी होकर हर बात में संकोच करती रहती है. हर बात पर उसे इतना दबाने की कोशिश की जाती है लेकिन जिनका मन चंचल होता है उनके अंदर का बच्चा कभी नहीं मरता. उन महिलाओं को जब मौका मिलता है तो वे अपने अंदर की उस बच्ची को जी लेती हैं. जिसके लिए उन्हें दुनिया वाले ताने देने में कोई कोताही नहीं बरतते हैं.
देखिए किन बातों पर महिलाओं को बच्चों वाली हरकत बोलकर ताना मारा जाता है-
जब किसी महिला कोई बात समझने में परेशानी होती है तो उसे बोला जाता है कि बच्ची हो क्या, जो बिना बोले समझ नहीं सकती.
जब कोई महिला किसी नई चीज सीखने की बात करती है तो उसे कहा जाता है कि इस उम्र में अब कहां यह सब करोगी, बच्ची जैसी बात न करो.
जब कोई महिला कोई काम कर पाने में सक्षम नहीं होती, तो उसे कहा जाता है इतनी बड़ी हो गई और कुछ आता नहीं है.
जब कोई महिला कुछ खेलने की बात करे तो भी उसे बच्ची नहीं हो जैसी बातें सुनने को मिल जाती हैं.
कभी कोई महिला बारिश में भीगने लगे तो लोग कहते हैं कि शर्म लिहाज बेचकर खा ही गई है.
कभी को महिला खुशी से चिल्लाने लगे तो अपने आप ही झिझक जाती है कि लोग क्या कहेंगे कि बच्चो जैसे शोर मचा रही है. किसी पुरानी दोस्त को देखकर दौड़ने लगे तो अरे आराम से चलो, इस उम्र में सड़क पर दौड़ रही है, किसी की परवाह है या नहीं.
कोई महिला कभी कुछ खाने या कुछ खरीदने की जिदद् कर दे तब तो उसकी खैर नहीं...वह बच्ची थोड़ी है जो समझ नहीं सकती.
किसी कंपटीशन में भाग लेने को बोल दो तो अरे उम्र देखी है अपनी, कहां जाओगी बच्चों के साथ बच्चा बनने, लोग हंसेगे.
कभी किसी की नकल उतार ले या एक्टिंग करे तो, अरे क्या बच्चों जैसे मुंह बना रही है, अच्छा लगता है क्या?
एक तरफ तो लोग कहते हैं कि हम भले ही कितने ही बड़े क्यों ना हो जाएं, अपने अंदर के बच्चे को हमेशा जिंदा रखना चाहिए. बच्चे जैसे मन को कभी मारना नहीं चाहिए. दूसरी तरफ महिलाओं से यह उम्मीद की जाती है कि वे सिर्फ बच्चों का ख्याल रखें, ना कि खुद बच्ची बने. महिलाओं के दिमाग में भी इस बात का खौफ रहता है कि अगर उनका बचपना किसी ने देख लिया तो क्या कहेंगे? इस वजह से अगर कभी उनका बच्चा दिल मौज मस्ती करने, खेलने, चहकने को कहता है तो वे ठिठक जाती हैं...