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Updated: 25 नवम्बर, 2022 07:10 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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मां-बाप सबकुछ अच्छा देख सुनकर बेटी की शादी करते हैं. अपनी फूल सी बेटी को दूसरों को सौंपते वक्त उनके हाथ कांपते हैं. शादी में जब कन्यादान की रस्म होती हैं तो कई पिता फफक कर रो पड़ते हैं. वे अपने कलेजे के टुकड़े को इस विश्वास के साथ सुसराल वालों को सौंपते हैं कि अब वह उनके घर की सदस्य हो गई है. अब वे उसका ख्याल रखेंगे. पिता अपने दामाद के हाथों को पकड़कर कहता है कि बेटा मेरी बेटी का ध्यान रखना.

शादी के बाद कुछ दिनों तक तो सब सही रहता है मगर धीरे-धीरे कुछ लड़कों की सच्चाई सामने आने लगती है. उनके अंदर पितृसत्ता का भाव दिखने लगता है. वे पत्नी पर पूरा अधिकार समझते हैं. उसके मन और तन पर अधिकार जताते-जताते वे उसे मारने-पीटने लगते हैं. पति बन जाने पर उन्हें लगता है कि पत्नी को मारा जा सकता है. उन्हें लगता है कि यह उनके अधिकार के क्षेत्र में आता है. उन्हें लगता है कि पत्नी के गलती करने पर उसे डांटना और सजा देना उनका कर्तव्य है. उन्हें लगता है कि पत्नी को हमेशा एक लाइन पर रहना चाहिए.

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शुरु-शुरु में लड़कियां अपनी मां से भी यह बातें छिपाती हैं. वे नहीं चाहतीं कि मायके वालों को उनकी परेशानी के बारे में जानकर दुख हो. मगर जब पानी सिर से ऊपर हो जाता है तब वे बड़ी उम्मीद के साथ मां को अपनी परेशानी बताती हैं. वे बताती हैं कि कैसे उनका पति उन्हें थप्पड़ मारता है.

क्या होता है जब बेटी मां से यह कहती है कि उसका पति पीटता है?

बेटी कहती है मां वह मुझे मारते हैं. मां वह मुझे थप्पड़ मारते हैं. मुझे समझ नहीं आता कि वे मुझे क्यों मारते हैं? मेरी क्या गलती है? आज भी मारा. मैं क्या करूं? मुझे बताओ मेरी समझ में नहीं आ रहा?

बेटी की बात सुनकर मां दुखी हो जाती है. वह बेटी से कहती है कि, इसमें मैं क्या कहूं? मैं तुम्हें वही बातें बता सकती हूं जो मेरी मां ने मुझसे तब कहा था जब तेरे पापा ने मुझे पहली बार मारा था. बेटी हैरान रह जाती है क्या पापा तुम्हें मारते थे? मां कहती हैं हां एक बार मारा था. तब मेरी मां ने कहा था कि पुरुषों को घर से बाहर जाकर बहुत सारा काम करना पड़ता है. वे हम पर गुस्सा नहीं उतारेंगे तो किस पर उतारेंगे? काम की वजह से कभी-कभी उनका मूड खराब हो जाता ही. शादी के बाद यह सब तो औरतों के साथ होता ही है. ये सब बर्दाश्त करना पड़ता है. गृहस्थी संभालना इतना आसान थोड़ी है. अपने घर को बचाने के लिए यह सब सहना पड़ता है.

ऐसा तो नहीं है कि वह तुझसे प्यार नहीं करता. पक्का तुमने कोई गलती की होगी. एक बार बच्चा हो जाए तो सब ठीक हो जाएगा. बच्चा सब ठीक कर देता है, वह तुम्हारे पति को बदल देगा. अगर ऑफिस में उसका मूड खराब न होता और उसे गुस्सा ना आता तो वह तुझे न मारता. शादी के बाद पति का घर ही अपना घर होता है. कहा जाता है कि लड़की की मायके से डोली उठती है और ससुराल से अर्थी...तू उसके बिना क्या करेगी, वही अब तेरी दुनिया है. ये सब हर महिला को सहना पड़ता है. धीरे-धीरे इसकी आदत पड़ जाएगी. औऱ एक दिन सब ठीक हो जाएगा. कुल मिलाकर पहले मांओं की यही कोशिश रहती थी कि बेटी का घर टूटने से बचा रहे, भले ही वह घर में कुटती रहे.

मांओं का अब बेटियों से क्या कहना चाहिए?

अब माओं को अपनी बेटियों को सीख देना चाहिए कि अगर पति मारता-पीटता है, घरेलू हिंसा करता है तो बेटी तुम सबसे पहले मुझे बताना, मैं उससे पूछूंगी कि उसकी इतनी हिम्मत कैसे हो गई? फिर पुलिस स्टेशन जाकर उसकी शिकायत करेंगे और तुम तलाक देकर उसे छोड़ देना. मैं तेरे साथ मिलकर उसे सजा दिलाउंगी. तेरी जिंदगी सबसे अधिक महत्वपूर्ण है इसलिए लोग क्या कहेंगे इसकी चिंता मत करना.

पति मारे तो समाज क्या कहेगा यह ना सोचकर वह करना चाहिए जो तेरा मन करे. अपने बारे में सोचना. वह करना जो सही है. फालतू में किसी की मार क्यों सहना? किसी के हाथों पीटते रहना छी...ये भी क्या जिंदगी है?

मां को कहना चाहिए कि बेटी तो वह कर जो तू चाहती है. जिंदगी में आगे बढ़ हम हमेशा तेरे साथ हैं. बुरी शादी में रहने से अच्छा है कि तू अकेले रहकर अपनी जिंदगी खुशी-खुशी बिता. अपने बारे में सोच और खुलकर ये जिंदगी अपने लिए जी.

कुछ दिनों पहले संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि हर 11 मिनट पर एक महिला अपने साथी या परिवार के सदस्य के हाथों अपनी जान गंवा देती है. यानी उसके अपने लोग ही उसे मारते-पीटते हैं. उस पर घरेलू हिंसा करते हैं और उसकी जान ले लेते हैं. सोचिए पूरे दिन में कितने 11 मिनट होते हैं? 11 मिनट बहुत ही छोटा समय होता है, इतनी देर में तो चाय-नाश्ता भी नहीं बन पाता और एक लड़की मार दी जाती है. इस हिसाब से तो महिलाओं का मरना तो सच में कोई बड़ी बात नहीं है.

ऐसे में माओं को अपनी बेटियों को यह सिखाना चाहिए कि भले कुछ भी हो ससुराल में जुर्म मत सहना. अगर तुम सही हो तो सारी दुनिया तुम्हारे साथ है. बाकी जो होगा हम देख लेंगे...यानी अब मांओं को सोचना चाहिए कि जो भी हो, बेटी की जिंदगी बची रहे.

मां-बाप की जिम्मेदारी है कि वे अपनी बेटियों को पढ़ा-लिखाकर आत्मनिर्भर बनाएं ताकि वे अपने पैरों पर खड़ी होकर अपने लिए फैसले ले सकें. वरना वे पति के हाथों कुटती-पिसती रहेंगी...और एक दि हमेशा के लिए खामोश कर दी जाएंगी...

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लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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