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Updated: 26 मार्च, 2015 09:06 AM
संजय निरुपम
संजय निरुपम
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महाराष्ट्र सरकार राज्य में पिछड़े मुस्लिम वर्ग को दिए जाने वाले पांच फीसदी आरक्षण के फैसले को बदल नहीं सकती, जिसके लिए पिछली कांग्रेस सरकार ने अध्यादेश पारित किया था. लेकिन भाजपा-शिवसेना सरकार जान-बूझकर यह करने के लिए कहा गया है.

आम धारणा से उलट राज्य में आरक्षण सभी मुसलमानों के लिए नहीं था. यह केवल पिछड़े वर्ग के मुस्लिमों के लिए था. अगर हिंदू धर्म में पिछड़ा वर्ग आरक्षण का दावा कर सकता है तो इसे दूसरे धर्मों के लिए लागू करने में क्या गलत है?

कांग्रेस सरकार का पिछड़े मुस्लिमों को आरक्षण देने का फैसला राजनीतिक नहीं था. सच्चर कमेटी की सिफारिशों के मद्देनजर बनी सरकार की फैक्ट फांइडिंग कमेटी की रिपोर्ट आने पर कांग्रेस सरकार ने यह फैसला लिया था. आठ सालों की मेहनत के बाद यह मुसलमानों के बीच सबसे पिछड़े समुदायों की दुर्दशा आधारित रिपोर्ट थी. सवाल उठाया गया कि चुनाव से पहले यह अध्यादेश पारित क्यों किया गया? रिपोर्ट तैयार होने में सालों लगे और सरकार का वक्त भी खत्म हो रहा था.

भारत का संविधान धर्म के नाम पर आरक्षण दिए जाने की इजाजत नहीं देता. और राज्य की पिछली सरकार ने संविधान के इस प्रावधान का उल्लंघन नहीं किया. पांच प्रतिशत आरक्षण केवल जाति वर्ग के आधार पर दिया गया. इसी विधेयक के तहत मराठियों को 16 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया. मगर मुम्बई हाईकोर्ट ने मराठी आरक्षण को रद्द कर दिया लेकिन पिछड़े मुस्लमि आरक्षम को जारी रखा. अब बीजेपी-शिवसेना सरकार हाईकोर्ट के खिलाफ जाकर काम कर रही है.

महाराष्ट्र की नई सरकार लाचारी व्यक्त करते हुए कह रही है कि यह अध्यादेश एक स्वाभाविक मौत मर रहा है. लेकिन इस अध्यादेश को फिर से कानून बनाने की जिम्मेदारी सरकार की है. जानबूझकर ये किया जाना सरकार की विफलता है, क्योंकि बीजेपी को यह अध्यादेश सांप्रदायिक राजनीति लगता है. यह फैसला केवल मुसलमानों की भावनाओं को चोट पंहुचाने के लिए लिया गया है.

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लेखक

संजय निरुपम संजय निरुपम @sanjaynirupam1

लेखर कांग्रेस से पूर्व सांसद हैं.

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