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Updated: 18 फरवरी, 2018 06:06 PM
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फ्रॉड और स्कैम का भारत से पुराना नाता रहा है. किसी और मामले में हम अव्वल हों या न हों, लेकिन यकीनन करप्शन के मामले में तो हम किसी को भी पीछे छोड़ सकते हैं. अभी विजय माल्या को वापस ला नहीं पाई थी सरकार कि नीरव मोदी सामने आ गए और नीरव मोदी का मामला ठंडा होता इससे पहले ही एक और लेनदार का नाम सामने आ गया है जो सरकारी बैंकों के करोड़ों रुपए लेकर फरार हो गया.

सूत्रों की मानें तो रोटोमैक पेन कंपनी का मालिक विक्रम कोठारी पांच सरकारी बैंकों के करीब 800 करोड़ लेकर फरार हो गया है. न्यूज18 की रिपोर्ट के मुताबिक कोठारी ने अपने लोन अमाउंट का इंट्रेस्ट भी नहीं चुकाया था.

ये बैंक हैं शामिल...

खबर के मुताबिक विक्रम कोठारी ने पांच सरकारी बैंकों से ये लोन लिया था. इसमें अलाहबाद बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा, इंडियन ओवरसीज बैंक और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया शामिल हैं.

इन सभी बैंकों ने विक्रम कोठारी को लोन देने के लिए अपने नियमों को ताक पर रखा था. नियमों की हेराफेरी के कारण ही ऐसा हो पाया.

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विक्रम कोठारी ने यूनियन बैंक से 485 करोड़ और अलाहबाद बैंक से 352 करोड़ का लोन लिया था. असल राषी देने की तो छोड़िए कोठारी ने लोन का इंट्रेस्ट भी नहीं चुकाया. हालांकि, अलाहबाद बैंक मैनेजर राजेश गुप्ता को ये लगता है कि पूरा पैसा विक्रम कोठारी की प्रॉपर्टी की नीलामी से वसूल हो जाएगा, लेकिन फिर भी सवाल ये उठता है कि आखिर विक्रम कोठारी के लिए नियमों का ध्यान क्यों नहीं रखा गया? क्या बैंक के पास बस इतना ही काम है कि वो बड़े लेनदारों की संपत्ती को नीलाम करे?

हर चार घंटे में भारत में एक बैंक फ्रॉड..

आरबीआई की 30 जून 2017 को जारी की गई रिपोर्ट (Financial Stability Report) के मुताबिक देश में कुल 5,064 बैंक फ्रॉड के मामले हैं. यानी पीएनबी घोटाले के अलावा 5,063 और भी बैंक फ्रॉड के मामले हैं? इस रिपोर्ट के मुताबिक हर चार घंटे में एक बैंक कर्मचारी फ्रॉड करता है. अब खुद ही सोच लीजिए मामला कितना संगीन है. ये सभी आंकड़े रिपोर्ट का हिस्सा हैं...

- पिछले 5 सालों में बैंक फ्रॉड में 19.6 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है और ये 4235 से बढ़कर 5064 पर पहुंच गए हैं.

- इन फ्रॉड से हुए नुकसान की रकम 5 साल पहले 97.5 करोड़ रुपए थी, जो पिछले 5 सालों में 72 फीसदी बढ़कर 167.7 अरब पर पहुंच गई है.

- अगर आरबीआई की रिपोर्ट को आधार मानें तो इन घोटालों के असली दोषी बैंक ही हैं. बैंकों में यह ट्रेंड रहा है कि वे घोटाले की जानकारी शुरुआत में दबाए रखते हैं. फ्रॉड ट्रांजेक्शन को 2-3 साल तक एनपीए के रूप में दिखाते रहते हैं. और फिर धीरे से बताते हैं कि ये तो घोटाला हो गया. आरबीआई की इस रिपोर्ट से आशंका होती है कि कहीं बैंकों के भारी भरकम एनपीए घोटाले ही तो नहीं हैं.

- अगर जीडीपी के हिसाब से देखा जाए तो यह आंकड़ा 137 देशों की जीडीपी से भी अधिक है.

- एनपीए की मार सबसे अधिक सरकारी बैंकों पर पड़ी है, जो भारत के बैंकिंग सिस्टम को डोमिनेट करते हैं.

- RBI चेयर प्रोफेसर चरन सिंह की IIM बेंगलुरु की मार्च 2016 में छपी रिपोर्ट के मुताबिक बैंक फ्रॉड की वजह से देश के पब्लिक सेक्टर बैंकों को पिछले तीन सालों (2013-16) में 22,743 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है.

- इस रिपोर्ट के मुताबिक 95 फीसदी बैंक फ्रॉड के मामले कमर्शियल बैंकों के ही होते हैं.

ये सभी आंकड़े आम आदमी की मशक्कत की कमाई को चिढ़ा रहे हैं और साफ है कि घंटों मेहनत कर पैसे कमाने वाला आम आदमी अपने लोन को लेकर भले ही कितना भी सतर्क क्यों न हो, लेकिन बैंक वाले बड़े लेनदारों के लिए काफी आसान नियम बना देते हैं. न जाने क्यों पर उनके पास ये सुविधा होती है कि वो कहीं भी आसानी से आ-जा सकते हैं. पहली बार डिफॉल्टर लिस्ट में शामिल होते ही उनका पासपोर्ट क्यों सस्पेंड नहीं किया जाता. नीरव मोदी का मामला हो या विजय माल्या का बैंकों के पास पहले से ही इसकी जानकारी थी और नीरव मोदी के मामले में तो भनक जनवरी से ही लग गई थी. ऐसे में क्यों नहीं उसी वक्त पासपोर्ट सस्पेंड हो गया. विजय माल्या के केस से तो सरकार और बैंक दोनों को ही सीख ले लेनी चाहिए थी.

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एक गरीब किसान लोन नहीं दे पाता तो उसका ट्रैक्टर, घर, जमीन सब कुछ जब्त कर लिया जाता है. उसके पास मरने के अलावा कोई और चारा नहीं रह जाता, लेकिन अगर एक बड़ा व्यापारी लोन लेता है तो उसके लिन न नियम देखे जाते हैं न ही कानून देखा जाता है और उसे हजारों करोड़ का लोन दे दिया जाता है. यही तो फर्क है एक आम आदमी और एक अमीर लेनदार में.

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