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Updated: 08 मई, 2019 09:01 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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बायोपिक्स का दौर है, और ताजा ताजा घोषणा हुई है कि विद्या बालन जल्दी ही महान गणितज्ञय और ज्योतिषि शकुंतला देवी की बायोपिक में नजर आने वाली हैं. फिल्म में काम करने को लेकर विद्या काफी ज्यादा रोमांचित हैं. लेकिन थोड़ी देर के लिए विद्या बालन को भूल जाइए और फिर देखिए कि शकुंतला देवी खुद आपको अपने टेलेंट से कितना रोमांचित कर देती हैं.

शकुंतला देवी को भले ही बहुत से लोग न जानते हों लेकिन गणित के सवालों को आसानी और जल्दी हल करने के लिए हम में से बहुतों ने शकुंतला देवी की किताबें जरूरी पढ़ी होंगी. वहीं ज्योतिष में विश्वास रखने वालों ने भी शकुंतला देवी की किताबों को जरूर पढ़ा होगा.

गणित एक ऐसे विष्य है जिससे बच्चे हमेशा अपनी जान छुड़ाना चाहते हैं. सबसे कठिन अगर कुछ है तो वो मैथ्स है. लेकिन इस कठिन विषय से शकुंतला देवी की गहरी दोस्ती थी. इतनी कि वो बड़ी से बड़ी और कठिन से कठिन सवालों का हल मिनटों में नहीं सैकण्ड्स में दे देती थीं.

Shakuntala deviविद्या बालन शकुंतला देवी पर बन रही बायोपिक में नजर आएंगी

सर्कस से ह्यूमन कंप्यूटर तक

शकुंतला देवी का जन्म 4 नवंबर 1929 में बेंगलुरु के एक कन्नड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनकी मां भी एक ज्योतिषि थीं. उनकी हथेलियों में सितारा और त्रिशूल देखकर उनके परिवार के सबसे बुजुर्ग सदस्य जो मंदिर में पुजारी थे उन्होंने कहा था कि ईश्वर ने इस बच्ची को कोई अनोखा गुण दिया है. लेकिन कोई ये नहीं जानता था कि वो क्या है. कुछ को लगता था कि शायद ये संगीतज्ञ या नृत्यांगना बनेगी. लेकिन उनके गुण का पता सबसे पहले उनके पिता को लगा जब वो मात्र तीन साल की थीं. पिता सर्कस में काम करते थे. और तब शकुंतला देवी को एक ट्रिक सिखाते समय उन्हें पता चला कि उनकी बेटी की स्मरण शक्ति बहुत अच्छी है. उन्होंने तभी सर्कस छोड़ी और बेटी के साथ रोड शो करने लगे. और ये तब था जब शकुंतला देवी पढ़ाई भी नहीं करती थीं. 3.5 साल की उम्र से शकुंतला देवी ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था. और 6 साल की उम्र में उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय में अंकगणितीय प्रतिभा का प्रदर्शन किया था. फिर 1944 में वो अपने पिता के साथ लंदन शिफ्ट हो गईं.

इसके बाद से शकुंतला देवी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने दुनिया के लगभग हर देश में इस तरह के शो किए जहां लोगों को अपनी गणितीय गुणों को दिखाकर हैरान किया. यूं तो उन्होंने कई असंभव सवालों को हल किया है लेकिन हम जैसे सामान्य लोग उनकी प्रतिभा का आकलन इस बात से कर सकते हैं कि हमें दो अंकों वाली दो संख्याओं को गुणा करने के लिए कैल्कुलेटर की जरूरत पड़ती है. लेकिन 1980 में इंपीरियल कॉलेज ऑफ लंदन में शकुंतला देवी ने 13 अंको की दो संख्याओं 7,686,369,774,870 × 2,465,099,745,779 को आपस में गुणा किया और मात्र 28 सेकंड में उत्तर दे दिया 18,947,668,177,995,426,462,773,730. इस घटना को 1982 में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया था.

कंप्यूटर को हराकर बनीं ह्यूमन कंप्यूटर

1977 में अमेरिका एक यूनिविर्सटी में शकुंतला देवी का मुकाबला आधुनिक तकनीकों से लैस एक कंप्यूटर ‘यूनीवैक’ से हुआ था. शकुंतला को गणना करके 201 अंकों की एक संख्या का 23वां मूल निकालना था. इस सवाल को हल करने में शकुंतला को केवल 50 सेकंड लगे. वहीं इसे हल करने में ‘यूनीवैक’ ने 62 सेकंड का समय लिया था. इस घटना के बाद से ही शकुंतला देवी को 'ह्यूमन कंप्यूटर' का नाम दिया गया.

शकुंतला देवी के लिए गणित के मायने

गणित के बारे में शकुंतला देवी का कहती थीं कि गणित सिर्फ गुणा भाग नहीं है बल्कि एक कॉन्सेप्ट है. ये दुनिया का सबसे बड़ा सत्य है. खुद को human computer कहे जाने पर वो कहती थीं कि वो कंप्यूटर कम और ह्यूमन ज्यादा हैं. मुझे नहीं लगता कि कंप्यूटर इंसानों से ज्यादा बेहतर हैं क्योंकि इंसान ही तो हैं जिन्होंने कंप्यूटर बनाए, कंप्यूटर ने इंसान नहीं बनाए.

सिर्फ गिणितज्ञ नहीं, लेखिका भी

फिर शकुंतला देवी ने मेंटल मैथ्स यानी मन में गणना करने के तरीकों को लिखना शुरू किया. उन्होंने ज्योतिषी पर भी कई किताबें लिखीं उपन्यास भी लिखे. इसके अलावा उन्होंने 1977 में समलैंगिकता पर एक किताब The World of Homosexuals भी लिखी थी. ये तब था जब लोग समलैंगिकता का मतलब भी नहीं जानते थे. लेकिन हैरानी की बात ये है कि इतना सबकुछ उन्होंने किया वो भी बिना किसी शिक्षा के, वो कभी स्कूल तक नहीं गई थीं.

1973 में बीबीसी के एक इंटरव्यू में उन्होंने कई राज खोले-

राजनीति में इंदिरा गांधी से टक्कर

1960 में शकुंतला भारत लौट आईं. और कोलकाता के आईएएस परितोष बनर्जी से शादी की. लेकिन 1979 में उनका तलाक हो गया. 1980 में उन्होंने राजनीति में भी कदम रखा और लोकसभा चुनावों में एक स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में मुंबई दक्षिण और मेदक से चुनाव लड़ा था. मेदक में वो इंदिरा गांधी के खिलाफ खड़ी थीं. लेकिन चुनाव हार गईं. इसके बाद वो बेंगलुरू शिफ्ट हो गईं थीं. 

अंको को अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाली शकुंतला देवी 2013 में 83 साल की उम्र में इस दुनिया से विदा हो गईं. लेकिन इस दुनिया को अंको के मायाजाल से निकले के तरीके अपनी किताबों में छोड़ गईं, जो आज भी मैंटल मैथ्स के जरिए बच्चों के काम आ रहे हैं. दुनिया में शकुंतला देवी किसी अजूबे से कम नहीं थीं और भारत को फख्र है कि वो इस देश की थीं. विद्या बालन शकुंतला देवी का किरदार निभाकर इन्हें अमर कर देंगी. लेकिन जो रोमांच शकुंतला देवी की कहानी सुनकर मिलता है वो अविस्मर्णीय है. फिलहाल फिल्म के लिए 2020 तक का इंतजार रहेगा.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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