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सावरकर न रोकते तो संगीत छोड़ ही चुकी थीं लता मंगेशकर!
हम भारतीयों को सावरकर का ऋणी होना चाहिए कि अगर उन्होंने लता मंगेशकर को दूसरे ढंग से समाज-सेवा करने से रोका न होता, तो पिछली अर्द्ध शताब्दी और यह नयी सदी लता जी को नहीं सुन पाती.
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सुर-साम्राज्ञी भारत रत्न लता मंगेशकर के प्रशसंक, उनका सम्मान करने वाले तो इस देश और दुनिया में करोड़ो होंगे. लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि लता मंगेशकर किन लोगों को पसंद करती हैं, किनका सम्मान करती हैं और किसने उन्हें संगीत क्षेत्र में आने के लिए प्रेरित किया? यतीन्द्र मिश्र की किताब ‘लता सुर-गाथा’ यह राज खोलती है. हिंदी के कवि, सम्पादक और सिनेमा के अध्येता यतीन्द्र मिश्र ने लता मंगेशकर से छ: वर्षों के दरम्यान टेलीफोन पर की गयी बातचीत के आधार पर इस किताब को लिखा है. यूं कहें तो इस किताब में ‘लता मंगेशकर की कहानी, उनकी जुबानी’ है.
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अपनी किशोरावस्था में लता जी ने समाज-सेवा का प्रण लिया था |
इस किताब में लता मंगेशकर ने उन तमाम नामों का जिक्र किया है, जिन्हें वे बेहद पसंद करती हैं, जिनका सम्मान करती हैं एवं जिनकी प्रेरणा से वे संगीत की दुनिया में पहुंची हैं. बहुत सारे लोगों को जानकर आश्चर्य होगा कि उन तमाम नामों में एक नाम प्रखर राष्ट्रवादी क्रांतिकारी वीर सावरकर का है.
किताब के पृष्ठ संख्या चालीस पर यतीन्द्र लिखते हैं, “बहुत कम लोग जानते होंगे कि अपनी किशोरावस्था में उन्होंने समाज-सेवा का प्रण लिया था. इसके लिए वे राजनेता एवं क्रांतिकारी वीर सावरकर से कई दिनों तक विमर्श में उलझीं थीं कि उन्हें समाज-सेवा करते हुए राजनीति के पथ पर जाना है या कुछ और करना है ? सावरकर जी ने ही उन्हें समझाया था कि तुम एक ऐसी पिता की संतान हो, जिनका शास्त्रीय संगीत और कला में शिखर पर नाम चमक रहा है. अगर देश की सेवा करनी ही है तो संगीत के मार्फत समाज की सेवा करते हुए उसे किया जा सकता है. यहीं से लता मंगेशकर का मन भी बदला है, जो उन्हें संगीत की तैयारी के लिए ले आया. एक तरह से हम भारतीयों को सावरकर का ऋणी होना चाहिए कि अगर उन्होंने उस दिन लता मंगेशकर को कुछ दूसरे ढंग से समाज-सेवा करने से रोका न होता, तो आप उम्मीद कर सकते हैं कि पिछली अर्द्ध शताब्दी और यह नयी सदी सुरीलेपन से कितनी विपन्न होती.”
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सावरकर ने लता जी को संगीत के माध्यम से समाज की सेवा करने का रास्त दिखाया था |
इसमें कोई शक नहीं कि क्रांतिकारी वीर सावरकर एक महान राष्ट्भाक्त होने के साथ-साथ समाज में समग्रता की पहचान को कायम रखने वाले सचेतक भी थे. उस महान दृष्टा ने लता मंगेशकर की संगीत की असीम क्षमता को अवश्य पहचान लिया होगा. इसीलिए उन्होंने लता मंगेशकर को संगीत में जाने के लिए प्रेरित किया होगा.
सावरकर और लता मंगेशकर के बीच संवाद और संबंध इतने तक सीमित नहीं थे. बहुत कम लोग जानते होंगे कि लता मंगेशकर ने सावरकर के लिखे गीत ‘हे हिन्दू नरसिम्हा’ को स्वर भी दिया है. इसके अलावा भी सावरकर के लिखे कई गीत लता मंगेशकर की आवाज बनकर श्रोताओं तक पहुंचे हैं.
यतीन्द्र मिश्र ने एक सवाल के रूप में जब लता मंगेशकर से पूछा कि राजनीतिक क्षेत्र में कोई ऐसा व्यक्ति जो आपको पसंद हो अथवा उस व्यक्ति की शख्सियत आपको बहुत पसंद हो? लता मंगेशकर का जवाब एकबार फिर क्रांतिकारी वीर सावरकर का नाम लिए बिना नहीं पूरा होता है. वो कहती हैं, 'मुझे इंदिरा गांधी व्यक्तिगत रूप से पंसद हैं. पंडित जवाहरलाल नेहरु जी की भी तहेदिल से इज्जत करती हूँ. लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी को मै एक बड़े नेता के रूप में मानती हूं. सक्रीय राजनीति से अलग, मगर देशप्रेम में डूबे किसी राजनीतिक चरित्र की बात करें मै वीर सावरकर को गहरे सम्मान से याद करती हूँ.' हालांकि एक दूसरे सवालों के जवाब में वो राजनीतिक लोगों में अटल विहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी का नाम भी अपने करीबी लोगों में लेती हैं.
यतीन्द्र मिश्र द्वारा लता मंगेशकर पर लिखी गयी इस किताब में ऐसे अनेक तथ्य हैं जिनके बारे में लोगों को नहीं पता है. निश्चित लता मंगेशकर को जानने के लिहाज से यह किताब पढना बेहद जरुरी है.
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