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Updated: 14 फरवरी, 2018 11:06 AM
महेंद्र गुप्ता
महेंद्र गुप्ता
  @mahendra.manas2100
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मैं ऊपर वाली बर्थ पर लेटा-लेटा लंबे समय से उनकी बकवास सुन रहा था. रहा नहीं गया, नीचे आया और उनसे पूछा, "आखिर आप सरकार से चाहते क्या हैं?"

बोले, "मैं सरकार से चाहता हूं वैलेंटाइन डे को राष्ट्रीय पर्व घोषित किया जाए. इसके बिना प्रेमियों के अच्छे दिन नहीं आ सकते. सरकार छठ पूजा पर तमाम व्यवस्थाएं करती है, कुंभ के लिए फंड देती है, लेकिन मोहब्बत के इतने बड़े पर्व के लिए कुछ नहीं करती."

मैंने कहा "ये सब सरकार क्यों करेगी?"

बोले, "हमारी सरकार धर्मनिरपेक्ष होते हुए भी सब धर्मों के पर्व के लिए सब करती है, लेकिन इस धर्मनिरपेक्ष 'प्रेम पर्व' पर कुछ नहीं करती."

मैंने पूछा, "सरकार को क्या करना चाहिए?"

गुस्से में बोले, "अरे कैसी बातें करते हो. सरकार सब कर सकती है. सबसे पहले बेगर्लफ्रेंडधारियों का रजिस्ट्रेशन होना चाहिए, जैसे बेरोजगारों का होता है. फिर गिफ्ट, रोज, टैडी, चॉकलेट इन सब में सब्सिडी दी जानी चाहिए, पार्कों में सुरक्षा तगड़ी हो, जो होटल का खर्च नहीं उठा सकते, उन्हें तम्बू की व्यवस्था हो, वैलेंटाइन डे से पहले बेगर्लफ्रेंडधारी और बेबॉयफ्रेंडधारिनियों के परिचय सम्मेलन होना चाहिए. अंतरजातीय जोड़ों को सरकार को अतिरिक्त सुख-सुविधाएं देनी चाहिए. जैसे सप्ताह में एक फ़िल्म का फ्री टिकट, महीने में एक डेट का खर्च सरकार उठाए. बस इतनी सी हम प्रेमियों की अपेक्षाएं हैं सरकार से, लेकिन सरकार अच्छे दिन लाना ही नहीं चाहती. आजादी के बाद इतनी सरकारें आईं और गईं, लेकिन आज तक किसी सरकार ने प्रेमियों की सुध नहीं ली. मैं 14 साल से बजट भाषण बड़े ध्यान से सुन रहा हूं कि शायद इस बार प्रेमियों के लिए सरकार कोई योजना लाए, लेकिन कुछ नहीं होता. अब आंदोलन के सिवाय हमारे पास कोई विकल्प नहीं. विरोधस्वरूप 5 बाइक और 3 कारें जलाने का लक्ष्य रखेंगे. पहली बार देश भर के बेगर्लफ्रेंडधारी दिल्ली में एक मंच पर होंगे."

मैंने कहा, "लेकिन गर्लफ्रेंड बनाना तो आपकी निजी क्षमताओं पर निर्भर करता है, इसमें सरकार का क्या दोष?"

सुनते ही भड़क गए. चिल्लाते हुए बोले, "बिल्कुल दोष है सरकार का, अब आप मेरा मुंह मत खुलवाइये."

मैंने कहा, "मुंह तो आपका पहले ही खुला है."

तमतमाते हुए बोले, "आपको ये मजाक का विषय लगता है. हमारी भावनाओं से मत खेलिए. किस सरकार की वकालत कर रहे हैं आप? अरे इतनी महंगाई है कि लड़के खा-पी तक नहीं पा रहे. अच्छे, खबसूरत और तंदुरुस्त नहीं दिखेंगे तो अच्छे बॉयफ्रेंड कैसे बनेंगे. हम बेरोजगार हैं. सरकार रोजगार नहीं देती तो लड़कियां भाव नहीं देतीं. सरकार रोजगार नहीं दे सकती तो कम से कम महीने की एक डेट का 'न्यूनतम समर्थन मूल्य' तो दे. इतने सालों में सरकार ने प्रेम का एक स्कूल-कॉलेज नहीं खोला. लड़की पटाने की शिक्षा-दीक्षा ही नहीं हुई हमारी."

स्टेशन पर गाड़ी रुकी और एक बेहद खूबसूरत लड़की डिब्बे में चढ़ी. महाशय ने खड़े होकर उसे अपनी सीट ऑफर की, लेकिन क्रेडिट सामने वाला ले गया. उस लड़की को ताड़ने में महाशय ऐसे मशरूफ हुए कि अपनी सारी पीड़ा भूल गए. जनाब की नजरों से खुद को बचाने के लिए लड़की खिड़की की ओर मुंह किए उसे ऐसे देखती रही, जैसे कह रही हो, "हे खिड़की मां मुझे खुद में समा ले."

महाशय ने उस पर इतने वार किए कि लड़की परास्त होकर अगले डिब्बे में चली गई. महाशय ने नजरों से उसे दूर तक छोड़ा और फिर पेट वापस बाहर निकाला, जिसे अंदर करते-करते उनकी हिम्मत जवाब दे गई थी.

मैंने पूछा, "सर जी ऐसे मामलों में सरकार को क्या करना चाहिए?"

उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. मैंने कहा, "सर जी एक आइडिया है मेरे पास. बताऊं?"

उन्होंने मुड़ी हिलाई. मैंने कहा, "सरकार को एक नेत्र शिविर ऐसा भी लगाना चाहिए, जिसमें हवसी नजरों के इलाज की व्यस्था हो."

सुनकर महाशय ज्यादा देर वहां नहीं रुके, अगले कम्पार्टमेंट में चले गए.

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लेखक

महेंद्र गुप्ता महेंद्र गुप्ता @mahendra.manas2100

लेखक आजतक में पत्रकार हैं

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