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Updated: 18 जनवरी, 2018 04:25 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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जजों के बीच चल रही अनबन के बीच सुप्रीम कोर्ट में उस केस की भी सुनवाई होनी है, जिसमें बीएसएफ की गोली से एक 15 साल की लड़की की मौत हो गई थी. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है. दरअसल, भारत और बांग्लादेश की सीमा पर कटीले तारों वाली बाड़ को पार करते समय बीएसएफ ने फेलानी खातून नाम की इस लड़की को गोली मार दी थी. बीएसफ के जिस जवान में उसे गोली मारी थी, उस पर आरोप है कि उनसे अवैध रूप से लड़की को गोली मारी. सीमा पर लगे तारों की बाड़ से लटके उसके शव की तस्वीर और फिर सेना द्वारा एक डंडे पर बांधकर ले जाने वाली तस्वीर सामने आने के बाद विरोध प्रदर्शन भी हुए. इन दोनों तस्वीरों ने फेलानी खातून की मौत को दुनिया के सामने ला दिया, जिसके बाद बीएसएफ को कटघरे में खड़े होना पड़ा. अब सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई होनी है.

सुप्रीम कोर्ट, भारतीय सेना, बीएसएफ, बांग्लादेश, भारत

क्या है मामला?

15 साल की फेलानी खातून बांग्लादेश से अपने पिता के साथ गैर-कानूनी तरीके से भारत में घुस आई थी. वह दिल्ली में पिता के साथ रहती थी और काम करती थी. 7 जनवरी 2011 को वह अपने पिता के साथ वापस अपने घर बांग्लादेश जा रही थी. घर वापस जाने के लिए फेलानी और उसके पिता ने पश्चिम बंगाल के कूच बेहार से होते हुए जाने का फैसला किया. दोनों कूच बेहार से होते हुए सीमा पार कर रहे थे. तारों की बाड़ को पार करने के लिए उन्होंने तीन सीढ़ियों का सहारा लिया. पहले पिता ने बाड़ को पार किया, लेकिन जब फेलानी बाड़ को पार करने लगी तो बीएसएफ ने उसे देख लिया और गोली मार दी. बीएसएफ पर यह भी आरोप है कि फेलानी गोली लगने के बाद बाड़ पर ही लटक गई थी और करीब ढाई-तीन घंटे तक तड़पती रही, लेकिन उसकी मदद नहीं की गई.

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बीएसएफ के जवान पर चल रहा मुकदमा

फेलानी खातून को बीएसएफ के जवान अमिया घोष ने गोली मारी थी. अभी तक उसके खिलाफ दो केस चल चुके हैं और दोनों में ही उसे निर्दोष करार देते हुए बरी कर दिया गया है. अमिया घोष के खिलाफ पर्याप्त सबूत न होने की वजह से उन्हें बरी कर दिया गया था. अब यह केस सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है. सुप्रीम कोर्ट में 15 साल की बेकसूर फेलानी खातून की मौत को लेकर एक याचिका दायर की गई है, जिस पर सुनवाई होनी है.

काम की तलाश में होती है घुसपैठ

बांग्लादेश से भारत में घुसने वाले अधिकतर लोग काम की तलाश में आते हैं. कुछ पैसे कमा कर अपना गुजारा करने के लिए वह गैर-कानूनी तरीके अपनाने से भी नहीं चूकती. बस इसी गलती की कीमत कई बार उन्हें जान देकर भी चुकानी पड़ती है. लेकिन इनकी आड़ में बहुत से आतंकी भी देश में घुसपैठ करने की कोशिश करते हैं. खुफिया एजेंसी के मुताबिक 2014 में करीब 800 और 2015 में लगभग 659 घुसपैठिए बांग्लादेश की सीमा से होते हुए भारत में घुसे थे. वहीं दूसरी ओर, पिछले ही साल खुद बांग्लादेश सरकार ने भारत को चौकन्ना करते हुए कहा था कि करीब 2000 हुजी (Huji) और (JMB) आतंकी भारत में घुस चुके हैं. इन सभी के पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा में छुपे होने की आशंका जताई जा रही थी. एक रिपोर्ट के मुताबिक 2001 से लेकर 2017 तक बीएसएफ की गोली से करीब 767 बांग्लादेशी नागरिक मारे गए हैं.

देखते ही गोली मारने के हैं आदेश

शुरुआत में बांग्लादेश से भारत में घुसपैठ करने वालों को बीएसएफ के जवान पकड़कर वापस बांग्लादेश भेज देते थे. लेकिन धीरे-धीरे पैसे लेकर छोड़ने जैसे भ्रष्टाचार सामने आए और हुजी जैसे अतांकी समूहों ने देश में आतंक मचा दिया, जिसके बाद सीमा पर देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए गए. इसके लिए शूट-टू-किल (shoot-to-kill) पॉलिसी बनाई गई है. आपको बता दें कि HuJI समूह के आतंकियों ने सबसे पहले 2002 में कोलकाता के अमेरिकन सेंटर पर हमला किया था, जिसमें 5 पुलिसवालों की मौत हो गई थी. 2005 में उन्होंने हैदराबाद में भी सुसाइड बम के जरिए हमला किया था, जिसमें एक पुलिसवाले की मौत हुई थी. 2006 में हुजी आतंकियों ने सिमी के साथ मिलकर वाराणसी के संकटमोचन मंदिर और रेलवे स्टेशन पर हमला किया. 2007 में हुजी ने हैदराबाद में दो बड़े धमाके किए, जिसमें करीब 40 लोगों की मौत हो गई.

15 साल की फेलानी खातून के मामले में बीएसएफ जवान दोषी है या फिर कोई और इसका फैसला तो सुप्रीम कोर्ट करेगा. लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर सीमा पर देश की सुरक्षा कर रहे बीएसएफ के जवानों के पास और विकल्प क्या है? गैर-कानूनी तरीके से सीमा पार कर रहे लोगों के खिलाफ अगर सख्ती नहीं बरती जाएगी तो घुसपैठ रुकेगी कैसे? और अगर घुसपैठ नहीं रुकी तो देश को आतंकी खतरों से मुक्त कैसे बनाया जा सकेगा?

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