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वेश्यावृत्ति पर कोर्ट का फैसला क्या बदलाव लाएगा?
देह व्यापार के पेशे से कोई मन से तो नहीं जुड़ेगा, तो आखिर क्यों शहर के एक कोने को अपने नाम से बदनाम करती है? क्यों एक दिन में 3-4 खरीदारों से पैसे कमाती, देह की तमाम बीमारयों से जूझती हुई उन गलियों में रहती है? भूख उनमें से सबसे बड़ी बीमारी है.
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यूं तो कोर्ट के फैसलों का शोर आज कल ज़ोरों पर है. किन्तु वो फैसले ईश्वर और इंसानो के लिए होते हैं जिन्हे समाज ने खुद से अलग थलग कर अधेरों में धकेल रखा हो. उनके अधिकार पर फैसलों की चर्चा - इस पर भला समाज क्यों शोर करे? लेकिन फैसला हुआ है और न जाने कितनों के चेहरे पर दर्द भरी मुस्कराहट आयी होगी. एक ऐतिहासिक आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेक्स वर्क यानि वेश्यावृत्ति एक 'कानूनी पेशा' है और पुलिस को सेक्स वर्कर्स के साथ सम्मान के साथ पेश आना होगा. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस को अपनी मर्ज़ी से काम करने वाली यौनकर्मियों - सेक्स वर्कर्स के खिलाफ हस्तक्षेप या कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं करने को कहा है. देखा जाये तो जबसे ये समाज बना तभी से ये वेश्यावृति शुरू हुई तो इसे दुनिया के सबसे पुराने पेशे के रूप में यकीनन देखा जा सकता है. इसी की पुष्टि करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि वेश्यावृत्ति भी एक प्रोफेशन है.
वेश्यावृत्ति पर जो फैसला कोर्ट ने दिया है वो परिवर्तन की दिशा के मद्देनजर कई मायनों में ऐतिहासिक है
कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस को आदेश दिया है कि उन्हें सेक्स वर्कर्स के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. पुलिस को बालिग और सहमति से सेक्स वर्क करने वाली महिलाओं पर आपराधिक कार्रवाई नहीं करनी चाहिए. ये फैसला कोरोना काल में सेक्स वर्कर्स को आई पर परेशानियों को लेकर दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान आया. कोर्ट ने कहा कि सेक्स वर्कर्स भी किसी भी और पेशे में लिप्त लोगो की तरह ही कानून के तहत गरिमा और समान सुरक्षा के हकदार हैं.
तीन जजों की बेंच - जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एएस बोपन्ना ने सेक्स वर्कर्स के अधिकारों को सुरक्षित करने की दिशा में 6 निर्देश भी जारी किए हैं. कोर्ट ने कहा, सेक्स वर्कर्स भी देश के नागरिक हैं. वे भी कानून में समान संरक्षण के हकदार हैं.
वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है- सुप्रीम कोर्ट
सवाल उठेगा की क्या वेश्यालय चलाने को भी मान्यता मिली है? नहीं. वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है किन्तु अपनी मर्जी से प्रॉस्टीट्यूट बनना अवैध नहीं है.बेंच ने साफ़ तौर पर कहा, कि देश के हर नागरिक को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार मिला है तो अगर पुलिस किसी सेक्स वर्कर्स के घर पर छापेमारी करती भी है तो उसे गिरफ्तार या परेशान न करे.
सेक्स वर्कर्स के प्रति संवेदनशील हो पुलिस
नो मीन्स नो - यानि शारीरिक संबंध बनाने के लिए मना करने का अधिकार किसी भी आम स्त्री की भांति एक सेक्स वर्कर के पास भी है और ऐसे में अगर उसके साथ यौन उत्पीड़न होता है, तो उसे कानून के तहत तुरंत मेडिकल सहायता सहित वो सभी सुविधाएं मिलें जो यौन पीड़ित किसी भी महिला को मिलती हैं. ऐसा कई मामलों में यह देखा गया है कि पुलिस सेक्स वर्कर्स के प्रति क्रूर, हिंसक और अपमानजनक रवैया अपनाती है.
एक स्त्री किन हालातों में ऐसे में पुलिस और एजेंसियों को भी सेक्स वर्कर के अधिकारों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए. पुलिस को सेक्स वर्कर के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करना चाहिए, पुलिस को उनके साथ मौखिक या शारीरिक रूप से बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए. कोई भी सेक्स वर्कर को यौन गतिविधि के लिए मजबूर नहीं कर सकता.
समाज का तिरस्कृत हिस्सा
सभ्य समाज की स्थापना के साथ ही वेश्यावृति के पेशे की भी शुरुआत हुई इसके बावजूद समाज ने कभी इन्हे न अपना हिस्सा माना न ही इन्हे सम्मानजनक दृष्टि से देखा. सोनागाछी और कमाठीपुरा की कहानियां गाहे बगाहे साहित्य और फिल्मो का हिस्सा बनती है किन्तु उनके जीवन में बदलाव लाने के लिए नहीं ब्लकि ज़िन्दगी के अंधेरों को रात की स्याही से रोशन करती किसी की कहानी को पर्दे पर दिखाने के लिए.
आश्चर्य है की सभ्य समाज का हर पुरुष यही कहता है की मैंने कभी इन गलियों में कदम नहीं रखा फिर भी शहरों में रेड लाइट एरिया होते हैं और फलते फूलते हैं. इनके रहन सहन के हाल खराब होते हैं ये कहने की ज़रूरत नहीं. आये दिन बिजली पानी सुरक्षा के नाम इनका शोषण होता है. देह व्यापर - धंधा करती है बोल कर देह का फिर शोषण करने वालो की कमी नहीं. इन गलियों का अंधेरा आने वाली पीढ़ियों को भी कल की रौशनी नहीं देखने देता.
कौन होते हैं रेडलाइट में रहने वाले
अक्सर ये ख्याल आता है की इस पेशे से कोई मन से तो नहीं जुड़ेगा तो आखिर कौन है को शहर के एक कोने को अपने नाम कर बदनाम करती है. ह्यूमन ट्रैफिकिंग के आंकड़े दिल दहलाने वाले हैं.राष्ट्रिय मानव अधिकार कमीशन के अनुसार हर साल 40000 बच्चे हिंदुस्तान में अगवा होते हैं जिनमे से 11000 का कहीं कोई पता नहीं चलता.
एक और आंकड़े के मुताबिक 12000 से 50000 के बीच औरतें और बच्चे आसपास के देशों से मानव तस्करी का शिकार बनते हैं जिन्हे देह व्यापर में लगाया जाता है. सात साल से भी काम उम्र के बच्ची को रेड लाइट एरिया में खरीददार के आगे परोस दिया जाता है. पुलिस NGO अगर किसी को ढूंढ कर इस दलदल से बाहर निकलने की सोचे तो समाज और परिवार वाले उसे नहीं स्वीकारते.
रोज़मर्रा के नोन तेल लकड़ी सड़क पेट्रोल महंगाई से झूझता हुआ आम आदमी अपने घर के आसपास के एरिया के बारे में भी सोच नहीं पाता ऐसे में रेड लाइट एरिया की फ़िक्र कौन ही करे.
एक दिन में 3 - 4 खरीदारों से पैसे कमाती ये, देह की तमाम बीमारयों से झूझती हुई उन गलियों में रहती है. भूख उनमे से सबसे बड़ी बीमारी है. हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने इस बात की तस्दीक की है की देह के इस पेशे को जुर्म न माना जाये किन्तु समाज की सोच में इससे कितना बदलाव आता है ये आने वाला वक़्त ही बताएगा.
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