New

होम -> समाज

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 19 मार्च, 2019 05:38 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
  • Total Shares

चुनावी बुखार में डूबा हमारा देश कई बड़ी खबरों से अनजान है. कितने लोगों को पता है कि अबू धाबी में स्पेशल ओलंपिक चल रहे हैं? ये खेल 14 मार्च से शुरू हुए थे और 21 मार्च को इनका समापन होगा. गौरव करने वाली बात यह है कि जिस ओलंपिक खेल में 172 देशों के खिलाड़ी हिस्सा ले रहे हैं, उसमे भारत ने अब तक सबसे अधिक 188 मेडल जीत लिए हैं. नि:शक्त खिलाड़ियों के लिए तैयार किए गए इन खेलों में जीतना कोई आसान बात नहीं है. ये खिलाड़ी सालों की मेहनत के बाद इस तरह अपनी प्रतिभा दिखा पाते हैं, और देखिए भारत के 188 मेडल जीतने की खबर आखिर कितनी जगह देखने को मिली....

भारत की मेडल लिस्ट में 49 स्वर्ण, 63 रजत और 75 कांस्य पदक हैं और इस लिस्ट को देखें तो खिलाड़ियों का हुनर और लगन देखकर किसी भी भारतीय को गर्व होना चाहिए पर आलम तो ये है कि कई लोगों को इसके बारे में पता तक नहीं है. रोलर स्केटिंग, जूडो, पावरलिफ्टिंग, टेबल टेनिस से लेकर कई खेलों में भारतीय खिलाड़ी जीते हैं, लेकिन आखिर किसे पड़ी है हमें तो सोशल मीडिया पर दिख रहा मीम शेयर करने में ज्यादा उत्सुक्ता है!

टेबल टेनिस के मामले में तो भारत ने इतिहास ही बना दिया जहां 4 गोल्ड मेडल और एक सिल्वर मेडल मिला है. जूडो में रोहतक के सोनू कुमार ने गोल्ड मेडल जीता है, लेकिन आखिर किसी को क्यों फर्क पड़ेगा, ये बिग बॉस का विजेता थोड़ी है जो सिर आंखों पर बैठा लिया जाए. महिलाओं की केटेगरी में कृष्णावेनी ने स्वर्ण जीता.

रोलर स्केटिंग में विजय, हुफेजा अयूब शेख, जशन दीप सिंह, हर्षद गाओंकर, हार्दिक अग्रवाल सभी को मेडल मिले हैं. गोवा की संतोषी विजय कौथनकर को तो अकेले ही 4 सिल्वर मेडल जीतने की खुशी मिली है. गोवा की ही सविता यादव को टेबल टेनिस में गोल्ड मिला है. सविता बौद्धिक विकलांग हैं और उन्हें बोलने में भी समस्या होती है. उनकी मां दूसरों के घर में झाडू-पोंछा करती हैं. 15वें स्पेशल ओलिंपिक में भारत ने 378 स्पेशल खिलाड़ी भेजे थे जिनमें से अधिकतर ने किसी न किसी तरह का मेडल जीता है.

सविता की खुशी भले ही वो ठीक से शब्दों में न बता पाएं, लेकिन उनकी आंखों की चम में दिख रही है.सविता की खुशी भले ही वो ठीक से शब्दों में न बता पाएं, लेकिन उनकी आंखों की चम में दिख रही है.

मुश्किलों के आगे बढ़ जीते हमारे स्पेशल खिलाड़ी-

आलम तो ये है कि 19 साल की पावरलिफ्टर मनाली मनोज शिल्के तो अपना लक्ष्य पूरा करने से पहले तीन बार असफल हुईं लेकिन हिम्मत नहीं हारी और आखिर जीत ही गईं.

मनाली को डाउन सिंड्रोम है. भारत में डाउन सिंड्रोम की जागरुकता तो छोड़िए यहां तो इससे पीड़ित बच्चों को पागल और अजीब कहने वालों की भी कमी नहीं होगी.

ये कहानी भी ऐसी ही है. कमीला पटनायक की खोजने पर भी एक ठीक-ठाक फोटो नहीं मिलेगी. कमीला को भी डाउन सिंड्रोम है और फिर भी वो ओलंपिक में गोल्ड और सिल्वर जीत रही हैं.

नंबर 1 है भारत-

समर स्पेशल ओलंपिक 2019 में सबसे ज्यादा मेडल जीतने वाला देश भारत ही है. ये 17 मार्च तक का मेडल काउंट देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारतीय खिलाड़ी किस तरह चमक रहे हैं.

इतनी बड़ी उपलब्धि के बाद भी भारत के इन खिलाड़ियों का परिचय तक ठीक से नहीं दिया गया है.

इन सभी खिलाड़ियों को जिंदगी में किसी न किसी वजह से तकलीफों का सामना करना पड़ा है. किसी को बौद्धिक विकलांगता के जरिए तो किसी को शारीरिक कमियों के चलते लेकिन सभी ने अपनी समस्याओं को कमजोरी नहीं ताकत बनाकर मंजिल पाई है. इनका संघर्ष अभी भी चल रहा है और ये दैनिक समस्याओं से दोचार भी होते हैं और उनपर फतेह भी हासिल करते हैं.

सिर्फ समर ओलंपिक नहीं बल्कि विंटर स्पेशल ओलंपिक में भी भारत ने 77 मेडल जीते थे पिछली बार. पर एक गूगल सर्च आपको ये बता देगी कि भारत के स्पेशल ओलंपिक विजेताओं के साथ क्या होता है.

क्या आपको याद हैं रणवीर सिंग सैनी जिन्हें दो साल की उम्र में ऑटिज्म का पता चला था और वो पहले भारतीय बने जिसे किसी भी अंतरराष्ट्रीय गोल्फ इवेंट में गोल्ड मेडिल मिला.

ऐसे न जाने कितने हीरो हैं जिनके बारे में हमें नहीं पता क्योंकि अगर पता होता तो शायद उनकी जिंदगी को ठीक तरह से समझने की हिम्मत होती. इन लोगों को पास कोई सेलेब्रिटी का तमगा नहीं है, लेकिन फिर भी ये खुश हैं. फिर भी इन्हें इस बात की खुशी है कि ये अपने देश के लिए कुछ कर रहे हैं, क्या इस हालत में भी इन्हें हीरो और हिरोइन न कहा जाए? क्या मनाली मनोज शिल्के के चेहरे पर वो हंसी देखी किसी ने जो वेटलिफ्टिंग के सफल प्रयास के बाद दिखी थी? अगर नहीं देखी तो ऊपर दिए गए वीडियो को फिर से देखिए क्योंकि ये जरूरी है कि उस लड़की के चेहरे पर हंसी देखिए जो अपनी और अपने देश की जीत की खुशियां मना रही है. हमारे देश की एक हिरोइन ये भी है. कुछ न सही, लेकिन कम से कम अपने देश के इन युवाओं का प्रोत्साहन बढ़ाना तो एक भारतीय होने के नाते हमारी जिम्मेदारी है.

स्पेशल ओलंपिक में किस तरह की समस्याएं आती हैं इसकी एक मिसाल सुन लीजिए. ये उदाहरण दिल्ली ओलंपिक में वॉलेंटियर रहीं एक महिला ने दिया. उनके अनुसार एक गेंद उठाकर उसे फेंकना भी किसी स्पेशल बच्चे के लिए बहुत मेहनत का काम है और उसे सिखाने में भी काफी वक्त लगता है. अगर कोई ADHD (हाइपर एक्टिव) बच्चा है तो वो एक जगह शांत भी नहीं बैठ सकता वो हर मिनट हर सेकंड कुछ करता रहता है उसे सिखाना और एक अच्छा तैराक या रेसर बनाना और उसकी एनर्जी सही जगह पर लगाना जरूरी है. वो बाकी काम नहीं कर सकता, लेकिन ये काम बेहतरीन कर सकता है. इन बच्चों की खुशी किसी उपलब्धि के बाद देखकर किसी का भी मन पसीज सकता है.

अंत में चलते-चलते एक ऐसा वीडियो जो शायद किसी को भी ये सोचने पर मजबूर कर दे कि स्पेशल ओलंपिक में जीतना कितना मुश्किल है.

जिम्बाब्वे का ये धावक पैरों से चल नहीं सकता तो हांथों के सहारे दौड़ कर मेडल जीता है. क्या इसकी तैयारी में कोई कमी निकाल सकता है कोई? नहीं बिलकुल नहीं. यही तो होता है हौसला जो किसी भी इंसान के लिए जरूरी होता है.

ये भी पढ़ें-

खेल के मैदान में भारतीय सेना का सम्मान पाकिस्तान का अपमान कैसे हो गया?

पाकिस्तानी क्रिकेटर्स की जुबां पर ना सही, दिल में तो है 'भारत'

 

 

लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय