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Updated: 07 सितम्बर, 2021 08:54 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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हम आपको कश्मीर की एक ऐसी महिला (Srinagar padwoman Irfana Zargar) की कहानी बता रहे हैं जो मुफ्त में महिलाओं के लिए चुपटाप सेनेटरी पैड पब्लिक टॉयलेट में रख जाती हैं. इनका नाम इरफ़ाना ज़रगार है जो श्रीनगर म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के साथ काम करती हैं. जब 2013 में पिता का देहांत हो गया तो कुछ महीनों तक इरफ़ाना को माहवारी के समय कपड़े का इस्तेमाल करना पड़ा.

इसके बाद पिता को श्रद्धांजलि देने के लिए इरफ़ाना ने इस पहल की शुरुआत की ताकि महिलाओं को पीरीयड्स के बारे में जागरूक कर सकें. इसके लिए वो अपनी सैलरी के पांच हजार रूपए का इस्तेमाल करती हैं. सच में कभी-कभी छोटी सी की गई मदद भी कितना बड़ा काम कर जाती है.

हमारे देश में मासिक धर्म पर आज भी लोग बात नहीं करना चाहते. लड़कियां अपनी परेशानी किसी से कह नहीं पातीं, क्योंकि उन्हें बचपन से ही इसे एक छिपाने वाली बात के तौर पर बताया गया है. भले ही कुछ लोग पीरियड्स पर खुलने लगे हैं लेकिन काफी लोगों में झिझक अभी भी मौजूद हैं. गांवों की महिलाओं और लड़कियों का तो और बुरा हाल है.

अभी भी ज्यादातर लड़कियां किसी के सामने खुलकर पीरियड्स नहीं बोल पातीं, इसके लिए वे कोडवर्ड का इस्तेमाल करती हैं. भारत में अभी भी मासिक धर्म को लेकर जागरूकता का काफी अभाव है. Sanitary Protection: Every Woman’s Health Right नाम से की गई स्‍टडी में ये बात सामने आई थी कि देश में अभी भी 88 प्रतिशत महिलाएं सेनिटरी नैपकिंस का प्रयोग नहीं करती हैं.

वे आज भी पुराने तरीकों जैसे कपड़े, अखबारों या सूखी पत्तियों का प्रयोग करती हैं. वजह यह है कि वे सेनेटरी पैड नहीं खरीद सकतीं. जागरूकता के अभाव के साथ आर्थिक तंगी भी इसका मुख्य कारण हैं. घरों में जब महिलाओं का खराब स्वास्थय कोई बड़ी बात नहीं होती तो पैड कैसे हो सकता है.

Irfana Zargar, Srinagar, Padwoman, Srinagar pad woman, women health tips, irfana zargar twitterअपनी सैलरी के पैसों से करती हैं महिलाओं की मदद

पब्लिक टॉयलेट हो, बस हो, मेट्रो हो, ट्रेन हो या ऑफिस कई जगहों पर महिलाओं को परेशानी का सामना करना पड़ता है. जो महिलाएं जागरूक हैं वे तो अपने बैग में एक पैड हमेशा रखकर चलती हैं. उन्हें पता है कि जब इमरजेंसी में जरूरत पड़ेगी तो मुश्किल हो जाएगी. हर जगह सुविधा जो मौदूज नहीं है. शायद लोगों के लिए ये इतना बड़ा मुद्दा नहीं है. जो हर महीने 2 पैकेट पैड लाकर घर की महिलाओं को दे दें. सरकार क्या सुविधा देती है इसके बारे में बी लोग जागरूक नहीं है.

खैर, आपने अक्षय कुमार की पैडमैन तो देखी होगी लेकिन श्रीनगर की पैडवुमेन इन दिनों चर्चा का विषय हैं क्योंकि इन्होंने मासिक धर्म को लेकर एक महिला ने अनूठे पहली की शुरूआत की हैं.

बात सिर्फ दाग छिपाने भर की नहीं है जिसे गलती से देख लोग मुंह-नाक सिकोड़ लेते हैं. असल में माहवारी को लेकर जागरुकता कमी महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधित कई समस्याओं कारण बनती है. डॉक्‍टर्स बताते हैं कि इस वजह से लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं reproductive tract infections से पीडि़त हैं. 

इतना ही नहीं एक रिपोर्ट कहती है कि गांवों-कस्‍बों के स्‍कूलों में कई बच्चियां, पीरियड्स के समय 5 दिन तक स्‍कूल नहीं जाती हैं. वहीं 23 प्रतिशत बच्चियां, माहवारी शुरू होने के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं. इसके बाद ही सरकार ने बड़े स्‍तर पर स्‍कूलों में फ्री नैपकिंस बांटने का फैसला किया. पैड खरीदने की हैसियत अभी हर भारतीय घर में नहीं है.

नौशेरा की इरफ़ाना ज़रगार कहती हैं कि "मेरे पिता मेरे लिए बाज़ार से सैनिटरी पैड्स लाते थे. उनकी मौत के बाद मैंने कुछ समय तक कपड़े का इस्तेमाल किया और फिर सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल शुरू किया. मुझे पता है कि कई महिलाएं सेनिटरी पैड नहीं खरीद सकतीं. इसलिए मैंने अपनी बचत से महिलाओं को सेनिटरी पैड और अन्य चीजें बांटने का निर्णय लिया."

असल में इरफ़ान अपनी नौकरी की वजह से उन्हें सेनिटरी किट खरीद पाती हैं. वो अपनी सैलरी का कुछ हिस्सा सेनिटरी पैड में लगाती हैं. वो कहती हैं कि "मैं ऑफिस के बाद, रविवार को और छुट्टियों के दिन सोशल वर्क करती हूं. मैं टोकरियों में सामान रख कर उन्हें पबल्कि टॉयलेट्स में टांग देती हूं."

इरफ़ाना अपनी सैलरी के 5000 रुपए सेनिटरी किट बनाती हैं और जरूरतमंद महिलाओं की मदद करती हैं. महिलाओं की जिंदगी बनाने के लिए वो अपनी करफ से हर संभव प्रयास कर रही हैं. हमें उम्मीद है कि इरफ़ाना अपने इस सराहनीय काम से लोगों को प्रेरित करने में सक्षम होंगी…वरना पता नहीं कब तक महिलाओं को यह तकलीफ झेलनी होगी...कब तक ऐसे हालात बने रहेंगे. जमाना कहां से कहां निकल गया लेकिन महिलाओं को पैड अभी भी नहीं मिल पा रहा...

लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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