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Updated: 12 जनवरी, 2018 06:40 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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आजाद भारत में सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब लोकतंत्र के तीसरे स्तंभ (न्यायपालिका) को अपनी बात रखने के लिए चौथे स्तंभ (मीडिया) का सहारा लेना पड़ रहा है. सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने सुप्रीम कोर्ट में हो रही है अनियमितताओं के बारे में मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर शिकायत की थी, लेकिन दो महीने तक कोई एक्शन न लेने पर इन जजों ने अब प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए अपनी बात कही है. सबको न्याय दिलाने वाला सुप्रीम कोर्ट भी आज कटघरे में खड़ा हो गया है. सवाल उठ रहे हैं कि अगर खुद सुप्रीम कोर्ट भी अनियमितताओं से नहीं बचेगा तो दूसरों को न्याय कैसे दिलाएगा? भले ही सुप्रीम कोर्ट में हो रही अनियमितता के बारे में पहली बार जजों ने इस तरह शिकायत की हो, लेकिन न्यायपालिका पहले भी सवालों के घेरे में रह चुकी है.

दलित विरोधी होने का आरोप

कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस सीएस कर्णन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना नोटिस जारी किया था. कर्णन ने इसे दलित विरोधी कदम करार दिया था. आपको बता दें कि कर्णन ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर 20 जजों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की शिकायत की थी. जस्टिस कर्णन के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अगुवाई वाले 7 जजों की बेंच का झुकाव सवर्णों की ओर था. ऐसा पहली बार हुआ था जब सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने किसी हाईकोर्ट के सिटिंग जज के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया. कर्णन ने यह भी कहा था कि उनकी सुनवाई जस्टिस जेएस खेहर के रियारमेंट के बाद होनी चाहिए, क्योंकि खेहर का झुकाव सवर्णों की ओर है और वह दलित विरोधी हैं. भले ही कर्णन को 6 महीने की जेल काटनी पड़ी, लेकिन उनके आरोपों ने न्यायपालिका पर सवाल जरूर खड़े कर दिए.

सुप्रीम कोर्ट, अदालत, न्यायपालिका, न्यायाधीश

तबादले से परेशान जज ने दिया इस्तीफा

सितंबर 2017 में कर्नाटक हाईकोर्ट के जज जयंत एम पटेल ने अपने तबादले से परेशान होकर इस्तीफा दे दिया था. आपको बता दें कि जयंत पटेल वही जज हैं जिन्होंने इशरत जहां मुठभेड़ मामले में सीबीआई जांच का आदेश दिया था. अभी उनके रिटायर होने में करीब 10 महीने बचे थे, लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि उनका तबादला इलाहाबाद किया जा रहा है, उन्होंने इस्तीफा दे दिया. उनके इस तबादले पर यह भी कहा जा रहा था कि इशरत जहां मुठभेड़ केस की वजह से ही उनका तबादला किया जा रहा है. हालांकि, खुद जयंत ने ऐसा कुछ नहीं कहा.

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धरना देने को जज मजबूर

मध्यप्रदेश के जबलपुर में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश आरके श्रीवास तबादले से परेशान होकर धरने पर बैठ गए थे. यह घटना अगस्त 2017 की है. श्रीवास का आरोप था कि महज 15 महीनों के अंदर ही उनका 4 बार तबादला किया गया है. जबलपुर उच्च न्यायालय के इतिहास में भी ऐसा पहली बार हुआ था, जब कोई जज धरने पर बैठ गया था. उनका आरोप था कि न्याय व्यवस्था में बैठे कुछ लोग मनमाने तरीके से काम कर रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट, अदालत, न्यायपालिका, न्यायाधीश

यानी अगर देखा जाए तो न्यायपालिका पिछले कुछ महीनों से चर्चा में ही रही है. पहले यह मामले हाईकोर्ट के लेवल या फिर सुप्रीम कोर्ट के किसी जज तक सीमित थे. अब इसकी आंच देश के मुख्य न्यायाधीश तक पहुंच चुकी है. काफी समय से जो सिर्फ एक चिंगारी थी, उसे अब इन चार जजों ने हवा देकर आग बना दिया है. देखने वाली बात ये होगी कि इस आग की तपिश से सुप्रीम कोर्ट के काम-काज दुरुस्त होंगे या फिर इसमें इन चार जजों के ही हाथ झुलसेंगे.

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