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Updated: 05 दिसम्बर, 2018 01:46 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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सामान रिपेयर करने वाला मैकेनिक ही ये बात ईमानदारी से बता सकता है कि चीज़ों का इस्तेमाल कितने कायदे से या फिर कितना बेतरतीबी से किया गया है. ठीक उसी तरह जैसे डॉक्टर मरीजों का हाल देखकर उसकी पूरी हिस्ट्री जान लेते हैं.

ऐसे ही एक शख्स हैं स्लेड फ़ियरो, जो सेक्स डॉल्स को रिपेयर करने का काम करते थे. जब उन्होंने अपने अनुभव साझा किए, तो सेक्स डॉल्स के मालिकों का मानसिकता का ऐसा नमूना सामने आया जिस पर शायद कोई भी विश्‍वास नहीं करेगा. वह सब हैरान करने वाला है.

sex doll

स्लेड करीब 10 साल से ये काम कर रहे थे और उन्होंने 100 से भी ज्यादा सेक्स डॉल्स को ठीक किया है. लेकिन आश्चर्य की बात है कि उनके पास आई हुई डॉल्स इसलिए खराब नहीं हुई थीं कि उनका बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया गया था, बल्कि उनकी हालत इसलिए खराब हुई कि उनका गलत तरीके से इस्तेमाल हुआ.

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'अगर कोई व्यक्ति अपनी डॉल का ठीक से रखरखाव करे तो इस्तेमाल किए जाने के बावजूद भी वो काफी लंबे समय तक साथ देती हैं.'

स्लेड के पास कुछ डॉल्स इतनी बुरी हालत में ठीक होने के लिए आती थीं कि वो खुद भी असहज महसूस करने लगते थे. उन्हे गुड़ियों की हालत देखकर गुस्सा आता था. गुड़ियों के साथ यौन हिंसा की जाती थी.

ब्रिटेन के 'द सन' अखबार को दिए इंटरव्‍यू में उन्होंने बताया- 'मेरे पास एक व्यक्ति आया था जो यौन हिंसक था, जिसने अपनी डॉल का बुरा हाल किया हुआ था. उसके साथ इतनी बुरी तरह से संबंध बनाए गए थे कि डॉल का बायां पैर बुरी तरह से टूटा हुआ था. वो मेरे पास दो बार उस डॉल को लेकर आया, दूसरी बार के बाद मैंने उसे मना कर दिया कि कभी मेरे पास वापस मत आना. वो आदमी पागल था, विकृत मानसिकता का लगता था. इस धरती के किसी भी व्यक्ति की इज्जत की जा सकती है पर उसकी नहीं, उसने महिलाओं के बारे में जो बातें कीं और जो व्यवहार किया वो मेरे लिए बेहद गंभीर है.'

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पर अफसोस कि इस शख्स जैसे और भी कई लोग स्लेड के पास आए जिनकी डॉल्स को देखकर आसानी से अनुमान लगाया जा सकता था कि उनके साथ किस तरह का बर्ताव किया गया था और किस तरह की हिंसा की गई थी.

'बहुत सी डॉल्स ऐसी थीं जिनका जरा भी ख्याल नहीं रखा गया था. पुरुष उन डॉल्स को लेकर अलग अलग स्तर तक गए, जिसे सोच भी नहीं सकते. किसी भी व्यक्ति की कामुकता अलग अलग तरह की हो सकती है, और जब वो हदें पार करती है तो उसे समझना काफी मुश्किल हो जाता है', हम अगर डॉल की भी बात करें तो इज्जत तो उसे भी देनी ही चाहिए.'

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स्लेड अब इस काम से रिटायर हो चुके हैं लेकिन वो बताते हैं कि उन्होंने मानव शरीर के बारे में जानने के लिए अपने एक पैथोलॉजिस्ट दोस्त के साथ एक मुर्दाघर में काम किया. और वहां से सीखकर जब वो अपनी डॉल की सर्जरी की तस्वीरें अपनी वेबसाइट पर अपलोड करते तो वो एकदम असली लगती थीं. इससे स्लेड को पूरे अमेरिका से काम मिलने लगा था.

वो डॉल्स को केवल आंतरिक रूप से ठीक करते थे यानी केवल रिपेयर, फिर भी उनके पास ऐसे लोग भी आते थे जो चाहते थे कि उनकी डॉल अलग तरह की हो. यानी एक ही डॉल में वो स्त्री और पुरुष दोनों के गुण चाहते थे, वो ब्रेस्ट भी चाहते थे और पुरुष का लिंग भी. स्लेड को हैरानी होती है कि कंपनी से डॉल खरीदकर लाने पर तो लोग हर चीज पर विचार करते हैं, अपनी जरूरत उन्हें बताते हैं कि शरीर कैसा हो, रंग कैसा हो मेकअप कैसा हो, फिर बाद में आप उसे कैसे बदलना चाहते हो?

स्लेड भले ही ये काम छोड़ चुके हों, लेकिन सिर्फ सेक्स डॉल्स को रिपेयर करने से ही वो इंसान के उस घिनौने रूप को देख पाए जो चार दीवारी के पीछे रात के अंधेर में दिखाई देता है. एक महिला के प्रति पुरुष की कामुकता, उसका वहशीपन, उसके मन के सारे भाव वो लाखों रुपए खर्च कर लाई गई सेक्स डॉल पर निकालता है. शायद वो ये जानता है कि ये डॉल्स निर्जीव हैं. उन्हें दर्द नहीं होगा. खून नहीं बहेगा. तो उसके साथ कैसा भी अमानवीय व्यवहार किया जा सकता है, और लोग वही कर भी रहे हैं.

पर इन सेक्स डॉल्स को इस्तेमाल करने के बाद इनकी हालत कैसी होती है वो स्लेड अच्छी तरह जानते हैं. ठीक वैसे ही जैसे एक डॉक्टर, जो एक रेप विक्टिम के शरीर की हालत देखकर उसपर बीती जान लेता है और रेपिस्‍ट के वहशी रूप को समझ लेता है. अफसोस होता है कि लोग जितना पैसा खर्च करके एक कार खरीद सकते हैं उस पैसे से सेक्स डॉल खरीदकर लाते हैं, बात अगर सिर्फ अपनी सेक्स लाइफ संवारने की हो तो भी ठीक है, पर यहां तो अपनी यौन कुंठाओं को पालने के लिए ये सब किया जा रहा है. और सेक्स डॉल्स का कारोबार ऐसे ही चल रहा है.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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