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Updated: 13 अक्टूबर, 2020 06:18 PM
मशाहिद अब्बास
मशाहिद अब्बास
 
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घर का चिराग कहा जाता है घर के बेटों को, और चिराग इसलिए कहा जाता है ताकि वह चिराग बड़ा होकर घर पर भी रौशनी पैदा करे और घर के बाहर भी जहां जाए रौशनी देने का काम करे. लेकिन कुछ चिराग हमारे समाज में ऐसे हैं जो रौशनी देने की जगह आग लगाने के काम आते हैं. ये चिराग दूसरों के घर की इज्ज़त, खुशी, हक सबकुछ पलभर में छीन लेते हैं (Rape Cases In India). ये चिराग अपनी मर्दानगी के नशे में चूर होकर वह घिनौना खेल खेलते हैं जिससे इंसानियत शर्मसार हो जाती है, शर्म आती है इंसान की हैवानियत पर. पलभर की हवस को मिटाने के लिए किसी की जान तक ले लेते हैं ये चिराग. पर चिराग तो चिराग हैं न.

Marraige, Dowry, Boys, Girls, Rape, Facebook, Twitter, Religionजैसे रेप की घटनाएं बढ़ रही हैं वो सम्पूर्ण इंसानियत को शर्मसार करने वाला है

सवाल इन चिरागों से नहीं होता है जो अपनी हैवानियत दिखाते हैं.

सवाल इन चिरागों से नहीं होता है जो जिस्म को नोच लेने को अपनी मर्दानगी समझते हैं.

सवाल इन चिरागों से नहीं होता है जो हवस के नशे में चूर होकर हैवानियत दिखाते हैं.

सवाल इन चिरागों से नहीं होता है जो किसी की इज्ज़त को मिट्टी में मिला देते हैं.

सवाल इन चिरागों से नहीं होता है कि जो किसी के घर की खुशियों को मातम में तब्दील कर देते हैं.

सवाल इन चिरागों से नहीं होता है जो अपने वहशीपन से वह दरिंदगी दिखाते हैं जिससे इंसान कांप जाता है.

सवाल होता है मगर सवाल उनसे होता है कि वह देश की बेटी रात को घर से अकेले क्यों निकली थी.

सवाल होता है मगर सवाल उनसे होता है कि वह खेत में क्यों गई थी.

सवाल होता है मगर उनसे होता है कि वह लड़के के साथ क्यों थी.

हम उस देश की बात कर रहे हैं जिसका नारा है बेटा-बेटी-एक समान,ये नारा सरकारी है लेकिन इस पर अमल होना कोसों दूर की बात है. बेटा और बेटी में कितना फर्क है हमारे समाज में, हम आज भी कितने आसानी के साथ देश की बेटीयों पर कीचड़ उछाल देते हैं. वह ज़ुल्म सहती है वह अपराध का शिकार होती है लेकिन सवाल उस पर खड़े होते हैं, उसको दोषी ठहराए जाने का रास्ता ढ़ूंढ़ा जाता है, हम किस समाज में रहते हैं क्या हम उन बेटों को कठघरे में नहीं खड़ा कर सकते हैं उनसे सवाल नहीं दागे जा सकते हैं.

आप भी सोच रहे होंगे ऐसा तो कुछ नहीं होता है फिर ऐसा क्यों लिखा जा रहा है. आप या तो अंजान हैं या नसमझ बनने की कोशिश कर रहे हैं. विगत कई वर्षों में जब भी कोई बड़ी बलात्कार की घटनाएं हुयी हैं सब में ही पीड़ित पर ही कीचड़ उछाली गई है आरोपियों को बेगुनाह समझा गया है. ऐसे कई बयान सामने आए हैं जिसपर इंसान सोचने पर मजबूर हो सकता है कि आखिर ये किस समाज में हम रह रहे हैं. सभी बयान तो नहीं कुछ बयान तो हालिया दिनों के हैं पढ़िए और सोचिए ये कहना क्या चाह रहे हैं .

'1-2 रेप होते हैं तो इसका बतंगड़ नहीं बनाना चाहिए.'

'अगर नाबालिग के साथ रेप हो तो वो रेप है अगर 30-34 साल की महिला से रेप हो तो वह नेचर है.'

'लड़कियां पहले तो रेप का मज़ा लेती हैं और बाद में केस दर्ज करा देती हैं.'

'रेप के केस में फांसी चढ़ा दोगे क्या, अरे भई लड़के हैं लड़कों से गलती हो जाया करती है.

'लड़कियों को रेप से बचने के लिए ढ़ंग के कपड़े पहनने चाहिए.'

ये सारे बयान मुख्य नेताओं के हैं जिन्हें शर्म आनी चाहिए इस सोच पर, ये हमारी बदनसीबी है कि ऐसे बयान का लोग समर्थन भी करते हैं. देश की कोई भी बेटी हो जो सवाल उससे किए जाते हैं वो सवाल देश के बेटों से भी होने चाहिए. जिस तरह बेटी के दोस्तों के बारे में रखी जाती है वैसे ही जानकारी बेटों के दोस्तों के बारे में भी रखनी चाहिए. जैसे बेटी के लिए अनर्थ निकलना व समय की पाबंदी रहती है वैसा ही बेटों के साथ भी होना चाहिए. बेटा हो या बेटी उसके आचरण का ज़िम्मेदार मां बाप ही होते हैं उनकी ज़िम्मेदारी है कि अपने बेटे और बेटी को सिखाएं कि समाज को कलंक करने का कार्य कभी भी किसी भी सूरत में न करें.

अगर यह बदलाव नहीं आएगा तो बलात्कार की खबरें लगातार आती रहेंगी बस स्थान, तारीख और किरदार ही बदलेंगें. हमें अपने बेटों को इज़्ज़त का पाठ पढ़ाने की आवश्यकता है. सोशल मीडिया पर क्रोध दिखाने, कैंडल मार्च निकालने, ज्ञापन सौंपनें, जस्टिस फार की मुहिम चलाने से देश नहीं सुधरेगा, इसके लिए हमें और आपको अपने अपने घर, मोहल्लों से शुरुआत करनी होगी और बलात्कार जैसी कुर्कम अपराध के खिलाफ लोगों को एक मंच पर लाकर एक मुहिम चलानी होगी और समाज में बलात्कारियों के विरुद्ध एक माहोल तैयार करने की ज़रूरत है.

हमारे देश में ये अपराध कोई दुश्मन नहीं कर रहा है यह अपराध देश के ही बेटे कर रहे हैं, हमारे और आपके बीच ही वह लोग भी रहते हैं, उनकी सोच को बदलने की ज़रूरत है और एक बड़ी मुहिम से एक बड़ा बदलाव आ सकता है मगर इसके लिए पुरजोर तरीके से कोशिश करनी होगी. इस प्रकार के अपराध से छुटकार पाने के लिए अपने बेटे, अपने दोस्तों और नौजवानों को नियंत्रित करने की ज़रूरत है उऩ्हें एहसास दिलाने का कार्य करना है कि ये कितना जघन्य अपराध है पलभर की हवस को मिटाने के लिए किसी का खून करना किसी भी धर्म के सिद्धान्त के खिलाफ है.

भारत का हर इंसान धर्म को मानता है वह धर्म के सिद्धान्त के डर से अपना फैसला पलट भी सकता है और एक बेटी की इज़्ज़त बच सकती है. सुबह का भूला अगर शाम को घर आ जाए तो उसे भूला हुआ नहीं कहते हैं. अपराधी कोई भी जन्म से नहीं होता उसकी सोच उसे अपराध करने पर मजबूरत कर देती है. हमें अपनी सोच को साझा करना है औऱ हरेक से इस पर चर्चा करनी है. बलात्कारी भी हमारे ही बीच रहते हैं हमको अपनी सोच से उनकी सोच बदलने का कार्य करना है और अगर ऐसा होता है तो हमारा समाज भविष्य में इस कलंक से पूरी तरह से छुटकारा पा जाएगा.

आखिरी बात इन नेताओं के बिगड़े बोल की भी करना ज़रूरी है. हमारे देश में इन बयानों पर महज होहल्ला ही होकर रह गया था लेकिन ऐसा हर जगह नहीं होता है. ब्रिटेन में महिलाओं के खिलाफ आम सी बात कहने पर सजा का प्रावधान है और सजा होती भी है वह कितना भी बड़ा नेता क्यों न हो. भारत में जहरीले बोल और रेप जैसे अपराधों को बढ़ावा देने वाले बयानों पर सख्त कार्यवाई होनी चाहिए ताकि ये नेता अपनी गंदी सोच को समाज पर न थोप सकें।

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लेखक

मशाहिद अब्बास मशाहिद अब्बास

लेखक पत्रकार हैं, और सामयिक विषयों पर टिप्पणी करते हैं.

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