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Updated: 07 जुलाई, 2015 01:53 PM
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हर कोई सोना चाहता है. नींद वाला भी और गहनों वाला भी. दूसरा न भी मिले तो और कई विकल्प हैं - हीरा, चांदी, तांबा और तो और धागा तक भी. पहले के लिए कोई विकल्प नहीं - सोना है तो सोना है, नींद चाहिए तो चाहिए. बड़ा हो या छोटा, अमीर हो या गरीब, सोने से किसे प्यार नहीं? यह है तो सुख-चैन है, वरना पागल घोषित कर दिए जाते हैं. कोर्ट ने भी इसकी अहमियत मान ली है. दिल्ली की एक अदालत ने सोने और शांति पूर्ण जीवन को हर एक नागरिक का अधिकार बताया है.

8-10 घंटे काम करके लौटने के बाद कौन है जो आराम करना नहीं चाहता? मैं तो चाहता हूं, जितने लोगों को जानता हूं, वो सब भी चाहते हैं. कभी बिजली, तो कभी बच्चों की खातिर, रात में जो ठीक से आराम नहीं कर पाते, अगले दिन ऑफिस में उनके चेहरे याद कीजिए - जम्हाई लेते हुए, सुस्त से... दिमाग और शरीर का कनेक्शन कटा हुआ. ऑफिस टाइमिंग खत्म होने का इंतजार करते हुए जैसे-तैसे कर काम निपटाते हैं. ऐसे में एक नाम याद कीजिए - जगराता.

आओ जगराता करें
थक-हार कर आप ऑफिस से घर लौटें और पता चले कि कॉलोनी में जगराता होने वाला है. बस, आप गए काम से! खुशकिस्मत हुए तो कम से कम 1-2 बजे रात तक खुद को भक्तिमय कर लेने के अलावा आपके पास कोई और चारा नहीं. ऐसा इसलिए क्योंकि इच्छा से घुल-मिल गए तो समय कट जाएगा, वरना आपका गुस्सा सिर्फ आपको बर्बाद करेगा, जगराता को चलना है सो चलता रहेगा. भक्ति बहती रहेगी.       

वीकेंड भक्ति
खास नौकरियां करने वालों के वीकेंड भी खास दिन होते हैं - रविवार या शनिवार और रविवार दोनों दिन. मीडिया, पुलिस, अस्पताल, अग्निशमन और ऐसी ही कुछ और नौकरियां आम होती हैं. ऐसे में इनके वीकेंड तो आम ही होते हैं, पर वीकडेज खास - शनिवार और रविवार. अब आपकी कॉलोनी के खास नौकरी वाले लोग शनिवार और रविवार को भक्ति में डूबने का प्लान कर लेते हैं. दो-चार सिंगर और ढोलक-झाल-मृदंग के साथ वे सभी आपको रात भर 'लोरी' सुनाते हैं ताकि आप अगले दिन पूरी 'ऊर्जा' के साथ ऑफिस जा सकें.   

क्यों आया कोर्ट का ऐसा आदेश
दिल्ली के रोहिणी में रहने वाले एक शख्स ने अदालत का दरवाजा इसलिए खटखटाया क्योंकि वह ठीक से सो नहीं पा रहा था, उसकी शांति भंग हो रही थी. वजह थी उसके घर के पास की मंदिर और वहां के लाउडस्पीकरों से निकलने वाली भजन-कीर्तन की आवाज. अदालत ने फैसला सुना दिया - शिकायतकर्ता को बिना रोक-टोक के शांतिपूर्ण जीवन जीने का अधिकार है. साथ ही पुलिस और MCD को आदेश भी दिया कि दो महीने के अंदर मंदिर को कहीं और शिफ्ट किया जाए. इस बीच बिना किसी म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट या लाउडस्पीकर के इस्तेमाल के पूजा का आदेश दिया गया. आपको याद दिला दूं कि सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में ही नींद को मौलिक अधिकार बताया था.      

ज्यादा खुश न हों दूसरे धर्म वाले
कोर्ट के इस आदेश से दूसरे धर्म वाले ज्यादा खुश न हों. आप दूध के धूले नहीं हैं. लाउडस्पीकर से आप सबका प्यार भी जगजाहिर है. सभी की भक्ति भोंपू के माध्यम से ही ऊपर पहुंच पाती है. आप सबकी भी आस्था प्राकृतिक नहीं है, दिल वाली नहीं है, यह इलेक्ट्रिक और वाद्ययंत्र पर टिकी है. आप ज्यादा खुश न हों. कोर्ट की गाज आप पर भी गिर सकती है.

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लेखक

चंदन कुमार चंदन कुमार @chandank.journalist

लेखक iChowk.in में पत्रकार हैं.

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