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Updated: 15 अक्टूबर, 2017 08:27 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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एक वो दौर था, जब सुबह उठते ही घर के पास लगे पेड़ों से चिड़ियों का कोलाहल सुनाई देता था. लोग इस कोलाहल को सुनते, मंद-मंद मुस्काते और अपने कामों पर लग जाते. आज न हमारे परिवेश में, चिड़िया हैं न उनका कोलाहल. कारण बहुतेरे हैं, और उनमें भी सबसे प्रमुख प्रदूषण. चाहे भारत का कोई और शहर हो, या फिर देश की राजधानी दिल्ली. स्थिति हर जगह लगभग समान है. चूंकि दिल्ली देश की राजधानी है तो इसी शहर के इर्द गिर्द बात करना सही रहेगा.

पक्षी, प्रदूषण, मौत, अमेरिका    अमेरिका में पक्षियों की मौत बताती है कि हमने अपने इकोसिस्टम को खुद बर्बाद किया हैदिल्ली में प्रदूषण कितना है ये किसी से छुपा नहीं है. जो इस बात की जांच करनी हो तो सुबह उठिए. जिस्म पर एक सफेद शर्ट डालिए, अपनी स्कूटी या मोटर साइकिल उठाइये और निकल जाइये दिल्ली दर्शन के लिए बात खुद शीशे की तरह साफ और शर्ट कोयले की तरह काली हो जाएगी.

हो सकता है उपरोक्त पंक्तियां पढ़कर आपके दिमाग में प्रश्न आए कि, बिन मौसम आज हम पर्यावरण और चिड़ियों की बातें क्यों कर रहे हैं. न तो आज पर्यावरण दिवस है और न ही कोई अन्य दिवस जो हम अचानक से पर्यावरण के प्रति संजीदा हो गए. तो बात बस ये है कि 'द वॉशिंगटन पोस्ट' ने अपनी वेबसाईट पर एक खबर डाली है. जिसमें उन्होंने अमेरिका में प्रदूषण के कारण मरने वाली चिड़ियों की एक प्रजाति 'डर्टी बर्ड्स' का वर्णन किया है. खबर अमेरिका से है. उसूलन देखा जाए तो वहां क्या हो रहा है ये बात हमारे लिए बिल्कुल भी जरूरी नहीं है. मगर तब भी हम बात इस पर बस इसलिए करना चाह रहे हैं क्यों कि ये पूरा मामला हमारे पर्यावरण और इकोसिस्टम से जुड़ा हुआ है.

प्रदूषण के चलते जीव जंतु वहां अमेरिका में भी मर रहे हैं और यहां भारत में भी. अतः इसपर बात होनी चाहिए. ज्ञात हो कि भारत का शुमार विश्व के उन देशों में है जो गंभीर रूप से प्रदूषण की गिरफ्त में जकड़ा हुआ है. लगातार बढ़ती वाहनों की संख्या और उन वाहनों से निकलने वाले खतरनाक धुंए के चलते आम आदमी का जीना मुहाल है और इसके बाद रही गयी कसर कल कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट पूरी कर देते हैं.

पक्षी, प्रदूषण, मौत, अमेरिका    बीते कुछ सालों में अमेरिका में जिस तरह जीव जंतुओं की मौत हो रही है वो पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा हैबात अगर केवल राजधानी दिल्ली की हो तो राजधानी साल भर प्रदूषण का दंश सहती है. आए दिन वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, नाइट्रोजन, सल्फर ऑक्साइड, अमोनिया जैसी गैसें घुलती हैं जिसके चलते लोगों को जानलेवा बीमारियां हो रही हैं.

यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो एनर्जी पालिसी इंस्टिट्यूट (ईपीआई) द्वारा निर्मित एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (एक्यूएलआई ) पर एक नजर डालें तो मिलता है कि यदि भारत अपने एयर क्वालिटी स्टैण्डर्ड PM2.5(40 µg/m³)को सही से लागू कर ले तो हर भारतीय अपने जीवन काल में 1 वर्ष अधिक जिंदा रहेगा. और यदि ये डब्लूएचओ के मानक PM 2.5 (10 µg/m³) पर चले तो प्रत्येक भारतीय के औसत जीवन में 4 साल की वृद्धि हो जाएगी.

गौरतलब है कि डब्लूएचओ ने हालिया दिनों में एक सर्वे कराया था और अपनी रिपोर्ट में डब्लूएचओ ने इस बात का दावा किया है कि विश्व के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 13 शहर भारत के हैं और इसमें भी राजधानी दिल्ली इन 13 शहरों में टॉप पर रहकर अपना कब्जा जमाए हुए है. सीपीसीबी से प्राप्त आंकड़ों पर यकीन करें तो राजधानी दिल्ली में भी  दिल्ली - आईटीओ, शादीपुर, द्वारका, आनंद विहार, मंदिर मार्ग, आरके पुरम, पंजाबी बाग और आईएचबीएएस वो स्थान हैं जो सबसे ज्यादा प्रदूषित हैं.

पक्षी, प्रदूषण, मौत, अमेरिका    बात भारत की हो तो यहां दिल्ली का शुमार सबसे प्रदूषित शहरों में हैचूंकि बात चिड़ियों से होते हुए प्रदूषण तक आई थी अतः हम इसे ही ध्यान में रखकर अपनी बात खत्म करेंगे. भारत में बैठकर प्रदूषण के चलते अमेरिका में लगातार हो रही चिड़ियों की मौत पर यदि हम दुखी हैं तो हमें पहले अपने देश और देश में भी उस जगह जहां हम रह रहे हैं उसके विषय में सोचना होगा. चाहे गाड़ियों के धुंए में मिली कार्बन मोनो ऑक्साइड, नाइट्रोजन, सल्फर ऑक्साइड और अमोनिया जैसी गैसें हों, मोबाइल रेडिएशन हो या फिर यूरिया मिश्रित खादों का प्रयोग हम भारत वासियों का भी पारिस्थितिकी तंत्र इससे लगातार प्रभावित हो रहा है.

आज गौरैया, मैना, बुलबुल जैस पक्षी लगभग गायब होने की कगार पर हैं और हाल यदि ऐसा ही रहा तो शायद वो दिन दूर नहीं जब हम एनसीईआरटी या फिर डॉक्टर सलीम अली की किताबों में ही इन्हें देखें. अंत में बस इतना ही अब वो वक़्त आ गया है जब पर्यावरण के प्रति हमें अपनी जिम्मेदारी समझ लेनी चाहिए और सजग हो जाना चाहिए. कहीं ऐसा न हों कि जब तक हम इस बात को समझें बहुत देर हो जाए और हमारे मुंह से अपने आप ही निकल जाए 'अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत'.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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