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Updated: 09 दिसम्बर, 2015 06:18 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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ये हमारे सपनों की वो दिल्ली नहीं जिसे सोचकर हम आए थे. राजनीतिक सत्ता की प्रतीक यह दिल्ली अब अपने रिहाइशों को सत्ता के गलियारों की वह सुखद अनुभूति नहीं देता जिसे सोचकर हम आए थे. बड़ा शहर, अच्छी शिक्षा और नौकरी, उत्कृष्ठ स्वास्थ सुविधाएं और बेजोड़ सुखद, स्वच्छद और सरल दैनिक जीवन. हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि इस दिल्ली में यह सबकुछ मुमकिन था और शायद इसीलिए ‘दिल्ली दूर नहीं’ के घोर राजनीतिक नारे को हमने आत्मसात भी किया. पिछले कई दशकों में देश ने जितनी भी आर्थिक तरक्की की है वह हमें सरपट दौड़ती दिल्ली में देखने को मिलती है और शायद यहीं से दिल्ली की दुर्दशा की भी शुरुआत होती है.

पिछले कई दशकों में लोग दिल्ली आते रहे और यहां बसते रहे. सरकारी कॉलोनी, बहुखंड़ी इमारतें और यहां तक कि अवैध कॉलोनियां समान रफ्तार से बढ़ी हैं. दिल्ली में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के नाम पर मेट्रो रेल का इजाफा हुआ लेकिन इसके साथ ही शहर में बस और कार की संख्या में लगातार वृद्धि होती रही है. देश की राजधानी के साथ-साथ चारों दिशाओं में फैसे राज्यों के लिए लिंक का काम भी कर रही इस दिल्ली में लाखों की संख्या में ट्रक और अन्य भारी वाहन गुजरते हैं. इसके चलते राजधानी दिल्ली देश के सबसे प्रदूषित शहरों में भी शुमार हो गया.

जहां कुछ साल पहले तक दिल्ली महज पीने का पानी, बिजली, पब्लिक ट्रांसपोर्ट और स्वास्थ सुविधाओं जैसी दिक्कतों के दबाव में थी वहीं आज प्रदूषण इस शहर की सबसे बड़ी दिक्कत बन चुकी है. प्रदूषण का आलम यह है कि अब दिल्ली में रह रहे लोगों को वातावरण में मौजूद जहरीली गैस के साथ रहने की मजबूरी बन चुकी है. शहर के प्रदूषण का अंदाजा इस बात से लगा लीजिए कि मशहूर उद्योगपति और पूर्व राज्य सभा सदस्य राहुल बजाज का कहना है कि दिल्ली को साफ करने के लिए अगर जल्द कुछ नहीं किया गया तो यहां के लोग मरने के लिए तैयार रहें. बजाज ने कहा कि यदि इस प्रदूषण के प्रति दिल्ली की जनता इतनी सहिष्णु बनी रहती है तो उन्हें इस हवा में मरने के लिए तैयार रहने की जरूरत है.

वहीं चीन की हालत हमारे जैसी ही है. प्रदूषण के चलते राजधानी बीजिंग में पहली बार रेड अलर्ट जारी किया गया है. स्कूल, कॉलेज और फैक्ट्री को तत्काल प्रभाव से बंद करने और सड़कों पर दौड़ रही निजी गाड़ियों को आधा करने के ठोस कदम उठाए जा चुके हैं. सरकार के इन प्रतिबंधों का बीजिंग में न सिर्फ स्वागत किया गया बल्कि हकीकत यह है कि नागरिकों ने ही वहां के प्रदूषण के खिलाफ पहल की जिस पर सरकार को जल्द से जल्द फैसला लेना पड़ा. लेकिन चीन से उलट, हमारे पास ज्यादा विकल्प मौजूद हैं. यदि दिल्ली की आबो हवा इतनी खराब हो चुकी है तो हमें दिल्ली का त्याग कर देना चाहिए और यहां से य तो अपने-अपने मूल शहर या अन्य किसी छोटे अथवा साफ-सुथरे शहर की ओर पलायन कर लेना चाहिए. क्योंकि जिस तरह से हम दिल्ली को प्रदूषित करने में माहिर हो चुके हैं, हम देश के किसी भी शहर को दिल्ली बना सकते हैं. जरूरत सिर्फ वहां जाकर रहने की है.

वहीं अगर आप दिल्ली को छोड़ना नहीं चाहते तब भी आपके पास दो विकल्प है. पहला या तो राहुल बजाज की बात मान ली जाए और अपनी-अपनी मौत का इंतजार किया जाए या फिर बीजिंग की तरह हम भी पहल करें और इस शहर को साफ, सुरक्षित और स्वच्छ करने का बीड़ा खुद उठाएं. आने वाले दिनों से सरकार की तरफ से अगर कई कड़े कदम दिल्ली पर थोपे गए तो इसमें समझना बस एक ही बात है कि दिल्ली पर खतरा भी बड़ा है.

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लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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