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Updated: 17 अप्रिल, 2017 09:30 PM
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सोनू निगम की ट्वीट ने जो बहस छेड़ी है वो शायद एक दो दिन में थम जाए, लेकिन ट्वीट में जो बात कही गई है उसपर वाकई बहस की जरूरत है. बात है लाउडस्पीकर की. सोनू ने एक बहुत ही सही प्वाइंट कहा है. जब पहली बार अज़ान पढ़ी गई थी तब वाकई किसी लाउडस्पीकर का इस्तेमाल नहीं किया गया था. लाउडस्पीकर का इस्तेमाल 1900 के दशक में शुरू हुआ था और मस्जिदों में इसका इस्तेमाल 1930 से किया जाने लगा.

मस्जिदों की मीनारों में लगे लाउडस्पीकर जब सुबह 4 बजे बजने लगें तो आस-पास रहने वालों को कैसा लगता हो इसका अंदाजा अच्छे से लगाया जा सकता है. कुछ मस्जिदों की आज़ान तो 5 किलोमीटर दूर से भी सुनी जा सकती है.

loudspeaker_650_041717060101.jpgकई देशों में मस्जिदों में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल बैन हैइंडोनेशिया दुनिया के सबसे ज्यादा मुस्लिम बहुल देशों में से एक है और यहां अज़ान और लाउडस्पीकर के चक्कर में अब प्रशासन को मेहनत करनी पड़ रही है. कारण ध्वनि प्रदूषण बढ़ गया है.

पहली बार नहीं हो रहा विरोध...

- मस्जिदों में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल का विरोध पहली बार नहीं हो रहा.

- जर्मन की कोलोन शहर में जब कोलोन सेंट्रल मस्जिद बनने की बात छिड़ी थी तो आस-पास रहने वालों ने इसका जमकर विरोध किया था. अंतत: मस्जिद बनाने वाले लोगों को इस बात को मानना पड़ा कि मस्जिद में लाउडस्पीकर नहीं लगाए जाएंगे.

- इसके अलावा, 2008 में ऑक्सफोर्ड इंग्लैंड में मस्जिद से आने वाली आवाज का विरोध किया गया था. इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का इस्तेमाल पूजा के लिए करना सही नहीं है और इससे पड़ोसियों को काफी दिक्कत होती है ये बात कही गई.

- 2004 में मिशिगन के अल इस्लाह मस्जिद रातोंरात चर्चा में आ गया था जब मस्जिद के लोगों ने लाउडस्पीकर इस्तेमाल करने की परमीशन मांगी. कहा गया कि यहां चर्च की घंटियां बजती हैं और इसे भी ध्वनि प्रदूषण में क्यों नहीं गिना जाता.

यहां बैन है लाउडस्पीकर का इस्तेमाल...

- नाइजीरिया के लागोस शहर, नीदर्लेंड्स, जर्मनी, स्वित्जरलैंड, नॉर्वे, बेल्जियम, फ्रांस, यूके और ऑस्ट्रिया सहित मुंबई में भी लाउडस्पीकर के इस्तेमाल सीमित है. यहां रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच लाउडस्पीकर का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. 2016 में ये बैन इजराइल में भी लगा दिया गया. इजराइल के धर्म गुरुओं ने भी इस फैसले को माना.

- आज कुछ लोग सोनू के साथ हैं और कुछ उनके खिलाफ, लेकिन कोई इस बात को नहीं समझ रहा कि सोनू कि दिक्कत अज़ान से ज्यादा लाउडस्पीकर से है. बेशक इसमें सिर्फ अज़ान का नाम नहीं आना चाहिए, मंदिरों के जगराते भी वही काम करते हैं. गणपति और नवरात्री के दौरान भी यही होता है जब फिल्मी गानों के राग पर भजन के बोल किस तरह की पूजा में काम आते हैं इसका तो मुझे नहीं पता, लेकिन आम लोगों को इससे कितनी परेशानी होती है ये जरूर पता है.

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