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Updated: 26 नवम्बर, 2017 07:28 PM
राहुल लाल
राहुल लाल
  @rahul.lal.3110
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भारतीय रेलवे कहने को तो हमारे देश में सार्वजनिक परिवहन की सबसे बड़ी सेवा है. लेकिन सुरक्षा के लिहाज से इसकी हालत चिंताजनक है. भारतीय रेलवे का सबसे सोचनीय पहलू मुसाफिरों को सुरक्षित सफर का भरोसा न दिला पाना है. ये कड़वी हकीकत एक बार फिर उजागर हुई है. 12 घंटे में लगातार 4 रेल हादसे, 3 उत्तर प्रदेश और एक ओड़िशा में. हादसे में कम से कम 7 लोग मारे गए हैं और 11 से अधिक घायल हुए हैं.

सबसे बड़ा हादसा उत्तर प्रदेश-मध्यप्रदेश सीमा से सटे चित्रकूट जिले में हुआ. शुक्रवार को तड़के गोवा से पटना जा रहे वास्कोडिगामा एक्सप्रेस उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में मानिकपुर रेलवे स्टेशन के नजदीक पटरी से उतर गई. इस हादसे ने 3 मुसाफिरों की जान ले ली और कई लोगों की हालत गंभीर है. रेल अधिकारियों के अनुसार दुर्घटना रेल की पटरी में टूट-फूट होने के कारण घटी. इसके अलावा रेल प्लेटफार्म पर जल जमाव से गीली मिट्टी को भी कारण बताया जा रहा है. जाहिर है, यह तथ्य रेलवे की दुर्दशा और बदइंतजामी की ओर इशारा करता है.

उसी दिन तड़के ओड़िशा में बन बिहारी ग्लालिपुर स्टेशन के नजदीक पाराद्वीप-कटक मालगाड़ी के 14 डिब्बे पटरी से उतर गए. इसके पीछे भी पटरी की खराबी को ही कारण माना जा रहा है. वास्कोडिगामा एक्सप्रेस के पटरी से उतरने से 12 घंटे पहले लखनऊ के नजदीक एक गाड़ी और पैंसेजर ट्रेन में टक्कर होने के कारण 4 लोग मारे गए और 2 घायल हो गए. इसे भी रेल दुर्घटना की श्रेणी में रखना होगा, क्योंकि चौकीदार रहित क्रॉसिंग के लिए रेलवे ही गुनाहगार है. वास्कोडिगामा के बेपटरी होने से 2 घंटे पहले सरसवां स्टेशन के पास सुबह 2:30 बजे जम्मू-पटना अर्चना एक्सप्रेस का इंजन ट्रेन से अलग हो गया. इसके बाद पिलखनी में 4:25 बजे और 5:35 बजे इंजन फिर से अलग हो गया.

पिछले 5 साल में करीब 600 लोग रेल दुर्घटनाओं में मारे गए हैं. इनमें से 53% दुर्घटनाएं ट्रेन के पटरी से उतर जाने के कारण और 20% दुर्घटनाएं चौकीदार रहित रेलवे क्रॉसिंग के कारण हुई. ये दोनों ही कारण संसाधन की कमी, तकनीकी खराबी और बदइंतजामी की ओर इशारा करते हैं.

train accidentदुर्घटनाओं में कमी नहीं आई मंत्री भले बदल गए

1950-51 से अब तक यात्री यातायात में 1344% और माल यातायात में 1642% की वृद्धि हुई है. लेकिन रेल मार्ग महज 23% बढ़ा है. आज भारतीय रेल के 66,787 किमी रेल मार्ग के 1219 खंडों में से 492 खंड पर क्षमता से अधिक भार है. इसमें से भी सबसे व्यस्त 161 हिस्सों पर इतना भार हो गया है कि पटरियों की मरम्मत के लिए समय निकालना मुश्किल है. रेलवे में बीते तीन सालों में कुल 361 दुर्घटनाएं हुई हैं. इनमें से 185 दुर्घटनाएं रेल कर्मचारियों की गलती से हुई. लेकिन फिर भी ग्रुप सी और डी में कर्मचारियों के 2.25 लाख पद खाली पड़े हैं.

कायदे से हर साल करीब 5 हजार किमी रेल मार्गों की मरम्मत होनी चाहिए. लेकिन ये तीन हजार किमी के औसत से अधिक नहीं जा रहा है. यही कारण है कि रेल मंत्रालय का नेतृत्व बदलने के बाद भी रेलवे सुरक्षा की स्थिति वहीं की वहीं है. असल जरूरत चेहरा बदलने की नहीं, प्राथमिकताएं और कार्यप्रणाली बदलने की है. रेल हादसों की वजह जानी-पहचानी है- पटरियों की खराबी, सिग्नल की खराबी, फिश प्लेट की अपनी जगह न होना, कुछ और तकनीकी गड़बड़ियां और कर्मचारियों की लापरवाही, आदि. ये ऐसे कारण नहीं हैं, जिन्हें दूर नहीं किया जा सके. सवाल है कि इसके लिए रेल प्रशासन में और रेलवे के नीति-निर्धारकों में इच्छाशक्ति कितनी है?

देश की जीवनरेखा भारतीय रेल अपने 8 हजार से अधिक रेलवे स्टेशनों के जरिए रोज 2.30 करोड़ से अधिक मुसाफिरों को गंतव्य तक पहुंचाती है. यही कारण है कि भारत में रेल दुर्घटनाओं का असर किसी भी अन्य दुर्घटनाओं से काफी ज्यादा होता है. ऐसे में भारतीय रेलवे द्वारा यात्री सुरक्षा को न्यूनतम प्राथमिकता में रखना आश्चर्यजनक है.

जब भी कोई रेल दुर्घटना होती है, मुआवजे की घोषणा कर उसे भूला दिया जाता है. हमें इस सोच से बाहर आना होगा. रेलवे सुरक्षा के कई पहलू होते हैं, लेकिन प्रबंधन के स्तर पर सभी पहलू जुड़े होते हैं. होता यह है कि रेलवे विभाग, रेल सेवाओं में तो वृद्धि कर देता है, लेकिन सुरक्षा का मामला उपेक्षित रह जाता है. राजनीतिज्ञों और प्रबंधकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रेलवे सिस्टम को एक तय सीमा से ज्यादा न खींचा जाए. रेलवे सुरक्षा और सेवाओं के मध्य समुचित संतुलन बनाए रखने की जरुरत है. अब समय आ गया है कि भारतीय रेलवे, सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दे. वरना शायद किसी नए दुर्घटना के बाद भी हम इन्हीं मुद्दों पर चर्चा करते दिखेंगे.

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लेखक

राहुल लाल राहुल लाल @rahul.lal.3110

लेखक अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं

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