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Updated: 25 नवम्बर, 2017 01:29 PM
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नमस्ते मोदी जी,

पिछले कुछ समय से मैं बहुत परेशान हूं और इसलिए अब लगता है कि आपको खत लिखना ही सही है. दरअसल, मुझे और मेरे परिवार को भी समय-समय पर रेल यात्रा करनी होती है और अब रेल एक्सिडेंट को लेकर डर लगने लगा है. कल ही की बात है.. 12 घंटो में 4 रेल दुर्घटनाएं हो गईं. उत्तर प्रदेश में वासको-डिगामा एक्सप्रेस ट्रेन की पटरी से उतरी तो दूसरी मालगाड़ी उड़ीसा में. अमेठी में एक लोकल ट्रेन बुलेरो से टकरा गई तो उत्तर प्रदेश में ही जम्मू-पटना अर्चना एक्सप्रेस का इंजन ट्रेन से अलग हो गया.

अब देखिए... ये तो गलत है न. 12 घंटे में 7 लोग सिर्फ दुर्घटनाओं में मारे गए. हमें लगा था कि सुरेश प्रभु के जाने के बाद पियूष गोयल के आने के बाद अब थोड़ा रेल दुर्घटनाओं पर असर पड़ेगा और कम से कम रेलवे के लिए तो अब अच्छे दिन आ ही गए हैं. पर अब देखिए फिर वही हुआ....

ओपन लेटर, भारतीय रेलवे, नरेंद्र मोदी, सुरेश प्रभू, पीयूष गोयल

अब तो आलम ये हो गया है मोदी जी कि शताब्दी हो या पैसेंजर ट्रेन हर बार गाड़ी में चढ़ने से पहले 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करना पड़ता है. अभी तो ये खबर भी आई थी कि एक ट्रेन 150 किलोमीटर से ज्यादा किसी गलत ट्रैक पर चली गई. अब खुद ही बताइए ट्रेन पर चढ़ने के बाद अब से ये प्रार्थना भी करनी होगी कि जनाब गाड़ी सही जगह पहुंचाए. वर्ना 'जाना था जापान पहुंच गए चीन' जैसी हालत हो जाएगी. इतना ही नहीं, अब तो इस बारे में भी डर लगने लगा है कि कहीं किसी पुल पर चढ़ें और वो टूट न जाए या फिर उसपर भगदड़ न मच जाए. अब मुंबई एल्फिंस्टन स्टेशन और अलाहबाद स्टेशन जैसी भगदड़ फिर मच गई तो हमारा क्या होगा.

मोदी जी आप तो दुनिया भर घूम चुके हैं. इतने देशों का दौरा करते हैं कम से कम अपने साथ रेल मंत्री को भी ले जाया करें थोड़ा वहां की रेल में सफर करें तो शायद रेल मंत्री जी अच्छी तरह से रणनीति बनाया करें. शायद कोई नई तरकीब उन्हें सूझ जाए और रेल दुर्घटनाओं पर लगाम कस दी जाए. मतलब कुछ ऐसा कर दिया जाए कि ऑनलाइन टिकट करवाने वाले बीमा की तरह यात्रियों की सुरक्षा भी सुनिश्चित हो जाए. 2016-17 में कुल 104 एक्सिडेंट हुए और 193 लोगों ने इसमें अपनी जान गंवाई.. अब खुद ही सोचिए हमारा डर वाजिब है या नहीं?

ओपन लेटर, भारतीय रेलवे, नरेंद्र मोदी, सुरेश प्रभू, पीयूष गोयल

मोदी जी, आप जापान गए वहां की बुलेट ट्रेन लेकर आने का सपना भी दिखा दिया. सब तो बहुत अच्छा, लेकिन अपने जापानी दोस्तों से जरा ये भी कहिए कि वो अपनी उस तकनीक को भी साथ भेजें जिसके चलते पिछले 50 सालों में एक भी इंसान की जान रेल के कारण जापान में नहीं गई है. अब मोल-भाव अगर करें तो थोड़ा ठीक-ठीक लगा लीजिएगा.. लेकिन भारतीयों की जान के बदले थोड़ी ज्यादा कीमत भी देनी पड़े तो आखिर क्या कम है?

मुझे इस बात का पूरा विश्वास है कि बुलेट ट्रेन आने पर ये दुर्घटनाएं कम हो जाएंगी. रेलवे ट्रैक भी नए बिछेंगे और जापान की ही तरह ट्रेनें समय पर भी चलेंगी, लेकिन मोदी जी आम मजदूर शायद बुलेट ट्रेन में नहीं बैठ पाएगा. इसलिए बुलेट ट्रेन से पहले उस तकनीक को ही भारत ले आइए जिसके चलते जापान में एक्सिडेंट और पटरी से उतरने की घटनाएं कम होती हैं. कृपया इतनी बात मान लीजिए ताकि आगे से ऐसी खबरें न सामने आएं और न ही हम रेल में चढ़ने से पहले घबराएं.

एक रेल यात्री..

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