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Updated: 03 फरवरी, 2023 06:38 PM
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इस बार बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सिगरेट पर लगने वाले आकस्मिक शुल्क को 16 फीसदी बढ़ा दिया लेकिन पीने वालों का जोश इस कदर हाई है कि किसी ने कहा गोल्ड फ्लैक का पैकेट ऑर्नामेंटल भी हो गया तो हम खूब पिएंगे. सोशल स्टेटस सिंबल जो कहलाने लगेगा. ज्यादा दिन नहीं हुए पिछले साल जुलाई माह में स्मोकिंग यानी सिगरेट को लेकर दाखिल की गई जनहित याचिका को जनहित में है ही नहीं बताकर ख़ारिज कर दिया गया था.

शीर्ष न्यायालय की बेंच के माननीय न्यायाधीश द्वय प्रभावित ही नहीं हुए और उन्हें इसे दाखिल करने वाले विद्वान वकीलों का पब्लिक स्टंट लगा. पता नहीं क्यों माननीय जजों को वकील द्वय 'आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास' सरीखे लगे. और दोनों ही वकीलों को फटकार लगी सो अलग! अच्छी बात हुई या कहें उन पर महती कृपा हुई कि हल्का फुल्का जुर्माना भी नहीं लगा. पता नहीं क्यों कोर्ट ने दाखिल पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन को पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन करार दिया ?

खैर. जो हुआ सो हुआ. कुल मिलाकर खाने पीने की स्वतंत्रता के तहत राइट टू स्मोकिंग राइट टू हेल्थ पर तरजीह पा गई, याचिका में बताये गए लंबे चौड़े तथ्य धराशायी हो गए. विडंबना ही है कि जिन बातों को हमारे देश में पब्लिसिटी स्टंट बता दिया गया था, उन्हीं बातों को दुनिया के देश लागू कर रहे थे. मसलन कनाडा शायद सिगरेट पर वार्निंग लिखने वाला दुनिया का पहला देश बनने जा रहा था. उन युवाओं को, जो एक बार में एक सिगरेट लेते हैं और पैकेट पर लिखी चेतावनी नहीं देख पाते, संदेश देने का एक मकसद है 'हर कश में जहर है' सरीखी किसी भावी कविता की हेडलाइन में.

Cigarette, Smoking, Budget, Inflation, Public, Supreme Court, Judge, PIL, Common Manबजट में सिगरेट की कीमतों का बढ़ना भर था स्मोकिंग करने वालों को बड़ा झटका लगा है

फिर हमारे देश में तो खुली सिगरेट ही ज्यादा बिकती है, पैकेट अपेक्षाकृत कम लोग ही खरीदते हैं. निःसंदेह सिगरेट जैसे प्रोडक्ट लोगों के हेल्थ के लिए खतरा है. याचिका में बातें थी स्कूल-कॉलेज के आस-पास खुले में सिगरेट बिक्री को बैन करने, अस्पतालों और धार्मिक स्थलों के पास सिगरेट की बिक्री बंद करने और स्मोकिंग पर कंट्रोल के लिए केंद्र को योजना बनाने के निर्देश देने की. बात स्मोकिंग एरिया में धुएं के फिल्ट्रेशन के लिए गाइडलाइन बनाने के निर्देश दिए जाने की भी थी.

याचिका तवज्जो दिला रही थी वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन की इंडिया को लेकर पब्लिश की गयी फैक्ट शीट का भी जिसके अनुसार तंबाकू सेवन की वजह से युवा कार्डियोवैस्कुलर (दिल से जुड़ी) बीमारियों से पीड़ित हो रहे हैं. इनमें सिगरेट का योगदान सबसे ज्यादा है, जो भारत में ९० लाख से अधिक लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार है. याचिका में कई अन्य चौंकाने वाले तथ्य भी थे, मसलन वर्तमान समय में पिछले दो दशकों से धूम्रपान करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है. ये एक महामारी की तरह फैलती जा रही है. अगर 16 से 64 साल के लोगों के धूम्रपान की बात की जाए तो भारत अब दूसरे स्थान पर है.

याचिका जर्नल ऑफ निकोटीन एंड टोबैको रिसर्च की भी बात करती है जिसके मुताबिक सेकेंड हैंड स्मोक के एक्सपोज़र के कारण स्वास्थ्य सेवाओं में सालाना 567 अरब खर्च होता है जो कि ऐनुअल हेल्थ केयर का 8 फीसदी है. वहीं तंबाकू के उपयोग में सालाना 1773 अरब रुपये खर्च होते हैं. स्मोकिंग न केवल फेफड़ों को खराब कर रही है बल्कि इसका असर आंखों पर भी पड़ रहा है.

और उपरोक्त सारी बातें महज पब्लिसिटी स्टंट के लिए की गयी है - विश्वास नहीं होता कि ऐसा सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था. माननीय न्यायालय वकील द्वय को पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट के पास जाने की सलाह देते हुए उन्हें याचिका वापस लेने के लिए कह सकता था और वह एक आदर्श स्थिति होती. कम से कम ऐसा तो नहीं लगता ना कि सर्वोच्च न्यायालय ने महत्वपूर्ण तथ्यों की अनदेखी कर दी.

जबकि न्यूज़ीलैण्ड की सरकार ने स्मोकिंग ख़त्म करने के अन्य प्रयासों के फलीभूत ना होने का जिक्र करते हुए तंबाकू उद्योग पर दुनिया की सबसे कठिन कार्यवाही में से एक में युवाओं को अपने जीवनकाल में सिगरेट खरीदने पर प्रतिबंध लगाने की योजना को लागू भी कर दिया है, जिसके तहत वहां 2009 या उसके बाद पैदा हुए लोग सिगरेट नहीं पी पाएंगे. इस कानून के मुताबिक़ इस साल 15 वर्ष तक के बच्चे सिगरेट नहीं खरीद पाएंगे, 2024 में 16 वर्ष तक के, 2025 में 17 वर्ष तक के और इसी क्रम में बढ़ते हुए जब 2050 आएगा मिनिमम लीगल ऐज 42 होगी. कानून तंबाकू के खुदरा विक्रेताओं की संख्या पर भी अंकुश लगाएगा और सभी उत्पादों में निकोटीन के स्तर में कटौती करेगा.

मात्र 50 -55 लाख की जनसंख्या वाले देश में इस कानून के लागू होने और साथ ही सफल होने की कामना करते हुए उम्मीद की जा सकती है कि दुनिया के अन्य देश इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में स्वीकारेंगे. ऑन ए लाइटर नोट, आजकल जज फिल्मों से, माइथोलॉजी से प्रभावित होते हैं और तदनुसार फैसले भी सुनाते है मसलन बम्बई हाईकोर्ट के जज ने अजय देवगन स्टार्रर 'रनवे 34' का हवाला देते हुए कहा था कि विमानन सुरक्षा एयर ट्रैफिक कंट्रोल(ATC) पर निर्भर करती है.

'नो स्मोकिंग' सरीखी ना नजरअंदाज की जा सकने वाली वार्निंग के आलोक में अदालत से अपेक्षा थी कि वह कम से कम कनाडा और न्यूज़ीलैण्ड से प्रभावित होती। क्यों ना हम एक #WriteOnCigerettePoisionInEveryPuff मुहिम चलाएं और जान चेतना जागृत करने की दिशा में एक कदम तो उठाए हीं और सुनिश्चित करें कि एक सिगरेट खरीदने वाले को भी वैधानिक चेतावनी मिले. दाम बढ़ाकर तो देश भले ही राजस्व बढ़ा लें, स्मोकर्स कौन से रुकने वाले हैं, अपना घरेलू बजट ही बिगाड़ेंगे!

लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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