New

होम -> समाज

 |  एक अलग नज़रिया  |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 16 जून, 2021 08:43 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
  • Total Shares

आज के जमाने में भी कुछ काम ऐसे हैं जिनके बारे में लोगों की राय है कि ये सिर्फ पुरूष ही कर सकते हैं. अगर कोई महिला उस काम काम को करती है तो लोगों को उसपर यकीन नहीं होता. उन्हें लगता है कि एक औरत इस काम को अच्छे से कर ही नहीं सकती. हमारे दिमाग में तो बचपन से यही डाला जाता है कि मैकेनिकल इंजीनियरिंग लड़के ज्यादा करते हैं और आईटी सेक्टर में लड़कियां ज्यादा होती हैं. यानी बटवारा यहीं से कर दिया जाता है.

ऑटो गैरेज में आपने कितनी महिलाओं को काम करते देखते हैं. गैरेज में कभी कोई लड़की काम करते दिख जाए तो गनीमत है. अगर कोई महिला किसी बड़ी कंपनी में सीईओ है तो भी लोग यही बात करते हैं कि यहां तक पहुंचने के लिए उसने शॉर्टकट अपनाया होगा. लोगों को उसकी काबिलियत, डिग्री और स्किल नहीं दिखती. इस वजह से उस महिला को खुद को प्रूफ करने में ज्यादा मेहनत लगती है. एक औरत को अपनी काबिलियत साबित करने के लिए कई परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है.

People think women can not work like men as mechanical engineering and driving Women menसमाज को महिलाओं की काबिलियत पर शक क्यों?

दरअसल, समाज की धारणा सालों से ऐसी ही है. जो औरत के मर्दों वाले कामों पर सवाल उठाती है, क्योंकि ऐसा मान लिया गया है कि यह काम तो पुरूष ही कर सकते हैं. अगर आप ये कहते हैं कि कोई महिला भारी सामान नहीं उठा सकती तो ठीक है, हो सकता है कि 50 किलो के वजन को जहां 3 महिलाएं ही उठा पाएं वहां उसी सामान को 9 पुरूष आराम से उठाने में सक्षम हों. वैसे भी हम यहां शारीरिक ताकत की बात नहीं कर रहे हैं लेकिन जहां स्किल की बात होती है, वहां भी महिलाओं को पीछे क्यों माना जाता है.

जैसे- मोटरसाइकिल चलाने की बात, अब इसमें कौन सी पहलवान की ताकत लगती है. इसमें तो स्किल की जरूरत होती है. तो सोचिए डिलीवरी ब्वाय क्यों, गर्ल क्यों नहीं. यह शब्द सुनकर ऐसा लगता है जैसे यह नौकरी सिर्फ लड़कों के लिए है, लड़कियों के लिए नहीं. डिलीवरी गर्ल तो कोई बोलता भी नहीं.

आज भी महिलाओं को ड्राइविंग की नौकरी आसानी से नहीं मिलती. पुरुष तो छोड़िए खुद महिलाएं ही बोल देती हैं कि लड़की गाड़ी चला रही है तब तो हम सेफ नहीं हैं. महिलाओं को खुद को कम आंकने की आदत सी हो गई है. इनका यही मानना होता है कि एक औरत कैसे मर्दों वाले जॉब कर सकती है. यानी उस जॉब को ही मर्दों के नाम कर दी गई है. आपने कितने फॉरेस्ट ऑफिसर के रूप में एक महिला को देखा है. यहां महिला पुलिस ऑफिसर को तो कोई सीरियस लेता ही नहीं है.

बड़ी बातें तो छोड़ दीजिए, जब घर के छोटे-मोटे काम होते हैं जैसे अगर घर में बिजली का फ्यूज उड़ गया तो उसे घर का लड़का ही ठीक करेगा. लड़की को ना कोई सीखाता है ना कोई ठीक करने के लिए बोलता है, क्योंकि ऐसा मान लिया जाता है कि यह काम लड़कियों का है ही नहीं. इसके अलावा कोई फॉर्म भी भरना होता है तो लड़कियों को बोल दिया जाता है कि तुम रहने दो. प्लंबर का काम भी लड़के करते हैं लड़कियां नहीं.

इस जमाने में भी महिलाओं को खाफी जद्दोजहद करनी पड़ती है क्योंकि लोगों को विश्वास ही नहीं होता कि महिलाएं भी इन कामों को अच्छी तरह से कर सकती हैं. वहीं बिजनेस वुमन से अक्सर यह कॉमन सवाल पूछा जाता है कि आप घर और बिजनेस मैनेज कैसे करती हैं. लोगों को लगता है कि अच्छा पति सपोर्ट करने के लिए होगी ही. लोगों की नजरों में महिलाएं अकेले कारोबार नहीं संभाल सकतीं.

काम के अलावा, लोगों को महिलाओं का सोलो ट्रैवल सिर्फ कहने की बात लगती है. लोग तपाक से बोल पड़ते हैं लड़कियां और सोलो ट्रैवल इंपॉसिबल. जो घर से अकेले बाहर नहीं जा सकतीं वो सोलो ट्रैवल क्या करेंगी, पक्का किसी के साथ गई होगी.

वहीं महिलाएं भले पूरे घर को संभालती हैं लेकिन जब घर चलाने की बात आती है तो लोगों को लगता है, घर चलाना महिलाओं के बस की बात ही नहीं है. समाज के अनुसार, उनकी कमाई से उनका खर्चा निकल जाए वही बहुत है. घर तो पुरुष की कमाई से ही चलता है. इसके अलावा घर की देख-रेख, सामाजिक जिम्मेदारी भी तो पुरुष ही निभाते हैं. महिलाएं कहां घर के लोगों को संभाल पाती हैं. किसी को यह यकीन ही नहीं होता कि हाउस वाइफ अपने पैसों से घर भी चला सकती है.

इसके अलावा लोगों के लिए लड़कियों का क्रिकेट देखना या खेलना आज भी किसी अजूबे से कम नहीं है? दिस इज नॉट पॉसिबल. साइना नेहवाल से लेकर मिताली राज जैसी महिलाएं भले ही स्पोर्ट्स में देश का नाम रोशन कर रही हैं, लेकिन लड़कियों को आज भी स्पोर्ट्स के लिए जीरो ही समझा जाता है.

लोगों को लड़कियां टाइम पास के लिए टेनिस खेलती ही अच्छी लगती हैं, एक क्रिकेटर के रूप में नहीं. ऐसी और भी बहुत सी बातें हैं जिन्हें लेकर हमारे समाज में गलत धारणा बनी हुई हैं लेकिन अब ऐसी सोच रखने वाले समाज की धारणा पर वार करने का समय है, अफसोस करने का नहीं.

लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय