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Updated: 09 जून, 2017 05:48 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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आप भी बच्चे रह चुके हैं, स्कूल में स्पोर्ट्स डे भी होता होगा, यकीन से कह सकती हूं कि आपको आज भी याद होगा कि उस वक्त आपने किन-किन खेलों में भाग लिया और कितनी बार ईनाम जीते...

अब जरा यहां के स्कूलों पर नजर डाल लीजिए, शायद आप यकीन न करें लेकिन इस देश के स्कूलों में खेलों के नाम पर बच्चों को बंदूकें और ग्रेनेड थमा दी गईं. नहीं...पाकिस्तान नहीं, हम बात कर रहे हैं नॉर्थ कोरिया की.

north koreaसोपोर्ट्स डे पर बच्चों के हाथों में दिखी बंदूकें

मौका था उत्तर कोरिया में बच्चों के स्पोर्ट्स डे का जो बड़ा ही अनोखा था. चम्मच में नींबू रखकर दौड़ना शायद ओल्ड फैशन हो गया, इसलिए यहां खेलों के नाम पर बच्चे हाथों में एके-47 की मिनिएचर यानी नकली बंदूकें लेकर दौड़ रहे थे.

north korea

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और रास्ते में आने वाली बाधाओं को बंदूकों के साथ ही पार भी कर रहे थे. यही नहीं बच्चे ग्रेनेड फेंकने वाला खेल भी खेल रहे थे. ये असली ग्रेनेड नकली थे. कुल मिलाकर ये रेस बिल्कुल मिलिट्री ड्रिल की तरह थी.  बच्चों ने डांस भी किया तो वो मिलिट्री के गानों पर.

देखिए वीडियो-

टीचर का कहना था 'इस तरह के खेलों से बच्चों में बड़े होकर अपने देश की रक्षा करने की भावना पैदा होगी, साथ ही वो इसके लिए शारीरिक और मानसिक तौर पर तैयार होंगे.' बच्चे जो इन खेलों को खेल रहे थे उनकी भी कहना था कि वो बड़े होकर आर्मी में जाना चाहते हैं और देश की रक्षा में अपने सबसे बड़े नेता किम जोंग उन का साथ देना चाहते हैं.'

यहां एक बात और बता दें, कि नॉर्थ कोरिया के लोग मीडिया से बात करते वक्त सिर्फ वही विचार रखते हैं जो आधिकारिक तौर पर मान्य होते हैं. यानी जैसा उनके अधिकारी कहेंगे ये वही करेंगे और कहेंगे.

असल में बचपन में खेले गए खेल हम जीवनभर नहीं भूलते. स्कूल में खेल खेलने का मकसद सिर्फ रिलैक्स होना और शारीरिक तौर पर मजबूत बनना ही नहीं होता, बल्कि खेलों के पीछे छिपी भावना और सीख भी बच्चों के काम आए, यही हर स्कूल चाहता है.

नॉर्थ कोरिया और उसके तानाशाह किम जोंग उन परमाणु शक्तियां अर्जित कर रहे हैं, देश को सैन्य शक्तियों से संपन्न कर रहे हैं और प्राइमरी के बच्चों को अभी से युद्ध के लिए तैयार कर रहे हैं. खेलने कूदने की उम्र में बच्चों को खेल की नई परिभाषा सिखाई जा रही है. बचपन में भी बंदूक और ग्रेनेड से खेलने वाले बच्चों के मन मस्तिष्क पर इसका प्रभाव कितना आक्रामक होगा इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है. लेकिन यही तो इन्हें चाहिए. आक्रामक और लड़ाका बच्चे, जो आगे चलकर ऐसी ही फौज बने.

भले ही इसे देश के प्रति ईमानदारी और देशभक्ति कहा जा रहा हो, पर जरा सोचिए, क्या भारत के बच्चों को भी देशभक्ति इसी तरह से समझाई जा सकती है? क्या हम हमारे बच्चों के हाथों से क्रिकेट बैट और फुटबॉल छीनकर, बंदूकें और ग्रेनेड थमा सकते हैं? सिर्फ इसलिए कि बड़े होकर वो देश के काम आ सकें...हमारे लिए ये बहस का विषय तो हो सकता है, पर नॉर्थ कोरिया के लिए नहीं.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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