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Updated: 28 नवम्बर, 2021 01:03 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की आबादी (Sex Ratio in India) ज्यादा हो गई है. नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे (NFHS) के अनुसार, देश में अब 1,000 पुरुषों की तुलना में महिलाओं की आबादी 1,020 हो गई है. 90 के दशक में नोबेल प्राइज विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन के एक लेख में महिलाओं की कम आबादी को लेकर 'मिसिंग वूमन' (Missing Women) की तोहमत झेलने वाले देश के लिए ये आंकड़े किसी खुशखबरी से कम नही हैं. वहीं, भारत में प्रजनन दर का 2.0 पर पहुंचना भी बताता है कि महिला सशक्तिकरण के कार्यक्रमों का असर हो रहा है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो आंकड़े बताते है कि समय के साथ भारत में महिलाएं जागरुक हो रही हैं. लेकिन, National Family and Health Survey के ये आंकड़े महिलाओं की जागरुकता पर भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे हैं. क्योंकि, इसी सर्वे के अनुसार, महिलाएं और पुरुष कुछ कारणों से घरेलू हिंसा (Domestic Violence) को सही बता रहे हैं.

Women agree on Domestic Violenceसर्वे में घरेलू हिंसा के बारे में सवाल रखा गया कि पति का पत्नी को पीटना कितना उचित है?

घरेलू हिंसा को जायज क्यों मानती हैं महिलाएं?

नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे में घरेलू हिंसा के बारे में जानकारी के लिए सवाल रखा गया कि पति का पत्नी को पीटना कितना उचित है? जवाब देने के लिए '7 स्थितियां' रखी गईं. इनमें पति को बगैर बताए घर से बाहर जाने, घर या बच्चों को नजरअंदाज करने, पति के साथ बहस करने, पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करने, खाना ठीक तरह से न बनाने, पति को पत्नी के चाल-चलन पर शक होने, ससुरालवालों का आदर न करने जैसे विकल्प थे. सर्वे में 18 राज्यों और जम्मू और कश्मीर में महिलाओं और पुरुषों से इसका जवाब मांगा गया था. ये चौंकाने वाला तथ्य है कि सर्वे में शामिल दो राज्यों में घरेलू हिंसा को सही मानने वालों का आंकड़ा 80 फीसदी से ज्यादा है. तेलंगाना में सबसे ज्यादा 83.8 फीसदी और आंध्र प्रदेश 83.6 फीसदी महिलाओं का मानना है कि घरेलू हिंसा जायज है. आसान शब्दों में कहें तो, घरेलू हिंसा पर महिलाएं खुद ही राजी हैं. जबकि, इसी सर्वे के अनुसार, महिलाओं में शिक्षा का स्तर, घर के निर्णयों में उनके अधिकार, भविष्य की सुरक्षा जैसे मामलों पर उनकी जागरुकता लगातार बढ़ रही है.

नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे के 11 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों के आंकड़ों से साफ है कि घरेलू हिंसा के मामले में तमिलनाडु (38.1 फीसदी) अव्वल नंबर पर है. वहीं, उत्तर प्रदेश (34.8 फीसदी) दूसरे नंबर पर है. इसके बाद झारखंड (31.5 फीसदी), ओडिशा (30.6 फीसदी), पुडुचेरी (30.5 फीसदी) मध्य प्रदेश (28.1 फीसदी), अरुणाचल प्रदेश (24.8 फीसदी), राजस्थान (24.3 फीसदी), दिल्ली (22.6 फीसदी), छत्तीसगढ़ (20.2 फीसदी), हरियाणा (18.2 फीसदी), उत्तराखंड (15.1 फीसदी), पंजाब (11.6 फीसदी) और चंडीगढ़ (9.7 फीसदी) में है. सर्वे के मुताबिक, घरेलू हिंसा को सही मानने के सबसे आम कारणों में ससुरालवालों का अनादर, घर और बच्चों की अनदेखी करना है. महिलाओं और पुरुषों ने घर से बिना बताए जाने, चाल-चलन पर शक होने जैसे कारणों को घरेलू हिंसा के लिए अनुचित माना है. लेकिन, सबसे बड़ा सवाल ये है कि सभ्य समाज में किसी भी तरह की हिंसा का स्थान नहीं है, तो घरेलू हिंसा को महिलाएं सही क्यों मान रही हैं?

सरकारें केवल कानून बनाने तक सीमित

सर्वे के आंकड़े दिखाते हैं कि महिला सशक्तिकरण के प्रयासों से महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर जागरुक हो रही हैं. लेकिन, घरेलू हिंसा पर महिलाओं का मौन समर्थन चौंकने वाला है. आखिर महिलाएं अपनी सोच के इस दायरे को क्यों नहीं तोड़ पा रही हैं कि घरेलू हिंसा हर प्रकार से गलत है. कर्नाटक में 76.9 फीसदी, मणिपुर में 65.9 फीसदी और केरल में 52.4 फीसदी लोग घरेलू हिंसा से सहमत नजर आते हैं. महिला सशक्तिकरण को लेकर चलाए जा रहे अभियानों पर ये आंकड़े एक दाग हैं. महिलाओं के लिए सरकारें केवल कानून बनाने तक ही सीमित नजर आती है. उनके कड़ाई से पालन को लेकर गंभीरता दिखती ही नहीं है. उसमें भी वैवाहिक बलात्कार यानी मैरिटल रेप के मामलों पर सरकारें और माननीय भी चुप्पी साध लेते हैं. वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग करने वाले बिल पर देश की संसद में ही सहमति नहीं बन पाती है. एक संसदीय स्थायी समिति कहती है कि यदि वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाया गया, तो परिवार व्यवस्था तनाव में आ जाएगी और इससे व्यावहारिक कठिनाइयां पैदा हो सकती हैं.

अगर हमें महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा को खत्म करना है, तो हमें न केवल सरकारों के स्तर पर बल्कि, समाज के सबसे छोटे स्तर पर भी लोगों के बीच जागरुकता अभियानों को पहुंचाना होगा. महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनके आर्थिक सशक्तीकरण पर ध्यान देना होगा. ये प्रयास केवल शहरों तक ही सीमित नहीं होने चाहिए. घरेलू हिंसा के खिलाफ महिलाओं और पुरुषों में व्यापक समझ विकसित करने के लिए इस देश के सुदूर कोने में बसे गांवों की महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाना जरूरी है. तभी महिलाओं की सोच में ये परिवर्तन आएगा कि जिस घरेलू हिंसा को वो जायज मान रही हैं, वो किसी भी मायने में जरूरी नही है. महिलाओं के आत्मनिर्भर होने से उनके आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी होगी. और, वो घरेलू हिंसा पर खुलकर अपनी बात रख पाएंगी.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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