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Updated: 04 मई, 2019 03:51 PM
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तबाही के मंजर कितने खौफनाक होते हैं हमने हॉलीवुड फिल्मों में खूब देखे हैं, उन्हें देखकर हम हिल गए...लेकिन मन के एक कोने में हमेशा ये बात होती है कि ये सब फिल्मी है. पृथ्वी पर कितना ही बड़ा खतरा क्यों न आ जाए लेकिन हमें पता होता है कि एवेंजर्स कुछ भी करके पृथ्वी को तबाही से बचा लेंगे. और इसीलिए हम ब्रह्मांड को लेकर कभी सीरियस नहीं हुए.

लेकिन ब्रह्मांड में होने वाली गतिविधियों पर गंभीरता से काम करने वाली संस्था नासा ने जो कुछ कहा है वो हमें काल्पनिक दुनिया से जगाने के लिए काफी है. नासा के एडमिनिस्ट्रेटर जिम ब्रिडेनस्टाइन ने चेतावनी दी है कि meteor या उल्का का पृथ्वी पर गिरने का खतरा इतना बड़ा है जितना हम सोच भी नहीं सकते.

जिम का मानना है कि एक एस्टिरॉयड की पृथ्वी से टकराने की संभावना सिर्फ साइंस फिक्शन फिल्मों के लिए नहीं है. जिम ब्रिडेनस्टाइन ने कहा कि- "हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि लोग ये समझें कि यह हॉलीवुड फिल्मों के बारे में नहीं है. यह केवल उस ग्रह की रक्षा करने के बारे में है जिसे हम जानते हैं और वो ग्रह पृथ्वी है.'

aestroidउल्का का पृथ्वी पर गिरने का खतरा इतना बड़ा है जितना हम सोच भी नहीं सकते

इन घटनाओं के लिए बढ़ती गंभीरता और इनकी क्षमता के सबूत के तौर पर जिम ने चेल्याबिंस्क की घटना की तरफ इशारा किया. जो फरवरी 2013 में मध्य रूस के दक्षिणी यूराल पर्वत श्रृंखला में घटी थी. 20 मीटर व्यास (65.6 फिट) के एक उल्का पिंड ने 40 हजार मील प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया था. ये उल्का पिंड जोरदार धमाके के साथ आया और एक बड़ा विस्फोट हुआ जिससे खिड़कियां टूट गईं और इमारतें नष्ट हुईं.

उल्कापिंड यानी बड़े एस्टेरॉयड से टूटी चट्टान के छोटे-छोटे टुकड़े, जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं. वो चेल्याबिंस्क क्षेत्र के लोगों पर गिरे थे. वो एक आग के गोले की तरह था जो आसमान से टकराया था. इसके विस्फोट की धमक से 1,600 से भी ज्यादा लोग घायल हुए थे. अनुमान है कि इस विस्फोट हिरोशिमा परमाणु बम से 30 गुना ज्यादा ऊर्जा थी. ये घटना 1908 के तुंगुस्का घटना के बाद इस सदी की सबसे बड़ी उल्का वृष्टि थी.

अनुमान है कि इस तरह की घटनाएं हर 60 साल में एक बार होती हैं. और पिछले 100 वर्षों में ऐसा तीन बार हुआ है. और इसका मतलब ये हुआ कि चेल्याबिंस्क की घटना जैसी एक और घटना हम अपने जीवनकाल में एक बार जरूर देख सकते हैं. जिस दिन चेल्याबिंस्क की घटना हुई, उसी दिन एक दूसरा एस्टेरॉयड पृथ्वी से करीब 17 हजार मील दूर तक आया और टकराने से बाल-बाल बचा था.

ब्राइडेनस्टाइन का कहना था कि- "काश मैं आपको बता पाता कि ये घटनाएं असाधारण रूप से अनूठी हैं. लेकिन वो हैं नहीं.' जिम ब्रिडेनस्टाइन ने कहा कि planetary defense या ग्रहों की सुरक्षा भी नासा के बाकी उद्देश्यों जैसे कि चंद्रमा पर मनुष्यों की लैंडिंग की तरह ही महत्वपूर्ण है.

इस रक्षा सम्मेलन में एक्सपर्ट्स इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि यदि इन बेहद खतरनाक एस्टिरॉयड और धूमकेतुओं की पृथ्वी से टकराने की संभावना हो तो दुनिया को किस तरह बचाया जाए. हां मार्वल की फिल्मों में तब एवेंजर्स को बुलाया जाता जो अपनी अनोखी शक्तियों से इन शक्तिशाली एस्टेरॉयड्स का रुख मोड़ देते और पृश्वी को बचा लेते. लेकिन अंतरिक्ष में होने वाली ये घटनाएं फिल्मी नहीं हकीकत हैं जिनका होना तय है. और जब ये होती हैं तो कोई कुछ नहीं कर पाता.

क्या उल्का पिंडों को रोक सकती है नासा?

हर किसी में मन में यही सवाल होगा कि क्या उल्का पिंड को रोका जा सकता है. तो जवाब है नहीं. अगर ये संभव होता तो चेल्याबिंस्क की घटना न घटी होती. लेकिन उसे भी कोई नहीं रोक सका था. इतनी तेज गति से आते हुए उल्का पिंड को भला रोका भी कैसे जा सकता है. उस वक्त तो सिर्फ ईश्वर से प्रार्थना ही की जा सकती है कि हम उसकी चपेट में न आएं बस.

नासा भी इनसे बचने के लिए सिर्फ तरीके खोज सकती है. वो पृथ्वी के करीब आने वाले किसी भी ऑब्जेक्ट की गति और दिशा जरूर माप सकती है. वो ये पता कर सकती है कि उल्का पिंड कितना बड़ा है. कितनी गति से आ रहा है और कब तक टकरा सकता है. वो ये भी पता लगा सकते हैं कि वो ऑब्जेक्ट कहां गिर सकता है. गिरेगा तो कितनी तबाही होगी. वैज्ञानिक तो सिर्फ यही कर सकते हैं. लेकिन ये जानकारी भी मिल जाए तो फिर उस जगह बचाव की तैयारियां की जा सकती हैं. वहां से लोगों को हटाया जा सकता है जिससे उनकी जान बचाई जा सके.

नासा वर्तमान में एक रेफ्रिजरेटर के आकार के अंतरिक्ष यान पर काम कर रहा है जो एस्टिरॉयड को पृथ्वी से टकराने से रोकने में सक्षम है. 2024 में इसपर परीक्षण किया जाएगा. यह ग्रहों की रक्षा के लिए एस्टिरॉयड विक्षेपण तकनीक प्रदर्शित करने वाला पहला मिशन है. इसका नाम है Double Asteroid Redirection Test (DART). जो kinetic impactor technique का इस्तेमाल करके एस्टेरॉयड पर हमला कर उसकी ऑर्बिट को बदल सकता है. इससे उसकी गति धीमी हो सकती है और दिशा भी बदल सकती है.

यानी ये वैज्ञानिक उस प्रोजेक्ट पर काम करने जा रहे हैं जो हम असल में हॉलीवुड की फिल्मों में सुपर हीरो को करते देखते हैं. तो देखा जाए तो एवेंजर्स थौर, आइरन मैन, हल्क जैसे सुपरहीरो नहीं बल्कि ये वैज्ञानिक हैं. जिनकी शक्तियां हमें इन प्रोजेक्ट्स के जरिए ही दिखाई देती हैं.

याद रखिए कि मार्वल फिल्मों के किरदार काल्पनिक हो सकते हैं लेकिन अंतरिक्ष में होने वाली घटनाएं और उससे पृथ्वी पर मंडराता खतरा काल्पनिक नहीं है. ये वो है जिसे कोई सुपरहीरो नहीं रोक नहीं सकता. इसलिए Avengers आखिरी सांस तक लड़ेंगे तो, लेकिन सिर्फ मार्वल की फिल्मों में, हकीकत में तो पृथ्वी के वैज्ञानिक ही हमारे Avengers हैं.

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