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Updated: 14 जून, 2019 09:40 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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और आखिरकार Nana Patekar भी Metoo के इल्जाम से साफ बचकर निकल गए. सच कहूं को ये खबर पढ़कर कोई आश्चर्य नहीं हुआ और न ही Tanushree Dutta को हुआ होगा. क्योंकि यही तो होता है. कानून सबूतों के आधार पर दोषी ठहराता है और सजा देता है. सबूत न होने पर अपराधी छूट भी जाता है. हां दुख जरूरी होता है कि एक महिला के साथ गलत करने वाला शख्स सबूतों की कमी की वजह से बेगुनाह साबित हो जाता है.

तनुश्री दत्ता केस में पुलिस ने नाना पाटेकर को क्लीन चिट दे दी. नाना पर यौन शोषण का आरोप था. पुलिस का कहना है कि नाना पाटेकर के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले हैं. हो न हो कानून और पुलिस प्रक्रीया ने तनुश्री का दिल भी दुखाया. वो सालों से अपने लिए खड़ी थीं लेकिन इस क्लीन चिट ने तनुश्री जैसी तमाम महिलाओं के मन से पुलिस और कानून के प्रति भरोसा थोड़ा तो हिला दिया है.

तनुश्री का कहना है कि- ''अगर आपको शोषण करने वाले लोगों को सजा देनी है तो उनका नाम सोशल मीडिया पर उछालना अच्छा है. क्योंकि FIR दर्ज करवाने से कुछ नहीं होता. कानून पर भरोसा करना बेकार है, उससे किसी का फायदा नहीं होता. अब ये बात हर उस इंसान के लिए सबूत होनी चाहिए, जो एक महिला से पूछता है कि उसने पुलिस में शिकायत क्यों नहीं दर्ज करवाई. यही उन लोगों का मुंह बंद करवाने के लिए काफी है."

tanushree dutta metoo caseतनुश्री दत्ता मामले के बाद ही मीटू आंदोलन ने जोर पकड़ा था

तनुश्री दत्ता का मामला वो मामला है जिसकी नींव पर ही भारत में मीटू मूवमेंट की शुरुआत हुई थी. तनुश्री ने आवाज उठाई और इसके बाद हर तरफ से मीटू की आवाजें सुनाई देने लगीं. कई चेहरे बेनकाब हुए. बहुतों का असली रंग दिखाई दिया. लेकिन इस पूरे आंदोलन की खास बात यही रही कि इसके आरोपी तो सामने आए, लेकिन सजा किसी को नहीं हुई. कुछ ही मामलों में देखा गया कि आरोपियों के काम पर असर पड़ा हो, लेकिन ज्यादातर मामलों में आरोपियों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा. वो धड़ल्ले से काम करते रहे, जबकि उनके खिलाफ आरोप लगाने वाली महिलाएं चीखती रहीं.

सोना मोहापात्रा कैलाश खेर के खिलाफ चिल्लाती रहीं लेकिन कैलाश को शो मिलते रहे. हां ये जरूर हुआ कि सोना मोहापात्रा को शो नहीं मिले. अनु मलिक को कुछ समय के लिए इंडियन आइडल से दूर रखा गया लेकिन मीटू आंदोलन के ठंडा पड़ने के बाद अब उन्हें दोबारा शो दिया जा रहा है.

विंता नंदा का केस भी याद ही होगा. उन्होंने टीवी के सबसे संस्कारी व्यक्ति आलोक नाथ पर रेप का आरोप लगाया था. लेकिन उन्हें भी निराशा ही हाथ लगी क्योंकि मामला करीब 20 साल पुराना था, इसलिए सबूत देने में वो असफल रहीं. उनके केस में तो रेप के 20 साल बाद मेडिकल भी करवाया गया था, अब ये तो तभी सिद्ध हो गया था कि ये साबित नहीं हो सकता. और इसीलिए आलोक नाथ को मुंबई कोर्ट से 5 लाख की सिक्योरिटी पर जमानत मिल गई. सेशन कोर्ट ने इस मामले में कहा था कि 'शिकायतकर्ता को घटना के बारे में सब कुछ याद है कि क्या हुआ, लेकिन उसे ये नहीं याद कि ये कब हुआ, तारीख और महीना कौन सा था. ऐसे में शिकायत को एकदम सच्चा नहीं माना जा सकता.'

और इसी वजह से तनुश्री व विंता नंदा जैसी हर महिला ने खुद के लिए झूठी शब्द भी बहुत सुना. तनुश्री के संघर्ष सोशल मीडिया पर वीडियो के रूप में बिखरे पड़े हैं. जिन्हें देखकर ये जरा भी कहा नहीं जा सकता कि वो झूठी हैं. बस सबूत नहीं जुटा सकीं. तनुश्री भी कहती हैं कि- ''ये हमारे देश की पुरानी कहानी है...कोई भी औरत जो शोषण के बारे में बात करती है झूठी कहलाती है." बात एकदम सही है. महिलाओं की बात पर भरोसा तभी होता है जब वो उसे साबित करे. मेडिकल रिपोर्ट में रेप या यौन शोषण साफ साफ साबित हो. यो उस यौन शोषण की तस्वीर या वीडियो सबूत के तौर पर दिखाया जा सकें. और यौन शोषण के मामलों में ये सबूत जुटाने काफी असंभव होते हैं. जाहिर सी बात है कहीं भी अगर किसी महिला के साथ कोई जबरदस्ती करे तो उस वक्त वो खुद को बचाने के प्रयास करेगी न कि वीडियो बनाने के.

metooयौन शोषण के खिलाफ लड़ाई चुप रहकर नहींलड़ी जा सकती

भारत में #Metoo मूवमेंट एक असफल मूवमेंट ही बनकर रह गया क्योंकि इसमें सामने आने वाले ज्यादातर मामले सालों पुराने थे. कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए सिर्फ आरोप या FIR जरूरी नहीं होती, सबूत सबसे जरूरी होते हैं. हां मामले की गंभीरता और व्यक्ति के ओहदे को देखते हुए सजा के तौर पर उसे कुछ समय के लिए पद से बेदखल तो किया जा सकता है. जैसे मिनिस्टर एमजे अक्बर को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. लेकिन आज तक आरोप साबित नहीं हो सके. हाल ही में क्वीन फिल्म के प्रोड्यूसर विकास बहल को भी यौन शोषण के आरोप में क्लीन चिट मिल गई. कंगना रानौत ने उनपर 2014 में शूटिंग के दौरान शोषण करने का आरोप लगाया था.

कॉमेडियन उत्सव चक्रवर्ती, चेतन भगत, रजत कपूर, कैलाश खेर, अन्नू मलिक, डायरेक्टर साजिद खान और ऐसे न जाने कितने ही लोग हैं जिनपर पुराने मामलों के तहत ही आरोप लगाए गए हैं. इन्हें थोड़े समय के लिए काम न देकर नौतिकता के आधार पर ही सजा दी गई, लेकिन कानून इनका कुछ बिगाड़ नहीं सका. यूं समझिए कि इनका अगर कुछ बिगड़ा है तो वो है इनकी छवि. यौन शोषण के आरोप में जिन लोगों के भी नाम सामने आए, अदालत भले ही न कर पाई हो लेकिन महिलाओं ने सोशल मीडिया के जरिए उनका कैरेक्टर सर्टिफिकेट सबके सामने जरूर रख दिया. वही इनके लिए सजा थी. बदनामी के कुछ घूंट पर तो इन लोगों का भी हक है.

लेकिन एक बात और जो मीटू कैंपेन और इसपर आने वाले फैसलों से महिलाओं को सीखनी चाहिए. वो ये कि कानून सबूत मांगता है और सबूत नहीं मिलने पर वो कितना भी जोर जोर से कह लें कि उनके साथ शोषोण हुआ है, लेकिन अदालत नहीं मानेगी, इसलिए महिलाओं को सबसे पहले सबूतों पर ध्यान देना चाहिए. लेकिन सबसे जरूरी बात है चुप्पी तोड़ना. वो लड़के का कुछ बिगाड़ नहीं पाएंगी, या उनकी नौकरी न चली जाए, इस डर से वो इन बातों के नजरअंदाज करती आई हैं, लेकिन ताउम्र उस वाकिए को अपनी स्मृतियों से निकाल नहीं पातीं, जो हमेशा उन्हें झकझोरता रहते हैं. महिलाओं को अब चुप नहीं रहना होगा, बल्कि अपने खिलाफ हुए हर अन्याय के खिलाफ आवाज सही समय पर उठानी होगी. और सही समय वर्तमान ही है. 'कल' जख्म भरने के साथ-साथ मामले की गंभीरता को भी खत्म कर देता है. ये न हुआ तो हर मीटू की हर लड़ाई का हश्र तनुश्री दत्ता- नाना पाटेकर केस जैसा ही होगा.

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पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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