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Updated: 20 फरवरी, 2018 03:53 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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जब गुस्सा हद से आगे बढ़ जाता है तो कोई न कोई अप्रिय घटना होती ही है. इन दिनों अरुणाचल प्रदेश में भी लोगों के गुस्से की आग भड़की हुई है. इस आग की लपटों ने सिस्टम को भी हिला कर रख दिया है. दरअसल, अरुणाचल प्रदेश में रेप और हत्या के दो आरोपियों को सरेआम जिंदा जला दिया गया और फिर उनके शव बीच बाजर फेंक दिए गए. हैरानी की बात तो ये है कि इन दोनों आरोपियों को लोगों की भीड़ ने थाने से खींचकर इस घटना को अंजाम दिया है. सवाल ये है कि लोगों का ये गुस्सा किसके लिए है? उस मासूम बच्ची के साथ की गई वहशियाना हरकत के लिए? या फिर उस सिस्टम के लिए, जो ऐसे अपराधों पर लगाम लगाने में नाकाम साबित हो रहा है और अपराधियों को सख्त सजा भी नहीं दिलवा पा रहा? लोग कानून हाथ में क्यों ले रहे हैं? क्या लोगों को सरकार और न्यायपालिका पर भरोसा नहीं रहा? शायद हां, तभी तो कोर्ट द्वारा दोषी साबित होने से पहले ही भीड़ अपने तरीके से आरोपियों को सजा देने को तैयार हो गई.

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5 साल की बच्ची के साथ किया था रेप

अरुणाचल प्रदेश के आईजी नवीन पायेंग ने बताया कि 12 फरवरी को 5 साल की एक बच्ची के साथ दुष्कर्म कर उसकी हत्या कर दी गई थी. बच्ची का सिर धड़ से अलग कर के चाय के बागान में नग्न अवस्था में फेंक दिया गया था. इसी बागान में वो दोनों आरोपी भी काम करते थे, जो शव मिलने के बाद से ही फरार थे. पुलिस ने एक सर्च ऑपरेशन चलाकर दोनों आरोपियों को असम से गिरफ्तार किया था.

भीड़ ने कानून हाथ में लेकर दी आरोपियों को सजा

दोनों आरोपियों को कोर्ट ने न्यायिक हिरासत में रखकर पूछताछ करने का आदेश दिया था. बताया जा रहा है कि दोनों आरोपियों ने थाने में अपना जुर्म कुबूल भी कर लिया था. जैसे ही लोगों तक आरोपियों की गिरफ्तारी की खबर पहुंची तो करीब एक हजार लोगों ने लोहित जिले के तेजू थाने पहुंचकर दोनों आरोपियों को जेल से खींचकर बाहर निकाल लिया. इसके बाद दोनों को जिंदा जलाकर उनका शव बाजार में फेंक दिया. मृतकों की पहचान संजय सोबोर (30) और जगदीश लोहर (25) के रूप में की गई है. भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता, ऐसे में पुलिस भी इस चिंता में है कि आखिर गिरफ्तार किसे करे और शिकायत किसके खिलाफ की जाए? खैर, इस बीच पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करके केस की छानबीन शुरू कर दी है.

संयुक्त राष्ट्र रेप को कह चुका है 'हार्टब्रेकिंग'

देश में रेप जैसी घटनाओं पर संयुक्त राष्ट्र भी चिंतित है. कुछ समय पहले ही दिल्ली में 8 महीने की एक बच्ची के साथ रेप की घटना सामने आई थी और उससे पहले पाकिस्तान में 7 साल की बच्ची के साथ बलात्कार की घटना से दुनिया को झकझोर कर रख दिया था. इन घटनाओं को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने इन्हें हार्टब्रेकिंग (दिल दहलाने वाला) कह दिया था. संयुक्त राष्ट्र ने कहा था कि वैश्विक संस्था शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के जरिए ऐसी घटनाओं से निपटने की पूरी कोशिश कर रही है. इससे एक बात तो साफ है कि रेप जैसी घटनाओं से निपटने में अभी हमारे देश का सिस्टम नाकाम साबित हो रहा है.

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ये है सरकार की नाकामी का सबूत

सरकार की बातें सिर्फ हवा हवाई हैं. और इसका पुख्ता सबूत है निर्भया फंड. दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को हुए निर्भया रेप के बाद 2013 के बजट में महिला सुरक्षा के लिए निर्भया फंड बनाया गया. तब से लेकर अब तक इस फंड में 3100 करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं. हाल ही में आईएएनएस की आरटीआई से इस बात का खुलासा हुआ है कि इस फंड में से अभी तक सिर्फ 825 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं. यानी 2,711 करोड़ रुपए अभी तक खर्च ही नहीं हुए हैं. रेप जैसी घटनाओं को रोकने के लिए सरकार कितनी प्रतिबद्ध है, ये तो आपको आंकड़ों से समझ आ ही गया होगा. खुद गृह मंत्रालय ने भी यह कहा था कि निर्भया फंड के तहत करीब 2195.97 करोड़ रुपए के 18 प्रोजेक्ट अधर में लटके हैं, लेकिन उनके लिए निर्भया फंड का इस्तेमाल ही नहीं किया गया है. इतना ही नहीं, निर्भया फंड का इस्तेमाल न होने की वजह से ही हर बजट में इस फंड में कटौती होती जा रही है. निर्भया फंड के लिए 1000 करोड़ रुपए से शुरू हुआ आवंटन इस बार के बजट में सिर्फ 500 करोड़ रुपए रह गया है.

हमेशा की तरह की गईं ये औपचारिकताएं

किसी भी थाने या क्षेत्र में कोई घटना होती है तो सबसे पहले पुलिस व्यवस्था पर सवाल उठते हैं. लोगों के सवालों का जवाब देने के लिए पुलिस प्रशासन को कुछ एक्शन भी लेने होते हैं. तेजू शहर के थाने में हुई घटना के बाद भी ऐसे ही सवाल उठे और उनका जवाब देने के लिए पुलिस ने औपचारिकताएं पूरी भी कर लीं. तेजू थाने में तैनात तीन पुलिसकर्मियों को बर्खास्त कर दिया गया है और लोहित जिले के पुलिस अधीक्षक का ट्रांसफर कर दिया गया है. लेकिन सोचने की बात है कि आखिर एक हजार से भी अधिक लोगों को 3 पुलिसवाले कैसे रोक सकते थे? उनके होते हुए भी भीड़ आरोपियों को जेल से निकाल ले गई, इसके लिए क्या वो 3 पुलिसवाले ही जिम्मेदार हैं? क्या इस तरह की घटनाओं के लिए सिस्टम जिम्मेदार नहीं है? ऐसा नहीं है कि पहली बार ऐसी कोई घटना हुई है. इससे पहले भी ऐसा हो चुका है.

2015 में भी हुआ था ऐसा

इससे पहले 2015 में नागालैंड के दीमापुर शहर में भी भीड़ ने रेप के आरोपी को थाने से निकाल कर मार दिया था. भीड़ ने आरोपी को इतना मारा कि उसकी मौत हो गई. इसके बाद शव को शहर के ही एक चौराहे पर लटका दिया गया था. इस घटना में करीब 4000 लोगों की भीड़ ने 35 साल के सयेद फरीद खान को मारा था, जिस पर 20 साल की एक नागा महिला से रेप करने का आरोप था.

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सिस्टम की नाकामी का है ये नतीजा

हजारों लोगों की ये भीड़ सिस्टम की नाकामी का ही नतीजा है. लोगों को पुलिस प्रशासन और सरकार पर इतना भी भरोसा नहीं है कि वह दोषियों को सख्त से सख्त सजा दिलवा सकेंगे. अगर गौर से देखा जाए तो भीड़ द्वारा दो आरोपियों की हत्या करना न्यायपालिका पर भी सवाल खड़े करता है. निर्भया फंड का इस्तेमाल न होना और महिला सुरक्षा के उपाय न किए जाना भी सिस्टम की नाकामी को ही दिखाता है.

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