New

होम -> समाज

 |  एक अलग नज़रिया  |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 29 जुलाई, 2021 07:45 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
  • Total Shares

मीराबाई चानू, इस तस्वीर में जमीन पर बैठकर खाना खाती दिख रही हैं, इसे देखकर कोई भी गरीबी का अंदाजा लगा सकता है. एक पुराना फर्नीचर जिस पर सदियों से इस्तेमाल किया जा रहा गैस चूल्हा रखा गया है. ये बिल्कुल मध्य परिवार के जुगाड़ जैसा दिख रहा है. किस तरह घर की महिलाएं जुगाड़ से चीजों का इंतजाम करती हैं. यकीकन ये फर्नीचर चूल्हा रखने के लिए तो नहीं बना है. घर के आस-पास रखा सामान किसी अमीर परिवार का तो नहीं लग रहा, लेकिन लोगों को इसमें दिखा तो सिर्फ पानी का बोतल...

इस तस्वीर को @RajatSethi86 ने ट्विटर पर शेयर की है. इसमें मीराबाई चानू अपने घर पर हैं और अपने परंपरा के अनुसार जमीन पर बैठकर खाना खाती दिख रही हैं. इस तस्वीर के कैप्शन में लिखा है कि गरीबी कभी आपके सपने को ना अचीव कर पाने का बहाना नहीं होती. भारत की प्यारी मीराबाई चानू सिल्वर जीतने के बाद अपने मणिपुर के घर में.

Mirabai Chanu, Mirabai Chanu home, Mirabai Chanu mother, Mirabai Chanu photo, Mirabai Chanu medal प्यारी मीराबाई चानू सिल्वर जीतने के बाद अपने मणिपुर के घर में

इस तस्वीर के वायरल होने पर कुछ लोगों ने लिखा कि गरीब लोग मिनरल वॉटर नहीं पीते. वहीं कुछ यूजर्स ने लिखा कि यह गरीबी का विज्ञापन है. कुछ यूजर्स ने कहा कि यह उनका कल्चर है, इसे गरीबी मत बनाओ.

खैर, गरीबी का टैलेंट से कुछ लेना-देना नहीं है. किसी इंसान के अंदर प्रतिभा हो तो पूरी दुनियां को झुकाने की ताकत रखता है. अपने मेहनत के बल पर वो नई जिंदगी की इबारत लिखता है. अमीर घर के बच्चे जंगल में लकड़ी चुनने तो नहीं जाते होंगे...फिर लोगों को इस तस्वीर में रखे पानी की बोतल पर ही नजर क्यों गई…

इस तस्वीर की सच्चाई क्या है किसी को पता नहीं है...हो सकता है कि यह बोतल एक बार खरीदी गई हो और उसे बाद में भी पानी भरकर पीने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. आम घरों में तो अक्सर ऐसा लोग करते हैं. ट्रेन में बैठे एक पानी का बोतल 20 रुपए में खरीदा, पिया और खाली बोतल घर लेकर आ गए. उन्हें इतना पता नहीं होता कि इस बोतल से पानी पीने के बाद क्रश करके फेंक देना चाहिए. जिसने हार न मानकर अपनी मेहनत साबित की हो उसे अपनी गरीबी से जब शर्म नहीं तो फिर जबरन उसे अमीर बताने की वजह क्यों हो सकती है…

अगर यह बोतल मिनरल वाटर है तो भी क्या यह अमीरी की पहचान है, क्या स्वच्छ पानी पीने वाले लोग अमीर होते हैं. एक खिलाड़ी क्या ऐसे ही मेडल जीत लेता है वो भी वेटलिफ्टिंग में...क्या उसके माता-पिता उसकी डाइट का ख्याल नहीं रखते होंगे. अगर वो अच्छा खाएंगी नहीं तो इतना वजन ओलंपिक में कैसे उठातीं...क्या एक खिलाड़ी को अपने सेहत का ध्यान रखने के लिए शुद्ध पानी नहीं पीना चाहिए…जिन्हें अपने बेटी को ओलंपिक में भेजना होगा वे भले अपनी चीजों में कटौती कर लेंगे लेकिन अपनी बेटी के खान-पान में तो कटौती नहीं करेंगे.

आपने देखा होगा जब अस्पताल में डॉक्टर मरीज से बोलता है कि आपका प्लेटलेट कम है और आपको कीवी खानी है, नारियल पानी पीना है, अनार खाना है...ऐसे में उसके परिजन कहीं से भी करके उसके लिए वे सब लाते हैं जिससे वो ठीक हो जाए. कोरोना काल में जब नारियल पानी का दाम 80 रुपए पार पहुंच गया था तब भी लोग खरीदने के लिए भटक रहे थे.

हम सभी को पता है कि मीडिल क्लास के लोगों की इतनी हैसियत नहीं होती कि वे रोज 70 रूपए का नीरियल पानी पीएं लेकिन जिंदगी बचाने के लिए इंसान वो सब करता है जो कर सकता है. आज कम कमाने वाला इंसान भी तमाम बीमारियों से बचने के लिए अपने परिवार को अच्छा जीवन देना चाहता है. मीराबाई तो फिर भी अब ओलंपिक में मेडल जीत चुकी हैं. क्या उऩकी जिंदगी नहीं बदलनी चाहिए? 

अजीब लगा जब अपने घर पर जमीन पर खाना खाती मीराबाई चानू को लोगों ने कहा कि वे गरीबी का दिखावा कर रही हैं. ऐसे बोलकर वे मीराबाई के मां की ममता को भी दुखी कर रहे हैं. जब कोई बच्चा कुछ अच्छा करता है तो उसकी सफलता के सफर में कई लोग जुड़े होते हैं. जिसमें सबसे पहला उसका परिवार आता है.

अक्सर हम ऐसी खबरें पढ़ते हैं कि सब्जी बेचने वाला का बेटा, ड्राइवर की बेटी, रिक्शावाले की बेटा अधिकारी बन गया. हम उनके नाम से उन्हें संबोधित क्यों नहीं कर सकते. जैसे सुबह 9 से 5 की नौकरी करना हमारा काम है वैसे ही वह उनकी रोजी-रोटी है, उनका काम है. हम ऐसा बोलकर उन्हें छोटा महससू क्यों करवाते हैं.

क्या हम ऐसा मानते हैं कि झाड़ू लगाने वाले के बच्चे कुछ कर नहीं सकते. वे गरीब जरूर होते हैं लेकिन प्रतिभा अमीर और गरीबी देखकर नहीं आती. ऐसा नहीं है कि अमीर के बच्चे बिना मेहनत के ही ऑफिसर बन जाते हैं. हां दोनों को मिलने वाली सुविधाओं में अंतर जरूर होता है लेकिन लगन एक सी रहती है.

बच्चे तो बच्चे होते हैं और मां की ममता भी एक ही होती है. इसलिए जब कोई जीवन में मेहनत और ईमानदारी के बल पर आगे बढ़ता है तो उसमें अमीरी और गरीबी में तो मत ही बांटिए. किसी को गरीब को अमीर बोलने से क्या उसका संघर्ष कम हो जाएगा...

 
 
 
View this post on Instagram

A post shared by Saikhom Mirabai Chanu (@mirabai_chanu)

मीराबाई चानू जैसी खिलाड़ी के लिए तो बिल्कुल नहीं जिन्होंने टोक्यो ओलंपिक में 49 किलोग्राम कैटेगरी में सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रच दिया. इन्हें सैल्यूट इसलिए क्योंकि 2016 में रियो ओलिंपिक में ये पूरी तरह से टूट चुकीं थीं, लेकिन चानू की जबरदस्त वापसी ने बता दिया कि इस बेटी ने अभी हार नहीं मानी है…

जमीन पर बैठकर भोजन करना हमारी परंपरा है. मीराबाई की इस तस्वीर ने हमें बता दिया है कि इंसान की अगर जड़ें मजबूत हों अगर वह अपने जमीन से जुड़ा हो तो बुरे से बुरे हालात भी उसे हरा नहीं पाते. वरना लकड़ी बीनने वाली लड़की आज देश के लिए मेडल नहीं जीत पाती...उसे अपना विज्ञापन करने की जरूरत नहीं है क्योंकि उसके काम की वजह से पूरी दुनियां उसे पहचानती है. लोग खुद चलकर उसके पास आएंगे कि हमारा विज्ञापन कर दो...

लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय