New

होम -> समाज

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 22 जून, 2021 09:40 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
  • Total Shares

फादर्स डे दिलचस्प दिन है. कह तो ये भी सकते हैं कि, बाजारवाद के बाद ये सोशल मीडिया ही है जिसकी बदौलत ये दिन दिलचस्प बन गया है. वाक़ई बड़ा मजेदार होता है ये देखना कि वो पिता जो साल के 364 दिन औलादों की आंख की किरकिरी होता है. जो हर बात पर उन्हें रोकता, टोकता है इस दिन बरगद, फैंटम, स्पाइडर मैन , सुपर मैन, बैटमैन सब बन जाता है. चाहे फेसबुक हो या फिर ट्विटर और इंस्टाग्राम कहीं का भी रुख कर लीजिए लंबे लंबे पोस्ट दिखेंगे. बड़ी बड़ी बातें होंगी.

फादर्स डे पर फादर की शान में लिखे गए कसीदे भले ही औलादों के लिए फॉर्मेलिटी हों लेकिन देश के, दुनिया के हर फादर को अच्छा तो लगता ही होगा. अपने बारे में अच्छी अच्छी बातें पढ़ते हुए शायद उसे भी यही लगता होगा कि यदि वो न होता तो शायद समाज और परिवार दोनों की रूपरेखा ही नहीं बन पाती. फादर्स डे बीते हुए अभी चंद ही घंटे हुए हैं. हमारी आपकी तरह एक्टर नीना गुप्ता की बेटी मसाबा गुप्ता ने भी इंस्टाग्राम पर पोस्ट लिखी है.

दिलचस्प ये कि इस पोस्ट में मसाबा ने पिता विवियन रिचर्ड्स के लिए कोई बात नहीं लिखी है और इस दिन को विवेक मेहरा को समर्पित किया है. मसाबा के इस अंदाज ने लोगों को आहत कर दिया है. सोशल मीडिया पर यूजर्स का यही कहना है कि जब विवियन उनके पिता हैं तो फिर वो आखिर कैसे विवेक मेहरा को विश कर सकती हैं?

Neena Gupta, Masaba Gupta, Fathers Day, Father, Vivek Mishra, Instagram, Motherविवेक मिश्रा को फादर्स डे वाली मसाबा क्यों भूल गयीं कि वो आज जहां हैं उसकी वजह नीना गुप्ता हैं

मसाबा विवेक मेहरा को हैप्पी फादर्स डे बोलें या विवियन रिचर्ड्स को विश करें ये पूर्णतः उनका निजी फ़ैसला है लेकिन हम इतना जरूर कहेंगे कि न विवेक, न विवियन फादर्स डे शुभकामनों का असली हकदार अगर कोई उनकी ज़िन्दगी में है तो वो सिर्फ और सिर्फ मां नीना गुप्ता हैं. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. अगर मसाबा फादर्स डे पर शुभकामनाएं दे रहीं थीं तो वाक़ई सबसे पहला जिक्र उन्हें अपनी मां नीना गुप्ता का करना चाहिए था. ध्यान रहे महिला चाहे ग्रामीण हों या शहरी. पढ़ी लिखी हो या अनपढ़. सोशलाइट हो या गृहणी एक महिला का नीना गुप्ता होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.

फादर्स डे पर एक मां के रूप में नीना गुप्ता की तारीफ इसलिए भी होनी चाहिए क्यों कि जिस तरह न केवल उन्होंने मसाबा को जन्म दिया बल्कि जिस तरह वो अपने हक़ के लिए जमाने से लड़ीं वो किसी दिलेर महिला के लिए भी आसान नहीं है. भले ही नीना आज विवेक मेहरा के साथ हों या फिर वर्तमान में उनकी नजदीकियां उनसे हुई हों मगर ख़ुद कल्पना कीजिये का वक़्त की जब एक गुमनाम रिश्ते के परिणामस्वरूप नीना की ज़िंदगी में मसाबा आई होंगी.

याद रखिये तब का समय और परिस्थितियां दोनों ही आज जैसी नहीं रही होंगी.तब कितना कुछ सुना होगा नीना है. अवश्य ही तब उन्हें चुभने वाले ताने भी मिले होंगे. ऐसी स्थिति में अगर कोई महिला किसी बच्ची की परवरिश कर ले जाए उसे उस मुकाम पर ले आए जहां आज मसाबा हैं तो उस महिला की तारीफ होनी चाहिए और डंके की चोट पर होनी चाहिये.

विवेक मिश्रा को फादर डे की मुबारकबाद देने वाली मसाबा को इस बात को भी समझना चाहिए था कि यदि वो फादर्स डे पर विवेक की जगह नीना को विश करतीं तो इससे उन तमाम मांओं को बल मिलता जो जमाने, हालात और वक़्त की चुनौतियों का सामना करते हुए, उनसे लड़ते हुए बच्चों को अकेले पाल रहीं हैं. ऐसी महिलाएं सिर्फ मां का रोल नहीं निभातीं बल्कि ये एक ही समय में दो रोल कर रही होती हैं तो यूं भी इनकी ज़िन्दगी बड़ी काम्प्लेक्स होती है.

 
 
 
View this post on Instagram

A post shared by Masaba (@masabagupta)

मसाबा को याद रखना चाहिए था कि यदि फादर्स डे पर वो चंद शब्द नीना के लिए लिख देतीं तो इससे अकेली खुशी सिर्फ नीना को नहीं मिलती बल्कि हर वो मां जो सिंगल मदर का टैग लगाए हुए दुनिया के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है उसे अच्छा लगता. यकीनन मसाबा ने ये सब जान बूझकर नहीं किया होगा. लेकिन अगर वो क्रेडिट दे ही रहीं थीं तो आखिर वो ये कैसे भूली कि इस क्रेडिट में एक बड़ा हिस्सा और किसी का नहीं सिर्फ नीना गुप्ता का है. मसाबा की जिंदगी में नीना ने केवल एक मां के नहीं बल्कि पिता के भी फर्ज निभाए हैं.

हो सकता है उपरोक्त बातों के बाद समाज दो वर्गों में बंट जाए जिसमें एक वर्ग मसाबा का तो दूसरा नीना का समर्थन करे लेकिन जो लोग मसाबा की इस गलती को या ये कहें कि इतनी बेरुखी से मसाबा द्वारा नीना को भूल जाने के लिए मसाबा को इग्नोर कर रहे हैं उन्हें भी इस बात को समझना होगा कि पिता का मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि एक पुरूष संतान के जन्म के लिए अपना वीर्य दे. पिता का मतलब ये भी नहीं की एक पुरुष स्कूल के रजिस्टर में बच्चे के पिता के कॉलम में अपना नाम लिखवा आए.

बच्चे के लालन पालन में उसकी भी जिम्मेदारी उतनी ही है जितनी एक मां की. नीना और मसाबा का केस देखें तो विवियन ने उन्हें पैदा तो किया मगर उनकी अप ब्रिंगिंग और उन्हें अपनाने में नाकाम रहे. इसी तरह बात अगर विवेक मेहरा के अंतर्गत हो तो उनसे मसाबा को सिर्फ नाम मिला. इन तमाम बातों के बाद जब हम नीना का रुख करते हैं तो मिलता है कि नीना ने मसाबा को न केवल जन्म दिया बल्कि वो भार भी उठाया जिसका पूरा दारोमदार पिता के कंधे पर होता है.

सलाम है नीना को. उनके जज्बे को, उनकी हिम्मत को भले ही मसाबा उन्हें विश करना भूल गयीं हों लेकिन हम उन्हें ज़रूर विश करेंगे साथ ही ये भी कहेंगे कि नीना आप हर उस महिला के लिए प्रेरणा हैं जो सिंगल मदर है. हां वही महिला जो एक पल में ममता से भरी हुई मां तो दूजे ही पल सख्ती से भरा हुआ पिता भी है.

ये भी पढ़ें -

जिस ट्विटर पर प्रोपोगेंडा फैलाया, उसी ट्विटर पर जली कटी सुन रही हैं स्वरा भास्कर!

ये कलयुगी कालिदास हैं, अपनी डाल काटेंगे, मगर साहित्य कभी नहीं रचेंगे

नोरा फतेही की वो बातें, जो उन्हें फीमेल एक्टर्स का रणवीर सिंह बनाती हैं!

लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय