New

होम -> समाज

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 01 जनवरी, 2018 07:02 PM
डॉ नीलम महेंन्द्र
डॉ नीलम महेंन्द्र
 
  • Total Shares

तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित करने वाला बिल लोकसभा में बहुमत से पारित हो गया. देश की मुस्लिम महिलाओं के संदर्भ में ये एक ऐतिहासिक फैसला है. हालांकि, अभी राज्यसभा में इसका पारित होना बाकी है. सम्मान और हक की यह लड़ाई जो 1985 में शाहबानो ने शुरू की थी, जीतने में इतने साल लग गए. शाहबानो से शायरा तक का यह सफर आसान नहीं था.

लेकिन आज भी जब मजहब और शरीया के नाम पर कुछ मुस्लिम संगठन इसका विरोध करने में लगे हैं. तो इन लोगों से मेरे कुछ प्रश्न हैं-

जो भावना, मानवता के प्रति अपना फर्ज निभाने से रोकती हो वो धार्मिक भावना कैसे हो सकती है? जो सोच किसी स्त्री के संसार की नींव ही हिला दे, वो किसी मजहब की सोच कैसे हो सकती है? जब निकाह के लिए लड़की का कुबूलनामा जरूरी होता है तो तलाक में उसके कुबूलनामे को अहमियत क्यों नहीं दी जाती?

triple talaq, muslim woman, BJPतीन तलाक पर कानून बनना ऐतिहासिक कदम है

साहिर लुधियानवी ने क्या खूब कहा है-

"वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा"

यहां लड़ाई 'छोड़ने' की नहीं थी बल्कि "खूबसूरती के साथ छोड़ने" की थी. उस अधिकार की थी जो एक औरत का पत्नी के रूप में होता तो था. लेकिन उसे मिलता नहीं था. यहां ग़ौर करने लायक बात यह भी है कि 1929 में मिस्र, 1956 में पाकिस्तान, पाक से अलग होते ही 1971 में बांग्लादेश, 1959 में इराक, 1951 में श्रीलंका, 1953 में सीरिया, 1956 में ट्यूनीशिया और विश्व के 22 मुस्लिम देशों ने जो फैसला सालों पहले ही ले लिया था उस फैसले को लेने में भारत को इतने साल लग गए.

अगर इस्लाम के जानकारों की मानें तो उनका कहना है कि कुरान में तलाक को बुरा माना जाता है. इसे वैवाहिक संबंध में बिगाड़ के बाद आखिरी विकल्प के रूप में देखा जाता है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि तलाक़ का हक़ ही छीन लिया जाए. अगर कभी किसी रिश्ते में तलाक की नौबत आ जाती है तो मियां बीवी को इस रिश्ते को खत्म करने के लिए तीन महीने का समय दिया जाता है, ताकि दोनों ठंडे दिमाग से अपने फैसले पर सोच सकें.

लेकिन जैसा की अक्सर होता है कुछ कुरीतियां समाज में स्वार्थी तत्वों द्वारा अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु तोड़ मरोड़ कर पेश करने के कारण पैदा की जाती है. लेकिन समझने वाली बात यह है कि समाज वो ही आगे जाता है जो समय के अनुसार अपने अन्दर की बुराइयों को खत्म करके खुद में बदलाव लाता है. इस बार भारतीय मुस्लिम समाज में इस सकारात्मक बदलाव के पहल का कारण बनीं उत्तराखंड की शायरा बानो. शायरा बानो ने ट्रिपल तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला पर बैन लगाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.

triple talaq, muslim woman, BJPमुस्लिम महिलाओं के लिए तलाक की तलवार हमेशा सिर पर लटकती रहती थी

यह उन लाखों महिलाओं की लड़ाई थी जिनका जीवन मात्र तीन शब्दों से बदल जाता था. मजहब के नाम पर, फोन पर या फिर वाट्स ऐप पर, महिला को तलाक देकर एक झटके में अपनी जिंदगी से बेदखल कर दिया जाता था. आज के इस सभ्य समाज में ऐसी कुरीतियों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. सबसे बड़ी बात यह है कि भारत के संविधान में हर व्यक्ति को बराबर के अधिकार प्राप्त है, चाहे वो किसी भी लिंग या जाति का हो. फिर किसी भारतीय महिला को भारतीय संविधान के उसके अधिकार केवल इसलिए नहीं मिल सकते थे क्योंकि वो मुस्लिम महिला है? शायरा बानो ने इसी बात को अपने केस का आधार बनाया की यह उसके समानता के संवैधानिक अधिकारों का हनन है जो उनकी विजय का कारण भी बनी.

और अब कोर्ट के फैसले को कानून का रूप देने के इस कदम से निश्चित ही मुस्लिम महिलाओं के सामाजिक स्तर में सुधार.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इसे कानून के दायरे में लाकर सरकार अपना काम कर चुकी है. लेकिन मूल प्रश्न यह है कि क्या यह फैसला मुस्लिम पुरुषों की सोच भी बदल पाएगा? जिस खुशी के साथ महिलाओं ने इस फैसले का स्वागत किया है, क्या पुरुष भी उतनी ही खुशी के साथ स्वीकार कर पाएंगे?

सवाल जितना पेचीदा है, जवाब उतना ही सरल है. हर पुरुष अगर इस फैसले को अपने अहं को किनारे रखकर केवल अपनी रूह से समझने की कोशिश करेगा तो इस फैसले से उसे अपनी बेटी की आग़ामी ज़िंदग़ी और अपनी बहन की मौजूदा हालत सुरक्षित होती दिखेगी और शायद दिल के किसी कोने से यह आवाज भी आए कि इंशाअलाह यह फैसला अगर अम्मी के होते आता तो आज उनके बूढ़े होते चेहरे की लकीरों की दास्तां शायद जुदा होती.

अगर वो इस फैसले को मजहब के ठेकेदारों की नहीं बल्कि अपनी खुद की निगाहों से, एक बेटे, एक भाई, एक पिता की नज़र से देखेगा तो जरूर इस फैसले को तहेदिल से कबूल कर पाएगा.

ये भी पढ़ें-

ट्रिपल तलाक पर ओवैसी का अड़ंगा, पूरी लोक सभा का कहना "तलाक, तलाक, तलाक!"

10 बिंदुओं में जानें तीन तलाक को क्रिमिनल बनाने के मायने

ट्रिपल तलाक को बैन करवा कर इशरत ने मधुमक्खी के छत्ते पर हाथ मार लिया !

लेखक

डॉ नीलम महेंन्द्र डॉ नीलम महेंन्द्र

लेखक राष्ट्रीय एवं प्रान्तीय समाचार पत्रों तथा ऑनलाइन पोर्टल पर लेख लिखती हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय