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Updated: 28 दिसम्बर, 2017 07:11 PM
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सरकार ने संसद में तीन तलाक बिल पेश कर दिया है - और उस पर बहस जारी है. बिल को लेकर कांग्रेस पसोपेश में नजर आयी जबकि AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने ये कहते हुए विरोध जताया कि ये बिल संविधान की अवहेलना करता है और कानूनी रूपरेखा में फिट नहीं बैठता. बीजेडी के भर्तृहरि महताब ने बिल पेश करने के तरीके पर सवाल उठाते हुए मसौदे में खामियां बतायीं, तो आरजेडी विधेयक को ही गैरजरूरी करार दिया.

लोक सभा में बिल पेश करते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने तीन तलाक को लेकर चार सदस्यों से चार अपील की.

तीन तलाक बिल की 3 खास बातें

लोक सभा में बिल पेश करते हुए वो तारीख याद दिलायी जब सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया था - 22 अगस्त 2017. साथ ही, रविशंकर प्रसाद ने रामपुर की उस घटना की ओर ध्यान दिलाया जिसमें सुबह देर से उठने पर एक महिला को उसके पति ने तलाक दे दिया. सरकार की ओर से बिल पेश करते वक्त खास तौर पर ये तीन दलीलें रखी गयी हैं -

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1. तीन तलाक की समस्या का अंदाजा इसी बात से लगता है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे गैरकानूनी ठहराए जाने के बाद 100 से ज्यादा तलाक के मामले हो चुके हैं.

2. तलाक-ए-बिद्दत को बिल के जरिये गौरकानूनी बनाया गया है, क्योंकि इसका सीधा असर महिलाओं और बच्चों पर पड़ रहा था. महिलाओं के लिए बच्चों की परवरिश मुश्किल हो जा रही थी.

3. नये कानून में ट्रिपल तलाक के मामले में अगर पुलिस जमानत नहीं दे सकती तो मजिस्ट्रेट के पास ये अधिकार होगा कि वो हर मामले को देखते हुए अपने विवेक से जमानत पर फैसला ले सके.

तीन तलाक बिल पर 3 सवाल

1. असम के सिल्चर से कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव ने कानून मंत्री से सवाल पूछा - 'अगर आप इसे अपराध बनाएंगे और पति को जेल भेजेंगे तो महिला और उसके बच्चे का का भरण पोषण कौन करेगा?'

2. नये बिल के प्रावधान के तहत कोई अनजान व्यक्ति भी तीन तलाक को लेकर शिकायत कर सकता है. इसमें पत्नी की शिकायत जरूरी नहीं रखी गई है. ऐसे में अगर पत्नी नहीं चाहती कि उसका पति जेल जाए, तो भी किसी दूसरे के शिकायत पर उसे जेल भेज दिया जाएगा. ऐसी हालत में परिवार का क्या होगा?

3. सरकार मुस्लिमों के लिए ये बिल लायी है, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहित कई संगठनों का आरोप है कि उनसे मशविरा नहीं लिया गया. सवाल ये है कि कानून तो बन जाएगा लेकिन क्या व्यावहारिक तौर पर लागू भी हो पाएगा? अगर पुलिस के डंडे के जोर पर लागू भी कराया गया तो क्या असल मकसद हासिल हो पाएगा?

तीन तलाक पर सरकार की 4 अपील

कानून मंत्री ने साफ किया कि वो शरिया पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहते, लेकिन क्या सदन को खामोश रहना चाहिए? रविशंकर प्रसाद ने कहा कि ये बिल सिर्फ तीन तलाक पर ही है जिसे तलाक-ए-बिद्दत भी कहते हैं. इसके साथ ही कानून मंत्री ने देश की सबसे बड़ी पंचायत लोक सभा से चार निवेदन किये.

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1. इस बिल को सियासत की सलाखों से न देखा जाये.

2. इसे दलों की दीवार से न बांधा जाये.

3. इस बिल को मजहब के तराजू पर न तौला जाये.

4. इस बिल को वोट बैंक के खाते से न परखा जाये. ये बिल है हमारी बहनों, बेटियों की इज्ज़त आबरू का.

राजीव कांग्रेस बनाम राहुल कांग्रेस

सुष्मिता देव के सवाल के अलावा कांग्रेस के सीनियर नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने बिल में कुछ खामियां बताते हुए इसे संसद की स्थायी समिति को भेजने की मांग की. सरकार ने खड़गे की मांग को खारिज कर दिया. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सलाह दी कि जो भी सुझाव हैं वो उन्हें संसद में ही दे दें.

दरअसल, राहुल गांधी की कांग्रेस ऐसे मामलों में राजीव गांधी की कांग्रेस से बिलकुल बदल गयी है. शाहबानो केस में राजीव गांधी की कांग्रेस का जो रवैया रहा, शायरा बानो तक आते आते बदल चुका है.

राहुल गांधी की कांग्रेस अब कथित मुस्लिम तुष्टिकरण से सॉफ्ट हिंदुत्व की दिशा में आगे बढ़ने की कोशिश कर रही है. दरअसल, हिंदुत्व को लेकर बीजेपी ने कांग्रेस को ऐसी शह दी है कि उसका किसी भी रास्ते आगे बढ़ना मुश्किल हो रहा है. मजबूरन उसे बीच का रास्ता अख्तियार करना पड़ रहा है. हो ये रहा है कि अपने ढुलमुल रवैये के कारण वो मुस्लिम वोट तो गवां ही चुकी है, हिंदू वोटों के लिए भी उसे कदम कदम पर जूझना पड़ रहा है. यही वजह है कि तीन तलाक के मसले पर विरोध के नाम पर भी कांग्रेस महज रस्मअदायगी कर रही है. ये वही कांग्रेस है जिसकी सरकार ने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था - लेकिन नये दौर में वो दो कदम आगे बढ़ने से पहले चार बार सोचने लगी है.

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