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Updated: 05 नवम्बर, 2022 03:55 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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गर्भवती महिला (Pregnant Woman) कल को मरती है आज मर जाए किसी को क्या फर्क पड़ता है? ताजा मामला कर्नाटक (Karnataka) के तुमकुर जिले का है. जहां एक गर्भवती महिला के पास आधार कार्ड (Aadhar Card) ना होने पर उसे सराकारी अस्पताल से लौटा दिया गया. वह जैसे तैसे घर पहुंची जहां उसमे जुड़वा बेटों को जन्म दिया मगर स्थित बिगड़ने की वजह से तीनों की मौत हो गई. महिला थक गई थी और उसके शरीर से अधिक खून निकल चुका था. पहला बच्चा पैदा होने के बाद मर गया और दूसरे बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ.

महिला की मौत उसकी देखभाल नहीं हो पाई. अगर उस महिला को अस्पताल ने इंसानियत के नाते भर्ती कर लिया होता तो आज वह अपने बच्चों के साथ जिंदा होती. क्या आधार कार्ड की खानापूर्ति महिला की जान से अधिक जरूरी थी? शायद हां तभी उसे उस हाल में अस्पताल से निराश होकर लौटना पड़ना. इन लोगों को समझ क्यों नहीं आता कि अस्पताल लोगों के लिए है ना की डॉक्टर्स और स्टाफ की मनमानि के लिए.

महिला का नाम कस्तूरी है जिसकी उम्र कारीब 30 साल है. अफसोस की बात यह है कि वह अनाथ थी. उसके पास मेटरनिटी कार्ड या आधार कार्ड नहीं थी. उसके पति की मौत हो चुकी थी उसकी पहले से एक 7 साल की बेटी है. जब उसे लेबर पेन हुआ तो कुछ लोगों ने चंदा जुटाकर उसे ऑटो रिक्शा से जिला अस्पताल पहुंचाया था. मगर अफसोस की उसकी तकलीफ को देखकर भी अस्पताल ने अनदेखा कर दिया. उन्हें किसी महिला का दर्द में तड़पना नहीं दिखा, उनके लिए तो यह रोज की बात थी. कोई मरे या जिए उन्हें क्या? फर्क तो तब पड़ता जब कोई महिला उनके घर की होती.

Karnataka, आधार कार्ड, Aadhar Card, Pregnant woman died, Pregnancy, Mother, Child, Hospital, Doctor, Negluigencetumkur, Karnataka News, Pregnant woman, Woman with two new born babyएक गर्भवती महिला के पास आधार कार्ड ना होने पर उसे सराकारी अस्पताल से लौटा दिया गया

यह सिर्फ कर्नाटक का मामला नहीं है. हमारे यहां अधिकतर सरकारी अस्पतालों का यही हाल है. आए दिन सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होते हैं जिसमें मरीज को परिजन कभी कंधे तो कभी ठेले पर लेकर अस्पताल जाते हैं, मगर किसी अधिकारी और नेता की हिम्मत नहीं होती कि वह आगे आकर अपनी जिम्मेदारी ले ले. हमारे यहां के अस्पतालों में वैसे भी डॉक्टर्स से लेकर कर्मचारियों की मर्जी चलती है. वे अक्सर मरीजों को लेकर लापरवाही बरतते हैं, खबरें भी आती हैं मगर सालों से हाल जस का तस बना हुआ है.

इसी तरह का एक मामला पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में हुआ था. जहां भारतीय मूल की 34 साल की गर्भवती महिला की मौत हो जाने पर बाद पुर्तगाल की स्वास्थ्य मंत्री मार्ता टेमिडो इतनी दुखी हो गईं कि अपनी जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीपा दे दिया. हमारे यहां जिला स्वास्थ्य अधिकारी ने खानापर्ति करते हुए उस समय ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर और अस्पताल के कर्मचारी को निलंबित करके छुटकारा पा लिया है.

हमारे देश में तो गर्भवती महिलाएं मरती रहती हैं, इसलिए शायद किसी प्रेग्नेंट वुमन का मरना हमारे लिए कोई नई बात नहीं है. इसलिए यह खबर हमारे केलेजे को अधिक कचोट नहीं रही. अब जब कस्तूरी और उसके बच्चे मर चुके हैं तो स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों और पुलिस भी पहुंची है. कोई इनसे पूछे कि अब ये महिला के घर जाकर क्या कर लेंगे? जब उसे इनकी जरूरत थी तब तो उसे भगा दिया अब उसके घर जाकर क्या नौटंकी कर रहे हैं. अब तो वह दुनिया छोड़कर जा चुकी है अब उसे इनकी कोई जरूरत नहीं है. ये कुछ भी कर लें वह जिंदा तो नहीं होने वाली है.

असल में गर्भवती महिला का देश के किसी कोने में मरना कहीं से भी सामान्य नहीं है, लेकिन हमारे यहां हमने इसे नॉर्मलाइज़ बना दिया है. जब तक बात अपने आंगन तक आती नहीं है हमें दूसरों की तकलीफ से कोई मतलब भी तो नहीं होता है. WHO की रिपोर्ट कहती है कि भारत में हर 5 मिनट में एक गर्भवती महिला की मौत हो जाती है. ये मौतें अधिकर शरीर में खून की कमी के कारण होती हैं.

डॉक्टर्स और कर्मचारियों इस बात को अच्छी तरह समझते हैं फिर भी उन्होंने प्रसव पीड़ा में तड़पती महिला पर ध्यान नहीं दिया...हमारे देश के नेताओं में इतनी हिम्मत कहां है कि किसी गर्भवती महिला के मरने पर वे इसकी जिम्मेदारी लें और अपना इस्तीफा दें...कितनी हैरानी की बात है ना कि सरकार कोई भी रही अस्पतालों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ...शायद हम सभी को ऐसे ही जीने की आदत हो चुकी है.

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लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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