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Updated: 16 दिसम्बर, 2018 06:36 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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बच्चों के लिए हम सबसे बेहतर देने की कोशिश करते हैं और हमेशा ये सोचते हैं कि बस चाहें कुछ भी हो हमारे बच्चे सुरक्षित रहें. शायद ही कोई ऐसा हो जिसे अपने बच्चों की चिंता न होती हो. बच्चों की सुरक्षा के लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हैं और यही कारण है कि हर चीज़ देख परख कर लेते हैं. पर अगर सोच-समझकर ली गई चीज़ भी ऐसी निकल जाए जो बच्चों के लिए खतरनाक हो तो? क्या हो अगर डॉक्टर भी न समझ पाए कि बच्चों के लिए बनाए गए प्रोडक्ट्स के अंदर क्या है?

हाल ही में एक ऐसा मामला आया है जिसने ये सोचने पर मजबूर कर दिया है कि माता-पिता किस पर भरोसा करें. अमेरिकी फार्मा कंपनी जॉन्सन एंड जॉन्सन के बारे में तो आपको पता ही होगा? ये वो कंपनी है जो भारत में भी बेबी प्रोडक्ट्स के लिए बहुत फेमस है और यहां तक कि कई डॉक्टर भी इस कंपनी के प्रोडक्ट्स ही बच्चों के लिए इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं. ऐसे में ये सोचना कि एक बेबी पाउडर जिसे बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है क्या वो कैंसर का कारक हो सकता है?

बच्चे, पाउडर, जॉन्सन एंड जॉन्सन, सोशल मीडियाबेबी पाउडर से कैंसर के मामले नए नहीं हैं.

क्या बेबी पाउडर से कैंसर हो रहा है?

न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट में कुछ खुफिया दस्तावेजों और सूत्रों के हवाले से यह दावा किया गया है. इसमें कहा गया है कि 1971 से लेकर 2000 तक कंपनी के बेबी पाउडर की टेस्टिंग में कई बार एसबेस्टोस (asbestos) मिलाया गया. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जॉनसन एंड जॉनसन के अधिकारियों, प्रबंधकों, वैज्ञानिकों, डॉक्टरों और वकीलों को भी पता थी, लेकिन उन्होंने यह बात छिपाए रखी. रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं जिसमें ये कहा गया है कि अमेरिकी रेगुलेटर्स की योजना में एस्बोस्टोस की मात्रा कम करने की कोशिश की गई थी, लेकिन कंपनी ने इन कोशिशों के खिलाफ काम किया.

कैसे सामने आया ये मामला?

दरअसल, जॉन्सन एंड जॉन्सन के बेबी पाउडर का मामला कुछ नया नहीं है सबसे पहले टेस्ट रिजल्ट 1957-58 में आए थे. उसके बाद डार्लिन चोकर नाम की एक महिला ने अपने कैंसर के लिए इस पाउडर को जिम्मेदार ठहराया था. सबसे पहले जब केस दाखिल किया गया था तब बेबी पाउडर की टेस्ट रिपोर्ट और जांच ज्यादा नहीं हो सकी और कंपनी अंदरूनी डॉक्युमेंट्स छुपाने में कामियाब रहेगी. ये 1999 की बात है. अब मामला बदल गया है. करीब 20 साल बाद फिर से ये मामला सामने आया है और अब कंपनी ने जहां अपनी डिटेल्स शेयर की वहीं कई जांच रिपोर्ट में सामने आया कि सिर्फ डार्लिन का ही नहीं बल्कि कई महिलाओं के लिए ओवेरियन कैंसर का जिम्मेदार ये बेबी पाउडर हो सकता है.

रॉयटर्स की रिपोर्ट के बाद इस मामले में नई जानकारी सामने आई है और पूरा मामला कोर्ट में है. न जाने कितनी ही बार ऐसा हुआ है कि जॉन्सन एंड जॉन्सन कंपनी कोर्ट तक पहुंची है, लेकिन लग रहा है जैसे इस बार कोई फैसला हो ही जाएगा. 2000 के दशक में कई लैब रिपोर्ट्स में जॉन्सन एंड जॉन्सन को लेकर इसी तरह के मामले सामने आए थे और एस्बेसटोस की मात्रा पाई गई थी.

क्यों खतरनाक है एस्बेस्टोस?

दरअसल, जहां से टैल्क निकलता है (खदान से) उसे के साथ एस्बेस्टोस मटेरियल भी होता है. इसका सबसे ज्यादा खतरा खदान में काम करने वाले लोगों को होता है. ये पदार्थ कैंसर का कारक होता है. ये पदार्थ काफी खतरनाक होता है और इसे टैल्क से अलग कर दिया जाता है, लेकिन अगर टेस्ट रिजल्ट में ये पाया गया है इसका मतलब ये पूरी तरह से अलग नहीं हुआ.

इस मामले में जॉन्सन एंड जॉन्सन कंपनी का कहना है कि उसके टैल्क में ऐसा कुछ नहीं है और याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने अपने फायदे के लिए दस्तावेजों से छेड़छाड़ की ताकि कोर्ट में भ्रम का माहौल पैदा किया जा सके.

पहले भी लग चुका है जुर्माना..

जॉन्सन एंड जॉन्सन कंपनी पर अमेरिका की सेंट लुईस कोर्ट ने पाउडर में कैंसर फैलाने वाला केमिकल एस्बेस्टोस मिलाने के लिए उसपर 4.7 अरब डॉलर का जुर्माना लगाया था (34 हज़ार करोड़). यह राशि उन 22 महिलाओं और उनके परिवारों को दी गई जिन्होंने पाउडर की वजह से कैंसर होने का दावा किया था.

पर सवाल अभी भी वहीं का वहीं है. क्या हमारे बच्चे सुरक्षित हैं?

वैसे तो बच्चों को कैंसर होने का कोई मामला सामने नहीं आया, लेकिन अगर इससे महिलाओं को कैंसर हो रहा है तो ये कहना कि बच्चे सुरक्षित हैं ये भ्रम ही होगा. कई तरह की जानकारियां सामने आ रही हैं और आखिर क्या होता है वो रिपोर्ट के बाद ही पता चलेगा और मामला जब भी कोर्ट सुलझाएगा तब स्पष्ट हो पाएगा. लेकिन फिर भी अब एक तरह का डर बैठ गया है मन में कि कहीं इसका असर उल्टा न हो और कहीं हम जान बूझकर अपने बच्चों को खतरे पर तो नहीं ढकेल रहे?

बच्चे, पाउडर, जॉन्सन एंड जॉन्सन, सोशल मीडियाक्या सिर्फ बेबी पाउडर ही है खतरनाक?

और भी कई खतरनाक बेबी प्रोडक्ट्स मौजूद हैं..

2017 में क्लीन लेबल प्रोजेक्ट नाम की एक नॉन प्रॉफिट संस्था ने कई बेबी फूड टेस्ट किए थे. इसमें बच्चों की ड्रिंक्स और स्नैक्स भी शामिल थे. 530 बेबी प्रोडक्ट्स टेस्ट किए गए थे और उनमें से 65% में आर्सेनिक (arsenic) मौजूद था, 36% में पारा (Lead), 58% में कैडमियम ( cadmium) और 10% में एक्रिलाइमाइड (acrylamide). ये सभी कैमिकल बच्चों के लिए बेहद खतरनाक हैं और इन सभी से खतरनाक बीमारियां हो सकती हैं.

रिपोर्ट यहां पढ़ें- 

गाहे-बगाहे बेबी फूड, बेबी ड्रिंक्स, बेबी प्रोडक्ट्स, खिलौने इस तरह की रिपोर्ट के शिकार हो जाते हैं. एक अन्य अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार Knockoff Baby Neck Floaties, Baby Sleep Positioners, Amber Teething Necklaces, Self-Feeding Bottles पर ऐसे इल्जाम लग चुके हैं कि ये बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं हैं.

ऐसे में ये सोचना वाजिब है कि क्या वाकई बच्चों के लिए इस तरह फूड और ड्रिंक्स लेकर हम उन्हें ऐसी किसी बीमारी की तरफ ढकेल रहे हैं जिनसे उन्हें बचाया जा सकता था? लगातार बिजी होती लाइफस्टाइल में किसी के लिए भी इतना आसान नहीं है कि वो बच्चों की जरूरतों के लिए हर चीज़ घर में बनाएं. एक ओर जहां पहले खाने से लेकर बच्चों को लगाने वाले काजल तक सब कुछ घर में बनाया जाता था वहीं ये सब कुछ अब बदलता सा जा रहा है. ऐसे में ये तय करना कि कौन सी चीज़ हमारे बच्चे के लिए सबसे सही होगी या नहीं ये बेहद अहम है. ये रिपोर्ट कई माओं के लिए चौंकाने वाली है, लेकिन सवाल अभी भी वहीं का वहीं है, ये नहीं तो क्या सुरक्षित है?

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लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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