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Updated: 26 फरवरी, 2023 09:41 PM
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आजकल जावेद अख्तर सुर्ख़ियों में हैं. बीते हफ्ते उन लोगों ने भी तारीफ की जो अक्सर उन पर देशद्रोही होने का आरोप लगाते थे. यहां तक की कंगना रनौत ने भी उनकी भूरी भूरी प्रशंसा की; हालांकि जावेद साहब ने कंगना की तारीफ़ का मजाक उड़ाते हुए उसे तुच्छ भी बताया और कहा कि वह एक महत्वपूर्ण टिप्पणी कर ही नहीं सकती. परंतु जब लाहौर के फैज फेस्टिवल में जावेद साहब की शिरकत और वहां उनके द्वारा कहे गए अल्फाजों के ठीक बाद हिंदुस्तान में पाक से बातचीत का दौर शुरू किये जाने की बातें उठने लगी. वे भी संदेह के घेरे में आ गए उनके स्वयं के कंगना को लेकर दिए गए लॉजिक के हिसाब से. क्या उनकी इन "महत्वपूर्ण" टिप्पणियों के पीछे कोई हिडन एजेंडा था? किसी ने कह भी दिया कि चोरों को सारे नजर आते हैं चोर. 

यदि मान भी लें कि जावेद साहब की टिप्पणियां स्वतः स्फूर्त हुई थीं, उनका कोई एजेंडा नहीं था कि हिंदुस्तान पाकिस्तान के मध्य वार्ता हो, फिर भी जाने अनजाने ही जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला का पाकिस्तान प्रेम एक बार फिर से जाग गया. जो पाकिस्तान भारत में आतंक एक्सपोर्ट करने से बाज नहीं आता, जिस पाकिस्तान के भेजे आतंकी घाटी में लोगों का धर्म देखकर गोली मारते हैं, जिस पाकिस्तान से आए आतंकियों ने मुंबई और देश की संसद पर अटैक किया, उसी पाकिस्तान से फारुख फिर से बातचीत की पैरवी करने लगे. लगे हाथों कॉलमनिस्ट तवलीन सिंह ने भी मौका ताड़ा और कह बैठी, 'चीन से हो सकती है बात, पाकिस्तान से क्यों नहीं?'

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तवलीन सिंह का निहित स्वार्थ है, सभी जानते हैं. गलत भी नहीं है उनका पाक प्रेम. दरअसल सारा सेट प्लान सा स्मेल होता है. जावेद अख्तर पाकी श्रोताओं से मुखातिब होते हुए वे बातें करेंगे, जो उन्होंने कभी हिंदुस्तान में या पूर्व के पाक दौरों के दौरान किन वजहों से नहीं की वे ही जानें, और उनके कहे को आधार बनाकर बातचीत के लिए माहौल बनाया जाएगा. और जैसा सोचा था, वैसा ही अब हो भी रहा है. फारुख अब्दुल्ला एक्टिव हो गए और इधर तवलीन सिंह ने लिखा कि पिछले हफ्ते विदेश मंत्रालय के आला अधिकारी बीजिंग गये थे इस उम्मीद से कि हमारे बीच रिश्ते थोड़े अच्छे हो जाएं. चीन से बातचीत हो सकती है तो पाकिस्तान से क्यों नहीं? उनका मानना है कि पाकिस्तान से रिश्ता सुधारना भारत के हित में होगा. लगे हाथों तवलीन ने मोदी सरकार के आठ सालों के लिए अपनी भड़ास भी निकाल दी और आगे लिखा कि 'अपने देश के अंदर मोदी भक्तों ने पाकिस्तान के खिलाफ इतनी नफरत फैलाई है पिछले आठ सालों में कि अगर दोस्ती की छोटी-सी कोशिश भी करते हैं प्रधानमंत्री, तो उनके भक्त नाराज हो जाएंगे.

दूसरी समस्या है कि लोकसभा चुनाव करीब आते जा रहे हैं. बीजेपी के आला नेता मानते हैं कि लोकसभा में पूर्ण बहुमत तीसरी बार हासिल करने के लिए हिंदू-मुस्लिम खाई का बहुत लाभ मिलता है.' मानना पड़ेगा आला कूटनीतिज्ञ भी हैं वे, तभी तो मोदी जी को बख्शते हुए सारा ब्लेम बीजेपी पर और बहुचर्चित जुमले 'मोदी भक्तों' पर डाल दिया.  जनाब जावेद अख्तर ने तो दो देशों के लोगों, यानी हिंदुस्तानियों और पाकिस्तानियों को लेकर संदर्भित बातें की थीं, तो फिर हिंदू-मुस्लिम क्यों आ गया?  वैसे जावेद साहब ने जो भी कहा, हिम्मतवाला काम किया उन्होंने. वे पहले भी पाकिस्तान जाते रहे हैं और बम्बइया तो वे हैं ही; फिर भी पहले कभी वे यूं मुखर नहीं हुए. तो आ गया ना सदाबहार 'टाइमिंग' फैक्टर की अब ही क्यों? आखिर कहा क्या उन्होंने? पाकिस्तान में उन्होंने अपने श्रोताओं को 26/11 का हमला याद दिलाते हुए कहा, ''हिंदुस्तानियों को पाकिस्तान से शिकायत है, तो क्यों ना हो...हमलावर न नार्वे से आए थे न मिस्र से...और आज भी आपके बीच घूम रहे हैं.'' 

जावेद अख्तर ने पाकी शायरों और लेखकों को हिंदुस्तान में सर आँखों पर लिए जाने की बात करते हुए सवाल भी किया कि पाकिस्तान के हुक्मरान ने कभी लता मंगेशकर का स्वागत क्यों नहीं किया. जावेद अख्तर शायर हैं और इस लिहाज से उनकी मंशा को, यदि अन्यथा बताया भी जाता है. संदेह का लाभ दिया जा सकता है खासकर इसलिए चूंकि उन्होंने हिंदू-मुस्लिम वाला या कश्मीर वाला विमर्श किया ही नहीं. जबकि फारुख, तवलीन और उन सरीखे और भी, की बदनीयती एक बार फिर जाहिर हो रही है. इस बार कंधे बेचारे शायर के शहीद हो रहे हैं. भारत और पाकिस्तान के बीच बंद बातचीत को अनुच्छेद 370 के रद्द किये जाने से जोड़ते हुए कहा जा रहा है कि पाकिस्तान की ओर से हो हल्ले को नजरअन्दाज कर दिया गया. पता नहीं हिंदुस्तान में रहते हुए हिंदुस्तानी कहलाते हुए कैसे कोई अनुच्छेद 370 के रद्द किये जाने को पाकिस्तानी चश्मे से देख सकता है और जस्टिफाई भी कर सकता है?

यही विडंबना है. दरअसल आज कल पाकिस्तान के हालात जो हैं, जगजाहिर है. ऐसे में पाकिसतन को लेकर एक सकारात्मक माहौल बनाया जा रहा है और जाने अनजाने जावेद अख्तर ने या तो लीड ले ली है या उनको लीड मिल गई है. फारुख अब्दुल्ला के बाद तवलीन सिंह और ताजा ताजा पूर्व रॉ चीफ दूलत, जो पिछले दिनों ही राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में कदमताल कर सुर्ख़ियों में छाए हुए थे, ने भी सुर में सुर मिला दिए और बाकायदा उम्मीद जता दी कि इस चुनावी साल के अंत होने तक मोदी पाकिस्तान के लिए तारणहार बनेंगे. अब कोई मुस्लिम वोटों के लिए इसे मोदी की चुनावी चाल बता दे तो बता सकता है फ्रीडम ऑफ़ स्पीच जो है हिंदुस्तान में. वैसे तवलीन के बाद दूलत ने भी उसी ओर इंगित कर ही दिया है.  

लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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