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इंजीनियर बेटा अब गर्व का नहीं, चिंता का विषय बन गया है!
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक आंकड़ें के मुताबिक भारत में 6,214 इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी संस्थान हैं जो हर साल लगभग 29 लाख बच्चों का एडमिशन करते हैं. और इनमें से 15 लाख बच्चे हर साल नौकरी के लिए मार्केट में आते हैं.
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कुछ समय पहले तक बिहार में बच्चों को लेकर एक कहावत आम थी. अगर लड़का हुआ तो इंजीनियर बनाया जाएगा और अगर लड़की हुई तो फिर डॉक्टर. हालांकि अंत में दोनों ही आईएएस की परीक्षा में बैठेंगे! अरे नहीं ये मजाक बिल्कुल भी नहीं है. अगर यकीन ना हो तो किसी भी बिहारी दोस्त से पूछ लीजिए.
खैर. अब ये तो जगजाहिर है कि हमारे यहां पर लड़कियों की तुलना में लड़कों की संख्या ज्यादा है और हर तरह की तवज्जो लड़कों को ही दी भी जाती है. तो इंजीनियरों की बाढ़ आनी थी सो आ गई. उसी अनुपात में धकाधक इंजीनियरिंग कॉलेज भी कुकुरमुत्ते की तरह उग आए. आलम ये है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक आंकड़ें के मुताबिक भारत में 6,214 इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी संस्थान हैं जो हर साल लगभग 29 लाख बच्चों का एडमिशन करते हैं. और इनमें से 15 लाख बच्चे हर साल नौकरी के लिए मार्केट में आते हैं.
अब इनका क्या होगा?
अब जाहिर है इतनी बड़ी खेप सालाना निकलेगी तो फिर क्वालिटी में कुछ तो लोचा होगा ही. वही हो रहा है. 15 लाख इंजीनियरों में से सिर्फ 7 प्रतिशत ही कोर इंजीनियरिंग जॉब के लिए उपयुक्त होते हैं. 2013 में आस्पाइरिंग माइन्ड्स नाम की एक कंपनी द्वारा 1,50,000 इंजीनियरों पर किए गए एक सर्वे में पाया गया कि 97 प्रतिशत लोग सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग या कोर इंजीनियरिंग में जॉब करना चाहते हैं. इनमें से सिर्फ 3 प्रतिशत के पास सॉफ्टवेयर या फिर प्रोडक्ट मार्केट में काम करने के लिए उपयुक्त पाए गए. वहीं 7 प्रतिशत लोग ही कोर इंजीनियरिंग का काम हैंडल कर पाने के काबिल पाए गए.
हैरान करने वाली बात तो ये है कि देशभर में सालाना इंजीनियर बनकर निकलने वाले लाखों लोगों में से 60 प्रतिशत इंजीनियर बेरोजगार रह जाते हैं. ये सालाना 20 लाख लोगों को काम से बाहर रखने के बराबर है. यही नहीं कुल इंजीनियरिंग छात्रों में से सिर्फ 1 प्रतिशत ही समर इंटर्नशीप में हिस्सा लेते हैं और 3,200 इंस्टीट्यूट जितने भी इंजीनियरिंग प्रोग्राम ऑफर करते हैं उनमें से सिर्फ 15 प्रतिशत ही नेशनल बोर्ड ऑफ एक्रिडिटेशन (एनबीए) से मान्यता प्राप्त होते हैं.
इस जले पर नमक नहीं बल्कि नमक के साथ मिर्च छिड़कने के लिए भी एक और खबर आई कि अगले तीन सालों तक आईटी कंपनियां 1.75 लाख से लेकर 2 लाख इंजीनियरों की छंटनी करेगी. इनकी छंटनी का मुख्य कारण इंजीनियरों का नई टेक्नोलॉजी ना समझ पाना है. और हद तो ये है कि अब इंजीनियरों के नाम पर संता और बंता की तरह जोक भी बनने लगे हैं.
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो बेरोजगार इंजीनियरों की संख्या पर कटाक्ष भी कर दिया. शिवराज सिंह चौहान ने कहा- 'अब राज्य के सारे इंजीनयरिंग कॉलेजों को बंद करके आईटीआई कॉलेज खोल दिए जाने चाहिए. अब कोई धोखा नहीं चलेगा. सभी को पता है कि राज्य में इतने सारे इंजीनियरिंग कॉलेज खुल गए कि हर साल लाखों इंजीनियर थोक के भाव में तैयार हो जाते हैं. मैं देखता हूं कि ये इंजीनियर चपरासी की नौकरी के लिए भी लाइन में खड़े रहते हैं. अब आखिर हम ऐसे इंजीनियरिंग कॉलेजों का क्या करेंगे, जहां से कुशल और दक्ष लोग ना निकलें. मैं तो ऑफर देता हूं कि इंजीनियरिंग कॉलेज बंद करके वे आईटीआई की पढ़ाई कराना शुरू कर दें. ज्यादा सफल होंगे.'
अब इन आंकड़ों से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे यहां की शिक्षा व्यवस्था कितनी लचर हालत में हो गई है और बेरोजगारी किस हद तक लोगों को अपने चपेट में लेती जा रही है. आखिर क्यों किसी को इंजीनियरिंग, पीएचडी या पीजी की पढ़ाई करने के बाद चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन करना पड़ रहा है? इसके दो ही कारण स्पष्ट तौर पर दिखाई देते हैं पहला- हमारी शिक्षा व्यव्स्था बाजार की जरूरतों के हिसाब से टैलेंट पूल तैयार नहीं कर पा रही है. दूसरा- देश में प्राइवेट और सरकारी दोनों ही जगह नए लोगों की भर्ती के लिए वैकेंसी का अभाव है.
हालांकि स्टार्ट-अप इंडिया के साथ सरकार ने युवाओं को खुद के कारोबार शुरू करने जैसे स्वावलंबन का ऑप्शन दिया है लेकिन वो भी नाकाफी साबित हो रहे हैं. ऐसे में जरुरत है देश में ज्यादा से ज्यादा रोजगार पैदा करने की और युवाओं में बढ़ते असंतोष को रोकने की.
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