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Updated: 13 अप्रिल, 2018 04:48 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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एक नई सुबह फिर हुई है.. अधिकतर भारतीय अपने काम धंधे पर लग गए हैं! कई जगह पूजा-पाठ भी निपटा लिया गया है. सब कुछ वैसा ही चल रहा है जैसा चलता है, सोशल मीडिया पर आज भी कठुआ और उन्नाव रेप के मामले पर #KathuaRapeCase #Unnaorape #JusticeforAsifa जैसे हैश टैग चल रहे हैं. सुबह-सुबह न्यूज चैनल भी उसी तरह की खबरें दिखा रहे हैं जैसी रोज़ दिखाते हैं, अरे वही रेप वाली खबरें बस इस समय कठुआ और उन्नाव रेप केस पर मामला है. वैसे सुना क्या आपने वो 8 साल की आसिफा, जिसे मरे हुए चंद दिन ही हुए हैं, जो अल्लाह के पास गई है या भगवान के ये तो नहीं पता, लेकिन उसे न्याय दिलाने वाले वकील को धमकियां मिलने लगी हैं.. क्योंकि वो हिंदुओं के खिलाफ लड़ रहा है.

सुबह की चाय पीते-पीते या ऑफिस जाते समय ट्रैफिक से जंग लड़ते हुए आखिर कितने ही लोग होते हैं जिनकी दिनचर्या इसी तरह की खबरों से शुरू होती हैं? आखिर भारत में अब रेप कल्चर आ गया है तो सोशल मीडिया से लेकर अखबार तक सब जगह इसी से जुड़ी खबरें तो होंगी. यकीन मानिए हिंदुस्तान नहीं जनाब अब हम रेपिस्तान के निवासी हैं क्योंकि सिर्फ रिपोर्टेड आंकड़ों की मानें तो हर घंटे इस रेपिस्तान में 4 रेप हो रहे हैं. और इसके लिए क्या किया जा रहा है? कहीं पर दोषी के साथ खड़े लोग तांडव कर रहे हैं तो कहीं सिर्फ कैंडिल मार्च निकाल कर कोशिश की जा रही है कि इस मामले में आसिफा को शांति मिले.

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पर सच तो ये है कि न ही आसिफा की आत्मा को शांति मिलेगी और न ही ऐसे मामले शांत होंगे. खुद ही सोचिए और समझकर जवाब दीजिए कि आखिर हर घंटे 5-6 रेप होने वाले इस देश में रेपिस्ट की इतनी हिम्मत कैसे हो जाती है? जवाब अपने आप सामने आ जाएगा. इसका जवाब है रेपिस्ट को सज़ा न होना.

मांग मजबूत, लेकिन क्या असर होगा?

इस रेप कांड के बाद से ही लोग रेपिस्ट को फांसी की सज़ा देने की मांग उठा रहे हैं. #HangKathuaRapist का हैशटैग भी चल रहा है. महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने POCSO (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंस) एक्ट में बदलाव की मांग की है. मेनका गांधी की मांग है कि 12 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ रेप जैसा काम करने वालों को फांसी की सज़ा होनी चाहिए.

DCW (दिल्ली कमिशन फॉर वुमन) की चीफ स्वाति मालिवाल भी भूख हड़ताल पर बैठने जा रही हैं. उनकी मांग भी सिर्फ इतनी सी है कि 12 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ रेप के आरोपियों को 6 महीने के अंदर फांसी की सज़ा हो. प्रधानमंत्री मोदी को खत लिखकर मेलिवाल ने ये भी आरोप लगाया कि सरकार इस मामले में पिछले 2.5 साल से कोई कदम नहीं उठा रही है. मेलिवाल ने पीएम को 5.5 लाख खत भेजे थे इसी बात के मांग रखते हुए.

उन्नाव और कठुआ दोनों ही जगह ये रेप नाबालिगों के साथ हुए. दोनों ही जगह बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बनाया गया. आंकड़े कहते हैं कि 2017 में अक्टूबर तक ही POCSO के तहत रजिस्टर हुए केस में 76% का इजाफा हो चुका था. 2016 में नाबालिगों के साथ 16863 रेप. यानी हर दिन 46 बच्चियों का रेप. यानी हर घंटे 2 और हर आधे घंटे में एक बच्ची के साथ भारत में रेप हो रहा है. 

रेप, जहां पीड़‍िता 18 साल से कम की थी

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रेप, भारत, निर्भया, दिल्ली, बच्चे, छेड़छाड़, कठुआ, उन्नाव, आसिफातीन साल में सिर्फ बच्चियों के साथ हुए रेप के मामले

ये आंकड़े हाल ही में जारी किए गए हैं. पिछले तीन साल में 1 लाख से ज्यादा बच्चों के साथ सेक्शुअल क्राइम हुए हैं. बात पर ज़रा गौर करिए.. पूरे एक लाख. तो क्या लगता है आपको? ये आंकड़ा भी 132 करोड़ की आबादी वाले इस देश में ये 1 लाख का आंकड़ा शायद आपको छोटा सा लगे, लेकिन अगर एक-एक बच्ची का दर्द भी महसूस नहीं कर पा रहे तो यकीनन इंसान से मशीन बनने की कगार पर पहुंच गए हैं आप.

वो देश जहां रेप की सज़ा मौत है..

दुनिया में ऐसे कई देश हैं जहां रेप की सज़ा मौत है. कहीं पर गोली मार दी जाती है, कहीं पर गर्दन काट दी जाती है तो कहीं सरेआम फांसी पर लटका दिया जाता है. उत्तर कोरिया, चीन, सऊदी अरब, अफगानिस्तान, अमेरिका, मिस्र, ईरान जैसे देशों में रेप के खिलाफ काफी कड़े कानून हैं और वहां लोगों को सज़ा मिलती भी है. ऐसे देशों में रेप के मामले भारत की तुलना में काफी कम होते हैं.

यहां संविधान में कोई अच्छा बदलाव लाने की बात हो तो भी विरोध शुरू हो जाता है, लोगों के लिए बनाई गई सरकार और नियमों में बदलाव को लोग अपने भले के लिए ही सही अपनाना नहीं चाहते. कठुआ में हिंदुओं का विरोध हो या फिर उन्नाव मामले में ठाकुरों का विरोध सभी इस बात को दर्शाते हैं कि देश में गलत को सही कहने वालों की कमी नहीं है. जहां SC/ST एक्ट में संशोधन की बात पर इतना हंगामा हो गया वहां शायद रेपिस्ट को सज़ा दिलाने की बात पर भी हंगामा हो?

क्योंकि हमारा समाज ही हंगामा करता है और इसी समाज से निकल कर आते हैं रेपिस्ट. एक सामान्य जीवन जीने के लिए लोग बहुत सी दर्दनाक बातें भूलने की कोशिश करते हैं और आगे बढ़ते हैं. हम रोज नहीं चिल्लाते इसका मतलब ये नहीं है कि हम सब आलसी, मक्कार या बेमतलब लोग हैं. बस जिंदगी इतनी मुश्किल है कि इसे जीने के लिए आखों पर सच में पट्टी सी बांध लेनी पड़ती है, लेकिन अगर हर बात के लिए शांत होकर बैठ गए तो जिंदगी इतनी ही मुश्किल हो जाएगी कि जीना दूभर लगेगा.

आज हमारे देश में ऐसे हालात हैं कि बच्चों को बड़ा करना भी मुश्किल हो रहा है. 'हमारे घर में कुछ नहीं हुआ तो हमारे बच्चे सुरक्षित हैं' ऐसा मानने वाले लोगों की कमी नहीं है. पर आंख खोलकर देखेंगे तो पाएंगे कि वाकई हर घर का बच्चा असुक्षित माहौल में जी रहा है. ऐसे में रेप जैसे अपराध के लिए कड़े कानून और बच्चों के साथ रेप के मामले में फांसी की सज़ा बेहद जरूरी महसूस हो रही है.

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लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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