New

होम -> समाज

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 21 दिसम्बर, 2016 07:54 PM
सिद्धार्थ हुसैन
सिद्धार्थ हुसैन
  @siddharth.hussain
  • Total Shares

अपने बच्चे का नाम कोई भी शख्स कुछ भी रखे, ये उसका निजी मामला है लेकिन जब बात सेलिब्रिटी की आती है तो नजरें पैनी हो जाती हैं. और यही हुआ जब करीना कपूर खान और अभिनेता सैफ अली खान ने अपने बच्चे का नाम तैमूर अली खान पटौदी रखा. तो बहुतों को लगा कोई गुनाह हो गया उनसे. किसी ने लिखा तैमूर हत्यारा था तो किसी ने लिखा उसने ना जाने कितने हिंदूओं की हत्या की थी. जो इतिहास के पन्नों में दबे तैमूर को नहीं जानता था वो आज तैमूर के बारे में थोड़ा बहुत तो जान गया.

मगर हो सकता है सैफ अली खान और करीना कपूर खान के लिए यह नाम चुनने की वजह सिर्फ ये हो कि तैमूर का तुर्की भाषा में मतलब "लोहा" होता है और तैमूर आर्ट को प्रमोट भी करता था. उज़बेकिस्तान में समरकंद को बनाने में उसी का योगदान था. हत्यारे वाली बात पर उन्होंने शायद सोचा नहीं होगा. मैं ये नहीं कहुंगा ये नाम गलत है या सही. लेकिन जब एक सेलिब्रिटी कोई कदम उठाता है तो उसे थोड़ा गौर करना चाहिये, क्योंकि लोग उसके हर कदम को देखते हैं. वो उनके आइडियल होते हैं. उनकी सोच से लोग मुत्तासिर होते हैं.

ये भी पढ़ें- करीना के बच्चे के साथ ये क्रूर मजाक है !

बहुत सी जगह पर एक आम आदमी से कहीं ज्यादा सुविधा एक सेलिब्रिटी को मिलती है तब उसे आपत्ति नहीं होती. एयरपोर्ट के सिक्योरिटी चैक से लेकर मंदिर में दर्शन तक वो औरों से पहले होता है. वहां उसे अपना सेलिब्रिटी स्टेटस अच्छा लगता है, तो ऐसे में तय करना बड़ा मुश्किल है कि उसकी व्यक्तिगत राय कितनी व्यक्तिगत रहेगी. किसी ने ये भी लिखा कि तैमूर अली खान कूपर पटौदी क्यों नहीं?, अब ये क्यों नहीं, ये तो सैफ और करीना ही जानें, लेकिन अगर होता तो एक बात जरूर होती कि उस नाम में "गंगा जमुनी" तहजीब जरूर दिखती.

गंगा जमुनी तहजीब नॉर्थ की पुरानी कहावत है, हिन्दू और मुस्लिम को एक साथ लेकर चलने की, प्यार की, भाईचारे की. तास्सुबी माहौल को बेहतर बनाने की कोशिश. नाम रखने का मकसद यही रहा है कि बच्चा बड़ा होकर उसी सोच, उसी खयाल को आगे बढ़ाये. चेहरे पर मुस्कान आ जाये जब कोई आपका नाम पुकारे, लेकिन अक्सर नाम को मजहब से ही जोड़ दिया जाता है. नाम से इंसान को नहीं बल्कि उसकी जात को पहचानने का माध्यम बना दिया जाता है.

vns-2_3_122116064347.jpg
 भारत की पहचान ही है ये गंगा-जमुनी तहज़ीब

मेरा नाम जब सिद्धार्थ हुसैन रखा गया तो मेरे माता पिता के अलावा खानदान में बहुत से लोगों ने ऐतराज जताया. किसी ने कहा हिंदू नाम क्यों, किसी ने कहा हुसैन को भी हटा दो पूरा ही हिंदू कर दो. किसी तास्सुबी हिंदू ने कहा पूरा ही मुसलमान कर लेते.

1996 में मैं अपने नाना यानी अपनी मां के सगे चाचा अली सरदार जाफरी के साथ 50 और 60 के दशक के मशहूर म्यूजिक डायरेक्टर नौशाद साहब के बेटे की शादी में गया. उन्होंने पूछा "बेटे क्या नाम है", मैंने मुस्कुरा के जवाब दिया "सिद्धार्थ हुसैन". उन्होंने चौंक कर जवाब दिया "हिंदू भी और मुसलमान भी". इस नजर से मैंने अपने नाम के बारे में पहले कभी सोचा नहीं था. इससे पहले मैं कुछ कहता मेरे नाना अली सरदार जाफ़री, जो बहुत मशहूर और तरक्की पसंद शायर थे, बोले यही होती है "गंगा जमुनी तहज़ीब".

ये भी पढ़ें- सारे कौमी झगड़ों पर भारी दो किडनियों का ये लेन-देन

तब पहली बार नाम से मुझे "गंगा जमुनी" तहज़ीब का एहसास हुआ. लेकिन एक बात जो मैं तब भी जानता था कि मेरा नाम मजहब के लिये नहीं रखा गया था, सिद्धार्थ मेरे लिये कभी हिंदू नहीं था और हुसैन मुस्लिम नहीं था. दो शब्द थे एक हिंदी का और दूसरा उर्दू का. भारतीय भाषा मिलीजुली है. हम बोलचाल की ज़ुबान में हिंदी उर्दू दोनों का इस्तेमाल करते हैं. नाम रखने में भी अगर ऐसा हो तो क्या बात होगी. बाकी ये शिकायत नहीं है कि सैफ अली खान पटौदी ने अपने बच्चे का नाम तैमूर क्यों रखा है. लेकिन अगर कुछ गंगा-जमुनी रखते तो बेहतरीन होता.

लेखक

सिद्धार्थ हुसैन सिद्धार्थ हुसैन @siddharth.hussain

लेखक आजतक में इंटरटेनमेंट एडिटर हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय