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Updated: 12 फरवरी, 2022 09:40 PM
रीवा सिंह
रीवा सिंह
  @riwadivya
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हृदय ठीक-ठाक चलता रहे इसके लिये पेसमेकर्स आ गये. सांस लेने में तकलीफ़ न हो सो इनहेलर्स आये. बिखरे हुए मासूम मन को समेटने के लिये या फिर खिल रहे प्रेम के वसंत पर मंत्रमुग्ध होने के लिये गले लगने की रवायत ईजाद हुई होगी. गले लगने को नैसर्गिक क्रिया होना था लेकिन मनुष्य ने पहले संवेदनशील होना सीखा फिर संवेदनाओं पर नियंत्रण पाना. स्थितप्रज्ञ होने को अलौकिक सिद्ध किया गया इसलिए बेचारा मन दूर ही रह गया उन स्पर्शों से जिनकी गर्माहट उस तक पहुंचती तो वह निहाल हो जाता, पुनर्जीवित हो जाता.

दिल को कहां पता होता है कि ख़ून पम्प करते-करते कब उसमें बर्फ़ जमने लगी है. तनाव बढ़ता है, धड़कनें घटती हैं, नींद बिस्तर से ग़ायब हो जाती है जब मन दुखता है. ऐसे में कोई हौले-से आकर गले लगा ले तो सब पिघल जाता है. पिघलना कितना ज़रूरी भी तो है ज़िंदगी के लिये. बिना पिघले बहा नहीं जा सकता, बिना बहे कहां जिया जा सकता है!

Hug Day, Valentines Day, Valentine Week, Love, Relationship, Boyfriend, Girlfriendकहना गलत नहीं है कि लिपटकर प्रेम लुटाना वसंत में फाल्गुन भरने जैसा है

जब मन का रोम-राम उत्फुल्ल होता है, आंखें भी मुस्कुराती हैं तो किसे दरकार होती है क़ीमती तोहफ़ों की. बाहें अपने आप खुल जाती हैं दूसरी बाहों में उलझने को. मन मांगता है सिर्फ़ गर्माहट. गर्माहट प्रेम की, अपनेपन की. किसी के आलिंगन में आकर सुकून की सांसें भरने का एहसास क्या जानेंगे वो जिन्होंने कभी हाथ ही न बढ़ाया.

नहीं पता कि लिपटते हुए शरीर में किस गति से हॉर्मोनल बदलाव होते हैं, कभी-कभी तो सब बेकाबू हो जाता है. लेकिन ऐसा कवच कोई वैज्ञानिक कहां बना सकेगा! कई बार मन जी भरकर रो लेना चाहता है. कई बार खिलखिलाकर हंसता है. किसी से लिपटकर रो पाने वाले ख़ुशक़िस्मत होते होंगे, लिपटकर हंसने वालों से हमेशा रश्क़ रहेगा उस दुनिया को जिसने भावनाओं को वश में करने को सर्वोपरि माना.

लिपटकर प्रेम लुटाना वसंत में फाल्गुन भरने जैसा है. वसंत में गले लगने वालों ने ही ठीक बाद उड़ेला होगा फाल्गुन को मौसम के कैलेंडर में. 

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रीवा सिंह रीवा सिंह @riwadivya

लेखिका पेशे से पत्रकार हैं जो समसामयिक मुद्दों पर लिखती हैं.

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