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Updated: 01 नवम्बर, 2021 07:45 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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ग्रीन पटाखे (Green Crackers) का नाम सुनकर खुद को तसल्ली देने वाले लोग इतना समझ लें कि ये बस आपके साथ धोखा है. धोखा इसलिए कि जब पटाखे बैन होने के बाद रात 12 बजे तक बम फूटते हैं तो फिर ग्रीन पटाखों की आड़ में क्या होगा?

लोग ग्रीन पटाखे ले तो आएंगे लेकिन उससे ज्यादा खतरनाक वाले पटाखे भी ले आएंगे जो पर्यावरण को पूरी तरह नुकसान पहुंचाने वाले होते हैं. मतलब यह है कि ग्रीन पटाखों की आड़ में केमिकल वाले पटाखे फोड़े ही जाएंगे.

असल में पटाखे जलाने से अधिक आबादी वाले शहरों में वायु प्रदूषण बढ़ जाता है, यही वजह है कि सर्दी के मौसम में एयर क्वालिटी इंडेक्स पहले से ही खराब हालात में है. ऊपर से कोरोना काल के समय पटाखे जलाना पहले से ज्यादा खतरनाक है. वजह यह है कि प्रदूषण की वजह से हमारी इम्यूनिटी कमजोर हो जाती है और लोगों को सांस लेने में काफी परेशानी होती है.

में ग्रीन पटाखें 40 से 50 फीसदी तक कम हानिकारक गैस पैदा करते हैं.ग्रीन पटाखे 40 से 50 फीसदी कम हानिकारक गैस पैदा करते हैं

वैसे एक बात बता दें कि ऐसा नहीं है कि ग्रीन पटाखे पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते. ये तो आवाज भी करते हैं और पॉल्यूशन भी फैलाते हैं लेकिन पारंपरिक वाले पटाखों से से थोड़ा कम. असल में ग्रीन पटाखें 40 से 50 फीसदी तक कम हानिकारक गैस पैदा करते हैं. माने आधे होने वाले नुकसान के लिए आपको खुद को तैयार करना होगा और जेब भी ढीली करनी होगी क्योंकि ये सामान्य पटाखों की तुलना काफी महंगे हैं.

इससे अच्छा है कि पटाखे जलाने पर हर जगह बैन लगा दिया जाए. हालांकि कई हिंदू इसे अपने धर्म और त्योहार से जोड़कर देखते हैं जबकि यहां मामला किसी की भावना को ठेस पहुंचाने का नहीं बल्कि सांस लेने का है. वैसे भी कोरोना काल के समय हालात देखने के बाद सबसे ज्यादा जरूरी अभी स्वास्थय है. हम स्वस्थय हैं तभी तो त्योहार है.

होता यह है कि भारत के लोग कुछ ना कुछ जुगाड़ लगाकर हर बार पटाखों का जुगाड़ कर ही लेते हैं. हर साल पटाखे बैन होते हैं फिर भी दिवाली वाली रात मजाल है तो जो रात के 2 बजे तक लोग पटाखे ना फोड़ें. उपर से लोग छठ पर्व के लिए भी जुगाड़ कर लेते हैं. मतलब यह है कि लोगों को सारी खुशी पटाखे जलाकर ही मिलती है. लोगों को लगता है कि पटाखे जलाकर जो “किक” मिलती है वो किसी चीज में नहीं है.

वही किक जो होली में किसी को रंग लगाकर मिलता है. आनंद बस पटाखों की तेज आवाज से होता तो म्यूजिक लगाकर फुल साउंड कर देते लेकिन यहां उत्साह तो पटाखे जलाकर भागने से है और पड़ोसी ने कितने फोड़े और हमने कितने फोड़े से है. 

जब तक नागिन छाप चटखे ना और महिलाएं चकरी में कूदे ना, बच्चे फूलझड़ी ना घुमाकर नाचे ना, राकेट दूसरे की छत जाकर ना गिरे, गुज्जा बालकनी के छज्जे पर ऊपर तक ना जाए तब कर लोगों को दिवाली का मजा ही नहीं आता. भले इसके बाद उनकी जान पर ही क्यों ना बन आए. 

जब कोर्ट ने कई जगहों पर ग्रीन क्रैकर्स के बेचने और इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी है तो फिर कई राज्यों की सरकारों की ओर से पाबंदी का क्या मतलब रह जाता है? मतलब तो यही है ना कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे...

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लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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